एक पुत्र ने पिता की विरासत और सपने को संजोया...
वर्तमान प्रेस क्लब में लगी यह तस्वीर सन 1960 में मनाई गई पत्रकारों की पहली होली मिलन की है...
स्व. पं. गुलाम अली फरिश्ता रायपुर प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में एक थे। सजग पत्रकार के तौर पर उन्होंने साप्ताहिक समाचार पत्र ठोकर (1975) व नूतन भारत (1960) का प्रकाशन किया था। 62 साल पुरानी रायपुर प्रेस क्लब की पहली होली मिलन की तस्वीर जिसमें स्व. पं. गुलाम अली फरिश्ता बाएं से तीसरे नंबर दिखाई दे रहे हैं। तस्वीर में बाएं से प्रथम-स्व.राघवेन्द्र गुमास्ता, स्व. मधुकर खेर, पं. गुलाम अली फरिश्ता, स्व. पं. रामाश्रय उपाध्याय, स्व. गोविंदलाल वोरा, स्व. बसंत तिवारी, प्रमोद श्रीवास्तव एवं पीछे से आखिरी पंक्ति में स्व. एम बोधनकर, संतोष कुमार शुक्ला (तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी) स्व. कमलाकर खेर एवं स्व. रम्मू श्रीवास्तव दिखाई दे रहे हैं। उल्लेखनीय है स्व. पंडित गुलाम अली फरिश्ता मिड डे अखबार 'जनता से रिश्ताÓ के प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता के पिता श्री हैं।
कार्य के प्रति लगन और आत्मविश्वास से लबरेज हैं पप्पू फरिश्ता...
पत्रकारिता की बुलंदी देखना है तो पप्पू फरिश्ता की बुलंदी के आगे सभी बौने हैं, पप्पू फरिश्ता ने अपने दम पर राजधानी से दिल्ली तक जनता से रिश्ता को विस्तार दिया। हाल ही में जनता से रिश्ता का दिल्ली संस्करण का भी प्रकाशन शुरू हुआ है। छत्तीसगढ़ का प्रथम दोपहर का अख़बार जनता से रिश्ता के सफलता पूर्वक नौ वर्ष पूर्ण होने पर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता को बधाई देते हुए कहा कि इस दौर में अख़बार चलाना बहुत ही टेढ़ी खीर है। चूँकि मैं खुद स्वयं पत्रकार रह चुका हूं। 1980-90 के दौर में मेरी पप्पू फरिश्ता से हमारी मुलाकात तीन दशक पहले हुई थी। प्रगाढ़ता 1998 से से आई और 2004 तक पूर्व मंत्री स्वर्गीय झुमुक लाल भेडिय़ा राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और 12 तीन मूर्ति मार्ग में रहते थे जहां पर फरिश्ता और हम साथ-साथ रहते थे। रायपुर से प्रकाशित समाचार पत्र नव भास्कर के गुरूर बालोद का मैं ब्यूरो चीफ भी था। लेकिन तब की पत्रकारिता और अब की पत्रकारिता में जमीन आसमान का फर्क आ चुका है। वर्तमान समय में अख़बार का संपादक सिर्फ संपादक ही नहीं होता बल्कि एक लाइजनर होता है। काम में रखने के पहले उसके व्यक्तिगत सम्पकों को भी देखा जाता है कि इनके आने से संस्था को क्या फायदा हो सकता है। लेकिन उन्होंने इन सब बातों को दरकिनार कर सिर्फ पत्रकारिता करने वालों को ही संस्थान में रखा, भले ही संस्था को इनसे कोई आर्थिक फायदा न हो। पप्पू फरिश्ता जी ने अखबार निकालकर समाज व लोकहित में सेवा देने का उनका प्रयोजन पिता से विरासत में मिली हुई पत्रकारिता को जिंदा रखा हुआ है। वे बंशीलाल घृतलहरे और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम के साथ दिल्ली आते थे। जब अरविन्द नेताम की तबीयत खऱाब हुई तब पप्पू फरिश्ता ने खूब खिदमत की। मैं भी उनके साथ रहता था। पप्पू फ़रिश्ता जी किसी भी विषय पर मंत्रियों से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों से वे बेझिझक धड़ल्ले से मोबाइल पर ही जानकारियां जुटा लेते हैं। उनकी बेबाकी, निडरता और हरफनमौला अंदाज लाजवाब है। जिसका मैं कायल हूँ। अभी प्रदेश में दोपहर का एक मात्र और पहला अख़बार जनता से रिश्ता के प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता है। पिता स्व. पंडित गुलाम अली फरिश्ता ने भी सन 1957 में ठोकर और सन 1960 में नूतन भारत के नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। वे सजग पत्रकार माने जाने जाते थे और वे रायपुर प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में से एक है। जनता से रिश्ता के प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता ने उनके सपनों को पूरा करते हुए और आगे बढ़ाते हुए जनता से रिश्ता अख़बार का प्रकाशन सन 2013 में प्रारम्भ किया। इस दौरान उन्हें काफी आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने अखबार का प्रकाशन बंद नहीं किया । क्योंकि पिता के सपनों को आगे बढ़ाना था। मेरे सामने ही करोड़ों रूपये लोन लेकर और अपनी पुस्तैनी संपत्ति को गिरवी रखकर अख़बार का संचालन किया। कभी बंद की सोच फरिश्ता के दिमाग में नहीं आया। मैं उनके राजनीतिक दक्षता का भी कायल हूं। पप्पू फरिश्ता जी का राजधानी से दिल्ली तक देश के सभी बड़े राजनेताओं तक पैठ और प्रत्यक्ष रूप से संपर्क मैंने खुद देखा है। उनके साथ रहकर मुझे राजनीति समझने का अवसर मिला। मैंने देखा कि जनता से रिश्ता जनता से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से प्रकाशित कर आज जनता से रिश्ता पत्रकारिता में लीड कर रहा है। सामाजिक बुराइयां जैसे जुआ,सट्टा नशाखोरी और तस्करी को निर्भिकता से प्रकाशित कर रहा है। जनता से रिश्ता के प्रधानसंपादक पप्पू फरिश्ता जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ.
पप्पू फरिश्ता से मेरे साथ तीन दशकों से मुलाकात पारिवारिक संबंध और अंतरंग मित्रता बनी हुई है। मैं उनके अथक मेहनत कार्यक्षमता, अनुशासन प्रियता और सभी के प्रति सम्मान और मदद करने की भावना से सदैव अभिभूत रहा हूं। मेरे द्वारा उन्हें आराम करने की सर्वथाआग्रह किया जाता है किंतु उनकी कार्यक्षमता के आगे अंतत: मुझे ही खामोश होना पड़ता है। कार्य के प्रति लगन, परिश्रम और आत्मविश्वास उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है वह हाजिर जवाब देने में माहिर है और उत्तेजित भी हो जाते हैं किंतु उनमें उतनी ही संवेदनशीलता भी है।
पप्पू फरिश्ता की एक और प्रशंसा करने योग्य बात यह है कि स्टाफ के साथ वे अभिभावक की तरह व्यवहार करते हैं। वेबपोर्टल एवं प्रिंट मीडिया के साथियों की मदद, उनके स्वास्थ्य के प्रति सजगता, परिवार की स्थिति की जानकारी रखना और समय-समय पर उनको आर्थिक मदद करना उनके स्वभाव में शामिल है। पढ़ाई करने वाले कर्मियों को तथा शासकीय सेवा में जाने के लिए तैयारी कर रहे साथियों को भी खुलकर आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं एवं प्रोत्साहित करते हैं।प्रिंट मीडिया में कार्य करना अब कठिन होता जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के दौर में भी उनकी मेहनत ने रंग ला रही है जिसे उन्होंने एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है और वे सफलता के साथ आगे बढ़ रहे हैं यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज 100 से अधिक स्टाफ को रोजगार प्रदान करना हर किसी के लिए संभव नहीं है किंतु फरिश्ता जी ने इस चुनौती को भी सफलता में परिणित कर दिया है।
सहिष्णु और संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी फरिश्ता जी
वैसे तो मैने पत्रकारिता की शुरूवात सन 1988 में प्रदेश के सबसे पुराने अखबार दैनिक महाकोशल से शुरू की थी। पत्रकारिता में जुडऩे से पहले एक खास बात यह थी कि मैं पहले से ही व्यवसाय से जुड़ा हुआ था। पत्रकारिता से जुडऩा मेरे लिए संयोग की बात थी। हुआ यूं कि मेरे भ्राता व्यवसायी होने के साथ ही राजनीति से भी जुड़े हुए थे। यही कारण रहा कि उनका संबंध उस दौर में सभी अखबारों के संपादक एवं सिटी रिपोर्टरों से रहा। जिससे उनका संबंध सभी से काफी घनिष्ट हो गया था। इसी घनिष्टता के चलते कई पत्रकार बड़े भ्राता के आफिस में आया जाया करते थे। इन्ही में महाकोशल के संपादक माननीय जयशंकर नीरव जी भी हुआ करते थे। उन्होंने ही जोर देकर कहा कि आखिर रामकुमार सिंह को कितना आफिस में बिठकर रखोगे। इसे महाकोशल प्रेस शाम को भेज दिया करो और रात में घर लौट जाएगा। मैं इसे अच्छी तरह से पत्रकारिता सीखा दूंगा जो भविष्य में इसके काम आएगा। संपादक नीरव जी का यह सुझाव बड़े भैया को अच्छा लगा और उन्होंने प्रेस में काम करने के लिए जाने अनुमति दे दी। यहीं से मेरी पत्रकारिता की शुरूवात हुई। यहां कुछ सालों तक काम करने के बाद उसी दौर में नया अखबार दैनिक नवभास्कर शुरू हुआ था। इस अखबार में उस दौर में माननीय आसिफ इकबाल सिटी चीफ हुआ करते थे। चूंकि इकबाल जी भैया के अच्छे मित्र थे। उन्होंने ही भैया से कहा रामकुमार कहां इधर-उधर भटक रहा है, मेरे पास उसे नवभास्कर भेज दो। इसके मैनै इकबाल जी के साथ नवभास्कर में सेवाएं देने लगा और यहां यह सेवा लंबे समय 18 साल तक चला। यहां मेरे साथ एक कहावत सच साबित हुई कि पत्रकार-पत्रकार का ही दुश्मन होता है। इसी के चलते यहां के एक पत्रकार का साजिश का शिकार हो गया तथा इस अखबार से बाहर होना पड़ा। इसके बाद जनसत्ता सहित अन्य छोटे-छोटे अखबारों में काम किया। इसी दौरान कांग्रेसी नेता सुधीर कटियार जी जो मेरे अच्छे मित्र भी हैं, उन्होंने आज से करीबन 4 साल पहले यह प्रस्ताव दिया कि मेरे मित्र हैं पप्पू फरिश्ता उनके अखबार जनता से रिश्ता में काम करोगे। उनका यह प्रस्ताव मुझे अच्छा लगा और मैने काम करने की हामी भर दी। इसके बाद उन्होंने दूसरे दिन मेरी मुलाकात जनता से रिश्ता अखबार के प्रबंध संपादक और प्रमुख कर्ताधर्ता से कराई। इसके बाद मैने अपनी सेवा अखबार जनता से रिश्ता में देना शुरू कर दिया। तब से लेकर आज तक बिना रूकावट के अपनी सेवाएं दे रहा हूं। इन 4 वर्षों के कार्यकाल में उनकी ओर से कभी भी संपादकीय एवं लेख पेज को लेकर कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। इसी वजह से देश के नामी लेखकों के लेख देश के प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा एवं कांग्रेस के खिलाफ हो या समर्थन में बेधड़क होकर छापते रहे हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता था कई अच्छी लेख मेरी नजरों से चूक हो जाती थी और उनकी नजर में पड़ जाए तो यह जरूर कहते थे कि मैने एक लेख देखा है जो मुझे अच्छा लगा लेने लायक लगे तो ले लेना। कुल मिलाकर किसी भी लेख को लेने दबाव कभी नहीं डाला। यही कारण है कि विगत 4 वर्षों से बिना तनाव मुक्त, निर्भय होकर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही फरिश्ता जी शुरू से ही अपने कर्मचारियों के प्रति हितैषी रहे हैं तथा बिना बोले ही हर सुख-दुख में कर्मचारियों की आर्थिक मदद करना उनकी आदत में शुमार है। शरूवाती दौर में मुझे याद है कि पारिवारिक कारणों के चलते मैं आर्थिक तकलीफ में था, मैने कारण बताकर आर्थिक मदद मंागी उन्होंने तत्काल मदद की। आज भी समय-समय पर मदद करते हैं। उनमें एक खास बात यह भी है कि राजधानी के बड़े-बड़े अखबार कोरोनाकाल में कर्मचारियों की छटनी कर रहे थे, वहीं प्रेस में कार्यरत कई कर्मचारियों के मासिक वेतन में कटौती कर रहे थे। इस दौर में भी फरिश्ता जी अपने कर्मचारियों को समय पर बिना कटौती के वेतन दिए और तो और वेतन देने की 7 तारीख निर्धारित है तो 7 को ही वेतन का भुगतान करते हैं, भले ही बैंक बंद हो। दूसरे बड़े अखबारों में यदि मासिक वेतन देने के दिन अवकाश के चलते बैंक बंद है तो मासिक वेतन अगले दिन के लिए टाल दिया जाता है। यह मीडिया कर्मियों में भी चर्चा का विषय है।
जन-जन से रिश्ता को बखूबी निभा रहा है जनता से रिश्ता
गांधी की प्रभात फेरी की परंपरा को पप्पू फरिश्ता ने बरकरार रखा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद मिश्रा ने जनता से रिश्ता अख़बार के शानदार नौ वर्ष पूरा होने पर बधाई देते हुए कहा कि पप्पू फरिश्ता जी खुद अपने आप में एक संस्था हैं। वे चलते फिरते ही काम करते रहते हैं। अभी उम्र के लगभग साठ बसंत देख चुके पप्पू भाई आज भी काम के मामले में जवान को भी पीछे छोड़ दते है आज भी वे 18 से 20 घंटे काम करते हैं। पप्पू फरिश्ता जी से मैं सन 2000 के आसपास राज्य बनने के पहले मुलाकात किया था। वे जुझारू और संघर्षशील व्यक्ति हैं। कार्य करने की अपार क्षमता है जो उस समय थी वह आज भी है। वे सदैव कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहे हैं। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रथम चेयरमेन उन्हें बनाया गया। वे न कि अल्पसंख्यक बल्कि अन्य समाज के लोगों को भी जोड़कर कांग्रेस की आधारशिला व रीति-रिवाज में से एक प्रभात फेरी, घर-घर झंडा लगाने को शहर के सभी वार्डो में निरंतर चलाया, जिसे मैंने स्वयं देखा था। हम कभी ऐसा सुनते थे कि गांधी जी द्वारा पूरे देश में प्रभातफेरी निकाल कर रघुपति राघव राजा राम की धुन लोगों को सुनाया जाता था लेकिन पप्पू फरिश्ता जी ने रायपुर और छत्तीसगढ़ में भी लागू किया था। मैंने यह भी देखा कि 2001 से 2022 तक ऐसा छत्तीसगढ़ का ऐसा कोई प्रभावशाली नेता नहीं था जिससे उनका सम्बन्ध नहीं रहा हो। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पप्पू फरिश्ता ने विशेष रूप से मदद कर सत्ता के शिखर तक पहुंचाया था। उनके विशेष योगदान और मदद उस समय के जीत का आधार भी बना। वे अपने पिताश्री के सपनो को आगे बढ़ाते हुए पत्रकारिता से जुड़कर छत्तीसगढ़ का प्रथम मिड-डे अख़बार जनता से रिश्ता का प्रकाशन भी शुरू किया जो आज तक जारी है। इस बीच काफी आर्थिक परेशानियों का सामना भी उन्हें करना पड़ा लेकिन पिताश्री का सपना था जिसे आगे बढ़ाना उनका काम था, ऐसा समझ कर अख़बार का प्रकाशन जारी रखे। समय समय पर मैं अख़बार के दफ्तर भी जाते रहता हूँ। मैंने भी पत्रकारिता की शुरूआत भाटापारा से शुरूआत की और पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण ही मुझे कांग्रेस के प्रवक्ता का दायित्व मिला जिसे मैंने संगठन को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जनता से रिश्ता के संपादकों, रिपोर्टरों, और कर्मचारियों से भी मुलाकात करता हूँ सभी कर्मचारियों का एक राय है कि विपरीत परिस्थिति में भी वे कर्मचारियों के सामने हौसला गिरने नहीं दिया और पूरी लगन व मेहनत से काम को सुचारु रूप से चलते रहने दिया। जनता से रिश्ता प्रेस के प्रिंटिंग मशीन को स्थापित करने में मेरा भी श्रमदान रहा। कांग्रेस पार्टी में न जाने कितने पदाधिकारी और नेता छत्तीसगढ़ में पप्पू फरिश्ता की देन है। जो देखा जाये तो तादात सैकड़ो में होगा। चुनाव की रणनीति बनाने में फरिश्ता जी पूरे छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश में भी श्रेष्ठ रणनीतिकार के रूप माने जाते हैं। उनके बारे में जितना भी बोला जाये कम है। मैंने यह भी देखा कि कांग्रेस पार्टी के नई दिल्ली में भी अधिकतर बड़े-बड़े नेताओं से उनका व्यक्तिगत सम्बन्ध रहा है। मंै जनता से रिश्ता अख़बार और उसके प्रधान संपादक पप्पू फरिश्ता जी की उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
नोट
मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता और प्रबंध संपादक पप्पू फरिश्ता को ले कर संस्था में कार्यरत पत्रकारों की यह राय उनके अपने निजी विचार है।