छत्तीसगढ़

हाउसिंग बोर्ड में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं

Nilmani Pal
7 July 2022 5:43 AM GMT
हाउसिंग बोर्ड में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं
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  1. तालपुरी प्रोजेक्ट में 100 करोड़ के घोटाले पर नहीं हुई कार्रवाई
  2. भ्रष्ट अफ सरों ने ठेकेदार को फ ायदा पहुंचाने टेंडर अनुबंध में क्लास 3 सी के प्रावधान को ही हटा दिया
  3. अधिकारियों ने बिना हृढ्ढञ्ज स्वीकृति के प्रोजेक्ट का टेंडर जारी किया
  4. सर्विस टैक्स और खऱाब गुणवत्ता की शिकायत की जांच के बजाय की गई लीपापोती
  5. उपायुक्त आरके राठौर तक पहुंचने के बाद हाउसिंग बोर्ड दफ्तर से फाइलें हो गईं गायब

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। छत्तीगसढ़ हाउसिंग बोर्ड में भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा है। सरकार बदलने और नए अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद भी अधिकारियों की ठेकेदारों से सांठगांठ कर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। भ्रष्टाचार और घोटालों के पुराने मामलों पर भी किसी तरह की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी और फाइलें धूल फांक रही हैं। नए अध्यक्ष ने भी हाउसिंग बोर्ड के क्रियाकलापों में पारदर्शिता लाने की जगह भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के ही पीठ थपथपाए, नतीजा इन अधिकारियों को प्रमोशन देकर उन्हें सरकारी और जनता के धन को लूटने की खुली छूट दे दी गई है। बोर्ड की तालपुरी प्रोजेक्ट में हुए घोटाले की परत आज तक नहीं खुली और जिम्मेदार अधिकारी-ठेकेदार मलाई खा रहे हैं।

भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आई थी। कैग की रिपोर्ट में भी 115 करोड़ रुपये के खर्च को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। जांच हुई, लेकिन लीपापोती कर घोटाले को दबा दिया गया। गड़बड़ी करने वाले जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि पदोन्नात कर दिया गया। अब लोकायुक्त में शिकायत के बाद एक बार फिर से यह मामला गरमा गया है। इस संबंध में बोर्ड के अधिकारी जांच का हवाला देकर अधिकृत तौर पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं। हाउसिंग बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल कालोनी के नाम से वर्ष 2008 में प्रचारित कर मकानों की बुकिंग करवाई गई। इस प्रस्तावित कालोनी में करीब 1800 मकान ईडब्ल्यूएस और 1800 सामान्य एलआइजी, एमआइजी व एचआइजी थे। ईडब्ल्यूएस आवासों को पारिजात व अन्य को गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आर्किड जूही, मोंगरा टाइप बनाए गए थे। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसमें सर्विस टैक्स में गड़बड़ी करने और गुणवत्ता खराब होने की शिकायत मिलने पर सीएजी (कैग) ने 2012 में जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। यह रिपोर्ट मार्च 2013 में सार्वजनिक हुई थी,जिसमें करीब 115 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। जानकारों का दावा है घोटाला इससे कहीं ज्यादा का है। सीएजी की रिपोर्ट में निर्माण का काम एजेंसी मेग्नाटोस कोलकाता को जिस दिन दिया गया, उसी दिन मेग्नाटोस ने एसएस निर्माण नामक एजेंसी को काम दे दिया। इन दोनों एजेंसियों ने अधूरा निर्माण कर गड़बड़ी की। ए और बी टाइप के जनसामान्य के आवासों के निर्माण में अलग-अलग रेट कोट किया गया। बाद में जब मोंगरा व जूही आवासों का निर्माण हुआ, उनमें भी ए टाइप को छोड़कर बी टाइप के आवास का रेट कोट किया गया, जबकि पहले ए टाइप के निर्माण में 19 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान दिया गया था। बाद में बिना कारण के यह छूट नहीं दी गई। छूट की आड़ में बोर्ड के जिम्मेदार अफसरों पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगा है।

तत्कालीन कार्यपालन अभियंता की भूमिका

जब पांच साल बाद भी तालपुरी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो बैंक लोन लेने वाले हितग्राहियों ने हाऊसिंग बोर्ड के विरुद्ध दबाव बनाना शुरू किया. ऐसे में हाउसिंग बोर्ड ने यथास्थिति मकान देने की योजना निकाली. इस दौरान तत्कालिन कार्यपालन अभियंता ने सामान परिस्थिति के मकानों का अलग-अलग मूल्य निर्धारण करवाकर भारी घोटाला किया।इसके अलावा कार्यपालन अभियंता ने हितग्राहियों से जानबूझकर नियम विरुद्ध सर्विस टैक्स डबल वसूली की। उनके विरुद्ध विभागीय जांच भी हुई। लेकिन विजलेंस अधिकारी केडी दीवान जो खुद भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त होने के साथ जेल गए। उन्होंने सांठगांठ कर जांच दबवा दी।

फाइलें भी कर दी गईं गायब

जब तालपुरी घोटाले की आंच बढऩे लगी तो बाद में तत्कालीन मुख्य संपदा अधिकारी सीएस बाजवा की अध्यक्षता में भी एक जांच कमेटी गठित की गई। जिसकी रिपोर्ट भी बनी. लेकिन यही रिपोर्ट वाली फ ाइलें उपायुक्त आरके राठौर तक पहुंचने के बाद हाउसिंग बोर्ड दफ्तर से गायब हो गई। हेराफेरी के लिए फर्जी बिल और फ र्जी स्टॉक को हथियार बनाया गया था. काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा राजनीतिक चंदे और दो रसूखदार लोगों ने हड़प लिया। घोटाले की शेष रकम हाऊसिंग बोर्ड के अधिकारियों के पास चली गई. इस घोटाले के संदिग्ध आरोपी प्रमोशन पाकर एडिशनल कमिश्नर बन गए है. इस मामले में हैरान करने वाली बात यह है कि आरोपी अधिकारी अपने ही काले कारनामों की जांच कमेटी में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से शामिल रहते थे. जिसके कारण ना केवल जांच प्रभावित होती रही बल्कि मामला ही दबा दिया गया।

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