छत्तीसगढ़

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता के सफर का नौ वर्ष...

Nilmani Pal
23 May 2022 5:39 AM GMT
मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता के सफर का नौ वर्ष...
x

एक पुत्र ने पिता की विरासत और सपने को संजोया...


अतुल्य चौबे, सिटी चीफ

जीवट, पक्के इरादों के पर्याय हैं फरिश्ताजी.... अभावग्रस्त जीवन सबसे बड़ा अभिशाप है। रोजमर्रे की जरुरतों के लिए पल-पल सफर करना और जूझना बेहद कठिन होता है। कुछ लोग तपकर अपने लिए मुकाम बना लेते हैं तो कुछ लोग टूटकर बिखर जाते हैं। समाज का उच्च वर्ग जिन्हें सारी सुख-सुविधाएं हासिल होती हैं वो पर फैलाकर उड़ान भर लेते हैं, कमजोर तबका जितना जूझता है उतना हासिल कर संतुष्ट हो जाता है। लेकिन बीच का मध्यम वर्ग हमेशा सफर ही करते रहता है। मेहनत के बाद जो हासिल होता है उससे संतुष्ट नहीं हो पाता और सपने पूरा करने के लिए वह जरूरी हौसला और अर्थ नहीं जुटा पाता। मेरी भी दशा कुछ ऐसी ही थी। शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी से वंचित रहने पर मैंने कुछ निजी फर्मो में चार-पांच हजार की नौकरी कर अपने जीवन का सफर शुरू किया था। सन 2000 में एक परिचित पत्रकार महोदय(जिनका शुक्रगुजार हूं) ने मुझे एक नव प्रकाशित सांध्य दैनिक से जोड़कर पत्रकार बना दिया। इस सांध्य दैनिक से हाईवे चैनल, देशबंधु, छत्तीसगढ़, नेशनल लुक, रौद्रमुखी स्वर और हरिभूमि होते हुए मैंने 2012 तक का सफर तय किया। इन अखबारों में रिपोर्टर से लेकर संपादक तक का दायित्व निभाया। इन संस्थानों से, साथी पत्रकारों से लेखनी और न्यूज सेंस को लेकर सिर्फ तारीफें मिलती, लेकिन कभी संतुष्टि लायक वेतन नहीं मिला। दरअसल जब मैंने पत्रकारिता शुरू की तब इसका स्वरूप बदलने लगा था। पत्रकारिता विजन, समाज और जनसेवा से हटकर व्यवसाय का रूप ले रहा था। अखबार नवीश पत्रकार नहीं अपितु लाइजनर और संस्था का आर्थिक हित कराने वालों को ज्यादा तवज्जो देने लगे थे। पत्रकारों को काम पर रखने से पहले यह देखा जाने लगा कि उनकी सरकार, नेताओं, दिगर व्यवसायिक प्रतिष्ठानों और उपक्रमों में कितनी पकड़ है और वह संस्था को इनसे कितना अर्थ दिला सकता है। यह तौलने के बाद ही उसका वेतन और दिगर सुविधाएं तय होती थी। व्यवसायिकता और प्रतिस्पर्धा के दौर में यह गलत भी नहीं कहा जा सकता है। इस रेस में विशुद्ध पत्रकारिता करने वाले पिछडऩे लगे और एक तरह से किनारे होते चले गए। ऐसे में जिनका पत्रकारिता ही जीविकोपार्जन का आधार है उनके लिए जो मिला उसे ही स्वीकार करने की मजबूरी है।

जुझारू, जिंदादिल व्यक्ति से जुड़ा

इन्हीं झंझावतों से गुजरते हुए मैंने 2013 में जनता से रिश्ता से जुडऩे का फैसला किया। श्रद्धेय पप्पू फरिश्ता जी छत्तीसगढ़ के पहले मिड-डे अखबार की नींव डाल रहे थे। संस्था में जुडऩे से पहले मेरी उनसे सिर्फ एक-दो बार की मुलाकात हुई थी। एक अन्य अखबार समूह से जुड़े मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे इस अखबार के शुरू होने की जानकारी दी। मैंने बिना देर किए पप्पू फरिश्ता जी से मुलाकात की। पहली ही मीटिंग में उन्होंने मुझे नियुक्त कर लिया और बताया कि उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी को संपादक नियुक्त किया है, आप उनसे मिल लें। मेरी मुलाकात दूसरे ही दिन अमृत संदेश काम्पलेक्स के काफी हाउस में आदरणीय चतुर्वेदी जी से हुई। सामान्य शिष्टाचार के बाद उन्होंने मेरी पूर्व की सेवाओं के बारे में जानकारी ली। इसके साथ ही इस नए अखबार के लिए काम करने का सिलसिला शुरू हो गया। अखबार का नियमित प्रकाशन मई 2013 से हुआ लेकिन हमारी नियुक्ति अप्रेल के प्रारंभ में हो गई थी। यह पूरा महीना हमने अखबार के स्वरूप पर मंथन व तैयारियों में निकाला। यह पहला अवसर था जब मैं किसी संस्थान में प्रत्यक्ष तौर पर संस्था के मालिक के साथ ही काम कर रहा था। इससे पूर्व के संस्थानों में संपादकों व अन्य उच्च स्टाप के सानिध्य में काम किया। यहां काम करते हुए मैंने पप्पू फरिश्ता जी के रूप में एक जीवट, जुझारू और कभी न हारने वाले व्यक्ति का सानिध्य पाया। प्रारंभ में ही उन्होंने मुझे सिटी डेस्क की महत्वपूर्ण जवाबदारी सौंपी। वरिष्ठ पत्रकारों की मौजूदगी में यह जिम्मेदारी मेरे लिए महत्वपूर्ण थी। अखबार का नियमित प्रकाशन शुरू ही हुआ था कि मई के पहले सप्ताह में ही फरिश्ता जी को दिल का दौरा पड़ा। ईश्वर की कृपा रही की वे इस पीड़ा के दौर से बाहर निकले और अखबार के भविष्य को लेकर छाया कुहासा छट गया। अस्पताल में रहते हुए भी फरिश्ताजी को अपने कर्मियों की चिंता थी और उन्होंने निर्धारित 7 तारीख को ही अपने पुत्र को कहकर सभी कर्मियों को पहला वेतन वितरित करवाया। उनकी यह संवेदनशीलता और दूसरों की जरूरतों को महसूस करने वाली खूबी दिल में उतर गई।

अनुसाशन पसंद और समय का पाबंद

अखबार में काम करने वाले हर व्यक्ति चाहे वह संपादक हो, सिटी इंचार्ज हो, रीजनल डेस्क हो कभी किसी के कार्य में उन्होंने जरा भी हस्तक्षेप नहीं किया। कभी उन्होंने यह तय नहीं किया कि फं्रट पेज में क्या जाएगा, संपादकीय पेज में कैसा लेख लगेगा या सिटी या रिजनल में किस तरह की खबरों को जगह दी जाए। यहां तक कि उन्होंने किसी व्यक्ति विशेष की खबरें लगाने अथवा नहीं लगाने को लेकर भी कभी कोई निर्देश नहीं दिया। हां एक बात केे लिए वे हमेशा कर्मियों से अपेक्षा रखते थे वह है काम का समय। उनका हमेशा यही कहना होता है कि तय समय में काम और निर्धारित ड्यूटी पूरी निष्ठा के साथ संस्था को दें। उनका हमेशा यही कहना रहा है कि मिड-डे कांसेप्ट का अखबार दोपहर में ही पाठकों तक पहुंचना चाहिए और इसी आधार पर हमें अपने काम के लिए समय निर्धारित करना चाहिए। उनका ही प्रयास है कि अखबार में काम करने वालों ने सुबह के इस अखबार के हिसाब से काम करने के लिए खुद को तैयार किया। इसी का नतीजा रहा कि आज जनता से रिश्ता ने बड़े और स्थापित अखबारों के बीच अपना विशिष्ठ पहचान बनाकर नौ साल का सफर तय करते हुए दसवें वर्ष में प्रवेश किया है।

मददगार, तकलीफों में हमेशा साथ

तनख्वाह के भरोसे जीवन यापन करने वालों के लिए जीवन के उतार-चढ़ाव से जूझ पाना बहुत ही मुश्किल होता है। हमेशा आर्थिक परेशानियों से दो-चार होना इनकी फितरत है। इन हालातों में अगर कहीं से कोई मदद का हाथ उठता है तो ईश्वर के होने का न सिर्फ एहसास होता है बल्कि उस मददगार के रूप में हमें फरिश्ता ही नजर आता है। इस मामले में हम किस्मत वाले हैं कि हमें पप्पू फरिश्ता जी का सानिध्य मिला। उसके रूप में मैंने एक सहिष्णु और परोपकारी इंसान को भी देखा जो न सिर्फ अपने कर्मचारियों बल्कि वो हर जरूरतमंद जो मदद के लिए उनके पास पहुंचते हैं का दिल खोलकर मदद करते हैं। मुझे 2015 का वाक्या याद आ रहा है जब सड़क हादसे में मेरे एक पैर की उंगलियां उखड़ गई थी और मुझे आपरेशन के बाद महीने भर बिस्तर में रहना पड़ा था तब पप्पू फरिश्ता जी न सिर्फ मेरे घर आए बल्कि उन्होंने मेरे आपरेशन का खर्च भी उठाया, इतना ही नहीं मेरे काम करने लिए उन्होंने घर में कंप्यूटर, इंटरनेट आदि की व्यवस्था की और जब मैं थोड़ा चलने फिरने लगा तो अपने एक कर्मचारी को मुझे घर से लाने और छोडऩे के लिए भी लगाया। इसके अतिरिक्त भी मुझे जब-जब आवश्यकता हुई उन्होंने कभी-भी अग्रिम देने से इंकार नहीं किया। न सिर्फ मेरे अपितु संस्था के हर कर्मी के दुख-सुख में उन्होंने दिल खोलकर सहयोग किया।

खबरों-संपर्को का समुद्र

पप्पू फरिश्ता जी के साथ काम करते हुए उनकी एक और खूबी से भी वाकिफ हुआ। वे विशुद्ध रूप से एक व्यवसायी और राजनीतिज्ञ रहे हैं। अखबार निकालकर समाज व लोकहित में सेवा देने का उनका प्रयोजन अपने पिता द्वारा विरासत में मिली हुई पत्रकारिता को जिंदा रखना है। इसी के चलते उन्होंने जनता से रिश्ता के नाम से मिड-डे अखबार का प्रकाशन शुरू किया। जनता से रिश्ता...पप्पू फरिश्ता यह टैग लाइन राजनीति के दौरान लोगों के बीच बहद प्रचलित रहा और यह टैग लाइन ही उनकी पहचान बन गई थी। उन्होंने इसी टैग लाइन जनता से रिश्ता को ही अपने अखबार का टाइटल बनाया ताकि लोग इस अखबार से भी जुड़ाव महसूस कर सकें। पत्रकारिता का क,ख नहीं जानने वाले फरिश्ता जी चलते-फिरते पत्रकार हैं उनके पास सूचनाओं और खबरों का ऐसा भंडार है कि संस्था में काम करने वाले रिपोर्टर्स को खबर के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। राजनीतिक, सामाजिक, आपराधिक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर ऐसी नजर की फिल्ड में काम करने वाले रिपोर्टर को भी घटना की जानकारी वे आफिस में बैठे-बैठे देते हैं। उनके संपर्क और सूचनासूत्र देख हर कोई स्तब्ध रहता है। किसी भी विषय पर मंत्रियों से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों से वे बेझिझक धड़ल्ले से मोबाइल पर ही जानकारियां जुटा लेते हैं। उनकी बेबाकी, निडरता और हरफनमौला अंदाज लाजवाब है। पत्रकारिता के अपने बीस साल के सफर के दौरान मैंने जनता से रिश्ता में उनके साथ जुड़कर सबसे लंबा समय गुजारा है। इस दौरान उनसे जो सम्मान और स्नेह मिला उससे स्थायित्व और भविष्य को लेकर मेरा संशय दूर हुआ है। इससे पहले छोटी सेलरी, अस्थिरता के चलते हमेशा मन में भविष्य को लेकर डर बना रहता था, लेकिन जब से फरिश्ता जी का सानिध्य मिला चिंता भी खत्म हो गई। इससे पूरी निष्ठा और एकाग्रता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पा रहा हूं।


ज़ाकिर घुरसेना,राजनीतिक संपादक

पिता के सपनों को पूरा करता हुआ एक पुत्र: नाम के अनुरूप काम भी

त्तीसगढ़ में पत्रकारिता के जनक माधवराव सप्रे को कहा जाता है। उन्होंने सन 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र के नाम से पेंड्रारोड से एक मासिक समाचार पत्र के रूप में प्रकाशित किया था। जो प्रकाशित रायपुर से ही होता था इसके संपादक और प्रकाशक माधवराव सप्रे ही थे। फिर छत्तीसगढ़ का प्रथम दैनिक समाचार पत्र महाकौशल प्रकाशित हुआ जो पहले साप्ताहिक के रूप था बाद में उसे दैनिक प्रकाशित किया जाने लगा । इसके संपादक पंडित रविशंकर शुक्ल थे। इसी तरह युगधर्म, महाकोशल, अग्रदूत, नईदुनिया जो बाद में देशबंधु के नाम से प्रकाशित हुआ और नवभारत, नवभास्कर जो बाद में दैनिक भास्कर के नाम से प्रकाशित हुआ, अमृतसंदेश, समवेत शिखर, स्वदेश और अब लगभग पूरे छत्तीसगढ़ में सैकड़ों की तादात में समाचार पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। पूरे समाचार पत्र पत्रिकाओं का नाम नहीं दे पा रहे हैं। अभी दोपहर का एक मात्र और पहला अख़बार जनता से रिश्ता के प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता के पिता स्व पंडित गुलाम अली फरिश्ता ने भी सन 1957 में ठोकर और सन 1960 में नूतन भारत के नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। वे सजग पत्रकार माने जाने जाते थे और वे रायपुर प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में से एक माने जाते हैें। उन्हें पंडित की उपाधि दी गई थी। जनता से रिश्ता के प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता ने उनके सपनों को पूरा करते हुए और आगे बढ़ाते हुए जनता से रिश्ता अख़बार का प्रकाशन सन 2013 में प्रारम्भ किया। इस दौरान उन्हें काफी आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने अखबार का प्रकाशन बंद नहीं किया क्योंकि पिता के सपनों को पूरा और आगे बढ़ाना था। 9 साल पहले जो कर्मचारी कार्यरत थे, अधिकतर काम कर रहे है। संपादक सनत चतुर्वेदी जी, सिटी चीफ अतुल्य चौबे, कैलाश यादव रामकुमार परमार सहित काफी तादात में वरिष्ठ कर्मचारी कार्यरत है। इस दौरान वे कर्मचारियों को कभी भी किसी भी प्रकार से परेशानी आने नहीं दी। चाए वह कितना बड़ा भी आर्थिक परेशानी हो या पारिवारिक। कोरोना काल में एक ओर जहां बड़े-बड़े पब्लिकेशन सेंटर में कर्मचारियों की तनख्वा आधी कर दी गई थी और कर्मचारियों की छटनी भी की जा रही थी उस परिस्थिति में भी जनता से रिश्ता,समाचार पत्र के कर्मचारियों को समय पर पूरा वेतन दिया गया। एक कर्मचारी भरत यादव के सुपुत्र का निधन कोलकोता में हो गया था,कोरोना काल के दौरान जब चारों तरफ हाहाकार मचा था, तब उस विकट समय में भी जनता के रिश्ता के प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता ने हवाई जहाज की आने जाने की टिकट देकर बच्चे की डेथबाडी लाने कोलकोता भेजा। इसी तरह कई कर्मचारियों के भाई या सगे संबंधियों का दुर्घटना हो जाने पर भी आर्थिक रूप से मदद की। जिसे आज तक वापस नहीं मांगा। वे संस्था छोड़कर जा चुके लोगों की भी मदद करने से पीछे नहीं रहते ऐसे कई कर्मचारी है जिन्हें संस्था छोडऩे के बाद भी मदद किया। संपादक सनत चतुर्वेदी को सोमनाथ यात्रा,स्वास्थ्य बिगडऩे के दौरान, उनके पिताश्री के देहावसान के समय अग्रिम आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। एक वक्त ऐसा भी आया जब खुद प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता हार्टअटेक आने पर अस्पताल में भर्ती थे और होश आने पर आंख खुलते ही सबसे पहला सवाल यही था कि आज सात तारीख है कर्मचारियों को वेतन का भुगतान हुआ कि नहीं, उन्होंने अपने मातहत कर्मचारियों को तुरंत आदेश देकर वेतन का भुगतान कराया। ऐसे सैकड़ों अनगिनत लोगों की मदद की जिन्हें वो जानते भी नहीं थेे। कोई पारिवारिक या अन्य पीडि़त अखबार के दफ्तर में पहुंच कर अपनी पीड़ा बताते हैं तो तुरंत 5-10 हजार की आर्थिक रूप से मदद कर उनके दु:ख भरे क्षणों में खड़े होकर पप्पपू फरिश्ता मदद के लिए हमेशा आगे आ जाते है। अखबार के माध्यम से हर पीडि़त जनता से सरोकार रखने वाले पप्पू फरिश्ता अपने नाम के अनुरूप गुणों को भी चरितार्थ कर रहे हैं। हर रोज अखबार के दफ्तर में पीडि़तों की दस्तक ही फरिश्ता के लिए दुआ बनकर आ रही है। जो पीडि़त मानवता के लिए उन्हें समर्पित होने की प्रेरणा देती है। मुझे जनता से रिश्ता ज्वाइन किए लगभग तीन साल हुए है, इसके पहले मैं राष्ट्रीय अखबार दैनिक भास्कर में सेवाएं दे रहा था जहां मेरा काम विज्ञापन एवं लाइजनिंग का रहा, चूंकि पत्रकारिता मेरा शौक था, इस बात को मैंने पप्पू फरिश्ता जी से शेयर किया तब उन्होंने मुझे राजनीतिक संपादक के पद पर नियुक्त कर लिखने केलिए प्रेरित किया। यह काम मेरे लिए नया नहीं था, लेकिन लेखनी का कार्य एक प्रकार से नया ही था, कहां से शुरू करूं और कहां की राजनीति या विषय पर कलम चलाऊं मेरे लिए क्लीष्ट था, मगर प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता जी के अलावा केके नायक जी,इरफान कुरैशी जी, मनोज त्रिवेदी जी, अतुल जैन जी,विजय जैन जी, अजय जैन जी, आर.के गुप्ता जी, नवीन जैन जी, पंकज टावरी जी, ओंकार सिंह जी, अफसर भाई जी,सीपी शर्मा जी, शेख आबिद जी, फिरोज भाई की हौसला अफजाई ने मेरा मार्ग प्रशस्त कर दिया। वैसे भी मेरा काम लाइजनिंग का था, इस वजह से बड़े बड़े पत्रकारों के रायपुर आगमन पर एयर पोर्ट से रिसीव करना और उनके साथ रहना मेरा काम था जिसमें डाक्टर वेद प्रताप वैदिक जी,श्रवण गर्ग जी एन रघुरमन जी, स्व.कल्पेश याज्ञनिक जी ,विजय शंकर मेहता जी, प्रदीप पंडि़त जी, देवप्रिय अवस्थी जी, राजीव सिंह जी, रतनमणिलाल जी आदि नाम प्रमुख हैं। इसके अलावा शहर के वरिष्ठ पत्रकार आसिफ इकबाल जी, शंकर पांडे जी,रूचिर गर्ग जी, शिवदुबे जी, राजेश जोशी जी, अनिल पुसदकर जी, नवाब फाजिल जी,राजकुमार सोनी जी, राजेश जान पाल जी, रविंद्र गिन्नोरे जी, निजाम भाई, असगर भाई, फारूख मेमन जी गरियाबंद, मजहर खान जी, विजय मिश्रा जी, विद्याशंकर शुक्ला जी, अनिल मानिकपुरी जी अंबागढ़ चौकी, सुधीर जैन जी जगदलपुर, डीएस नियाजी जी जगदलपुर, अमित मिश्रा जी, सैयद हबीब जी, बिलासपुर, धनंजय वर्मा जी, विरेंद्र शुक्ला जी, इंदर कोटवानी जी तिल्दा नेवरा, ताहिर हैदरी जी, बृजेश चौबे जी के अलावा अन्य वरिष्ठ पत्रकारों का भी सानिध्य व आत्मीयता की वजह से मुझे पत्रकारिता करने का शौक जागा। मैं इन सबसे काफी प्रभावित था। जनता से रिश्ता में प्रति सप्ताह प्रकाशित होने वाला कालम खुसुर-फुसर भी श्री केके नायक व्दारा सुझाया हुआ है। वैसे भी जनता से रिश्ता के पप्पू फरिश्ता जब से अखबार शुरू किए तब से वे मुझे बुला रहे थे मैं यही कहता था कि वक्त आएगा मैं जरूर आउंगा, और तीन साल पहले वह वक्त आ ही गया । मैं इस काम में अनाड़ी होकर भी पप्पू फरिश्ता के क्लास में खिलाड़ी बनकर उभरा। पप्पू फरिश्ता अखबार मालिक नहीं ये तो मेरे लिए पत्रकारिता के जीता जागता यूनिर्वसिटी साबित हुए। मैं उनके राजनीतिक दक्षता का कायल हूं। पप्पू फरिश्ता जी का राजधानी से दिल्ली तक देश के सभी बड़े राजनेताओं तक पैठ और प्रत्यक्ष रूप से संपर्क ने मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में देश और प्रदेश की राजनीति समझने का अवसर मिला। इन तीन सालों में मैंने देखा कि जनता से रिश्ता जनता से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाता आ रहा है। सामाजिक बुराइयां जैसे जुआ,सट्टा नशाखोरी और अन्य प्रकार के अड्डे बाजी के समाचारों को जनता से रिश्ता में प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है। प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता का यहीं सोच है कि हमारे वजह से किसी का घर उजडऩे से बच जाता है तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।

कर्मचारियों को मकान और वाहन दिलाने में मदद की

जनता से रिश्ता में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को प्रेस कर्मचारियों के कोटे से मिलने वाले मकान दिलाकर लोगों के सिर पर छत का इंतजाम भी कराया। जनता से रिश्ता में ऐसे बहुत से कर्मचारी जिनके पास मकान नहीं थे, आज सभी लोगों के सिर पर छत दिया। जनता से रिश्ता में काम करने वाले दर्जनों सब एडिटरों और सहायकों के साथ कम्प्यूटर में काम करने वालों के साथ हाकरों को भी टू-व्हिलर फाइनेंस करवा कर दिया जिससे लोगों का जीवन स्तर तो उठा ही साथ ही समाज में प्रतिष्ठा भी बनी की। एक ऐसे अखबार में काम करता है जिसका मालिक लोगों की खुले हाथों से मदद करने के साथ सुविधाएं भी देता है। जनता से रिश्ता केम्पस में रहने वाले कर्मियों को मकान और भोजन फ्री दिया जाता है।


कैलाश यादव, सहायक संपादक

एक इंसान जो अपने कर्म से बन गया फरिश्ता...

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता जन सरोकार को लेकर प्रकाशित होते शानदार दस साल पूरे कर लिए इस दौरान पत्रकारिता जगत में कई उतार चढ़ाव देखने को मिला। अखबार के प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता ने पूरी ईमानदारी और निष्ठा से अखबार को जनता की आवाज बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। जनसरोकार के मुद्दे को उठाने वाला यह पहला अखबार है जो बिना लाग-लपेट के जो दिखेगा वो छपेगा के टैग लाइन पर दौड़ रहा है। एक ऐसा इंसान जो स्कूल की पढ़ाई के दिनों से ही संघर्ष शुरूआत कर,आज उस मुकाम पर पहुंच गया जहां लोग फक्र से फरिश्ता कहकर बुलाते है। जिसने जीवन में नित्य आने वाले संघर्षों को प्रेरणा उससे सीख अर्जित किया और जीवन के झंजावतों को स्कूल मानकर लगातार परीक्षा देते आ रहे है और हर मुकाम पर सफलता अर्जित कर रहे है। हम बात कर रहे है मिडे-अखबार के प्रबंध संचालक पप्पू फरिश्ता की जो बहुप्रतिभा के धनी है। पत्रकारिता तो उन्हें विरासत में मिली है। युवावस्था में राजनीति की ओर रूझान होने के कारण कांग्रेस के विभिन्न पदों को सुशोभित किया। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था, तब दिल्ली से लेकर भोपाल तक कांग्रेस के दिग्गजों के सानिध्य में राजनीति का ककहरा सीखा और उसे जीवन में चरितार्थ किया। राजनीति पप्पू फरिश्ता का पेशा नहीं सेवा का मार्ग था। 70-80 के दशक में राजनीति के प्रकांड पंडि़त बन गए। बड़े-बड़े राजनेताओं और मंत्री विधायकों का तांता पप्पू फरिश्ता के निवास पर लगा रहता था। मध्यप्रदेश का ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं था जो युवा तुर्क पप्पू फरिश्ता को जानता नहीं था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पंडित श्यामाचरण शुक्ल, अर्जुनसिंह, दिग्विजय सिंह,कमल नाथ, माधवराव सिंधिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुंदर लाल पटवा, कैलाश जोशी, उमाभारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान सहित केंद्रीय मंत्रियों और नेताओंं से सीधा संपर्क रहा। राजनीति के साथ पप्पू फरिश्ता समाज सेवा से भी जुड़े रहे। माता-पिता से मिली जनसेवा की शिक्षा को पप्पू फरिश्ता ने आदेश मानकर आजीवन सेवा करने का संकल्प लिया।

जब सन 2000 में मध्यप्रदेश का विभाजन हुआ और छत्तीसगढ़ बना तो प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने। पप्पू फरिश्ता का अजीत जोगी से तब से संबंध रहा है जब वे रायपुर के कलेक्टर हुआ करते थे। सीएम हाउस में पप्पू फरिश्ता की सीधे पहुंच रही। सैकड़ों की भीड़ में भी अजीत जोगी पप्पू फरिश्ता को आवाज लगा कर अपने साथ बुला लेते थे। ऐसा नेता जो प्रदेश के बड़े-बड़े नेताओं के चहेते रहे। जिसने कभी कोई पद नहीं मांगा। संगठन और सरकार के काम को पूरी तन्मयता के साथ निभाया। तीन साल कब खत्म हुआ किसी को कुछ समझ ही नहीं आया। विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ छत्तीसगढ़ चुनावी हलचल शुरू हो गई। दिसंबर 2000 में चुनाव परिणाम कांग्रेस के अपेक्षा के प्रतिकूल आया। 39 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। भाजपा को पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के कारण जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य बनाया जनता में दोनों हाथों भाजपा को वोट देकर सत्तारूढ़ किया। कांग्रेस विपक्ष में आ गई। पप्पू फरिश्ता कांग्रेस के संक्रमण काल से पार्टी को सत्तारूढ़ होने के बाद से आज तक मजबूती से डटे हुए है। वर्ष 2013 में जन सरोकार को लेकर राजधानी रायपुर में मुबंई-दिल्ली में दोपहर में प्रकाशित होने वाले सामना और जनसत्ता के तर्ज पर मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता का प्रकाशन शुरू किया। वहीं चटख कलेवर पठनीय सामग्री के साथ प्रदेश के पहले मिड-डे अखबार को जनता में हाथों हाथ उठाया, कुछ ही दिनों में जनता से रिश्ता जनता के जुबां पर आ गई। दोपहर के 12 बजते ही लोगों की निगाह जनता से रिश्ता के दस्तक का इंतजार करती रहती है। जनता से रिश्ता के हजारों पाठक जुड़ते गए और कारवां बनता गया। जिला प्रशासन से लेकर मंत्रालय, मंत्रियों के बंगले, राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों, सार्वजनिक स्थलों, सरकारी कार्यालयों, होटल, किराना-कपड़ा बाजार, सराफा, चाय-पान ठेलों राजधानी के 70 वार्डों के घरों में जनता से रिश्ता ने दस्तक दी है।

जनसरोकार को उठाने का माद्दा रखने वाला अखबार

जनता से रिश्ता समाज में फैले बुराइयों गांजा, अफीम, नशीली दवाई, हुक्काबार, अवैध शराब की तस्करी के खिलाफ शुरूआत से ही मोर्चा खोलकर बेबाक लिखना शुरू किया। पप्पू फरिश्ता ने एक ऐसे अखबार की कल्पना की थी जो समाज और जनता की आवाज बनकर लोगों की मदद कर सके। उसी मार्ग पर चलते हुए लगातार गांजा-शराब तस्करी, महिला उत्पीडऩ, बाल अधिकार शोषण, भू-माफिया, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार,ब्लेकमेलिंग के खिलाफ खबर प्रकाशित करने में कोई कोताही नहीं बरता है। कई बार अखबार में तस्कर, भू-माफिया के खबर छापने से रोकने के लिए धमकी-चमकी भी मिला। लेकिन किसी से बिना समझौता किए पप्पू फरिश्ता ने अखबार को धारदार बनाए रखने में अडिग रहे। जनता से रिश्ता में प्रकाशित होने वाले जनसरोकार की खबरों से शासन-प्रशासन को सटोरियों और तस्करों, भू-माफियाओं की गतिविधियों का क्लू मिलते ही पुलिस प्रशासन ने धड़ाधड़ कार्रवाई करते हुए समाज में फैली बुराइयों को जड़ से खत्म करने में कामयाबी मिली। जनता की लड़ाई का माद्दा रखने वाला देश का पहला अखबार है जो पीडि़त मानवता के लिए हर संभव मदद के लिए हमेशा आगे रहा। अब लोग यहां तक कहने लगे है कि जिसका कोई नहीं उसका जनता से रिश्ता है, यही वो फरिश्ता है जो दबे-कुचले समाज से प्रताडि़त लोगों की मदद करने में सबसे आगे है। इसलिए जनता से रिश्ता में प्रकाशित होने वाले जनसरोकार से जुड़ी खबरों को रोकने और प्रलोभन देने वालों की शिकायत सीधे प्रबंधन से करने का नोटिस हर खबर के साथ टीप के रूप में प्रकाशित करते है। ताकि जनसरोकार का कारवां हमेशा अबाध गति से चलता रहे।

लोकप्रियता से शिखर पर

जनता से रिश्ता जनता के लिए जन सरोकार का मुद्दा जो दिखेगा वो छपेगा की टैग लाइन मानकर जन कल्याण के मार्ग पर काम कर रहा है। राजधानी में और भी अखबार प्रकाशित होते है लेकिन जनता से रिश्ता का जनता से सीधा दिल से रिश्ता जुड़ा हुआ है। राजधानी में निकलने वाले तमाम अखबारों में जनता से रिश्ता का अलग ही पहचान है। राजधानी के लोगों की जुबां पर बस एक ही नाम है जनता से रिश्ता। स्लम बस्तियों की मुसीबतों की मारी और समाज की सताई हुई पीडि़तों का मजमा जनता से रिश्ता सुबह से शाम तक लगा रहता है। राजधानी में पीडि़तों को लोग जनता से रिश्ता दफ्तर में जाने की सलाह देते है। एक विश्वास की डोर सीधे जनता से जुड़ा रहना कि न्याय दिलाने में मदद करने वाला अखबार है जहां फरियाद करने पर सीधे शासन प्रशासन तक बात पहुंच जाती है और फरियादी को न्याय मिल जाता है। पिछले दस सालों में सैकड़ों पीडि़तों को जनता से रिश्ता ने मार्गदर्शन देकर अपने हक के लिए लडऩे का साहस दिया जिसमे ंसैकड़ों पीडि़तों ने अपने हक की लड़ाई जीती। पप्पू फरिश्ता ने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अखबार को बंद नहीं होने दिया। कोरोनाकाल में स्वयं पप्पू फरिश्ता लोगों के मदद करने सुबह से निकल पड़ते थे। जरूरतमंदों को राशन, दवाई, दूध बिस्किट जरूरतमंदों के घरों में पहुंचाते रहे। स्टाफ में सुबह शाम चाय-नाश्ता इंतजाम करते रहे । कोरोनाकाल के दो साल में बड़े -बड़े मीडिया हाउस में छंटनी, सेलरी में कटौती की लेकिन पप्पू फरिश्ता ने अपने किसी बी कर्मचारी का न तो वेतन काटा और न ही छंटनी की। हर कर्मी के मदद के लिए हमेशा एक पैर पर खड़े रहते है।

अनुशासन प्रिय फरिश्ता काम के प्रति किसी तरह की कोई कोताही बर्दाश्त नहीं करते। कर्मचारियों को आउटपुट और इनपुट पर स्वयं ही मानिटरिंग करते है और अच्छे से अच्छा करने के लिए मार्गदर्शन देते है। अपना बेस्ट परफार्म देने के लिए हर कर्मियों को प्रोत्साहित करते है। अनुशासन से लिए सख्त मगर नारियल की तरह उपर से भले ही सख्त हो लेकिन दिल से बिलकुल नारियल की तरह है। नारियल पानी से सिर्फ प्यास बुझ सकता है और एंटी बायोटिक उर्जा मिल सकता है लेकिन वो ऐसे नारियल हो जो सैकड़ों कर्मियों को दोनों समय के भोजन प्रबंध के साथ समाज में पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के समय भी साथ खड़े होते है। मेरे दोनों बेटियों के विवाह के समय दोनों हाथों से सहयोग दिया जिसे मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं। जब मेरे साथ विपत्ति आई तब पप्पू फरिश्ता मेर साथ खड़े रहे और संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते रहे। मैं उनका आजीवन ऋणी हूं। पप्पू फरिश्ता मुझे कभी भी पैसों की दिक्कत नहीं आने दी कर्ज के बाद भी मुझे वक्त-वक्त पर मदद करते है। पिछले साल मेरी तबीयत खराब होने पर मैं 2-3 माह एडमिट रहा। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फिर मैंने काम की शुरआत की। हर रोज मेरा हौसला बढ़ाते रहे। पप्पू फरिश्ता की पाजीटिव एनर्जी मेरे लिए संजीवनी साबित हुई और मैं मौत को पछाड़ कर फिर जनता की सेवा में जुट गया।

नोट

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता और प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता को ले कर संस्था में कार्यरत पत्रकारों की यह राय उनके अपने निजी विचार है।

दिल्ली कार्यालय:

3/111 ललिता पार्क लक्ष्मीनगर, नई दिल्ली

रजिस्टर्ड कंपनी:

भोले शंकर मार्केटिंग प्राईवेट लिमिटेड

Next Story