छत्तीसगढ़

न्यूज-पोर्टल बना ब्लैकमेलिंग-वसूली का प्लेटफार्म

jantaserishta.com
16 Feb 2021 5:09 AM GMT
न्यूज-पोर्टल बना ब्लैकमेलिंग-वसूली का प्लेटफार्म
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संचालकों-संस्था से जुड़े पत्रकारों का वेरिफिकेशन जरूरी, सरकार और महकमें के अधिकारी भी परेशान

अलुल्य चौबे

रायपुर। देश और प्रदेश में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए न्यूज-पोर्टल और वेबसाइट्स का लोग खुलेआम दुरुपयोग करने लगे हैं। लोग इसे शार्टकट से कमाई का जरिया बनाने लगे हैं। न्यूज पोर्टल की आड़ में ब्लैकमेलिंग और वसूली का गोरखधंधा चल रहा है। इस तरह की कई छोटी-बड़ी घटनाएं भी सामने आ रही हैं। बिलासपुर से संचालित एक न्यूज पोर्टल से संचालकों द्वारा मुंगेली के एक रेंजर से एक करोड़ से ज्यादा वसूली के मामले में कुछ दिन पहले ही एक महिला सहित दो तथाकथित पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है। यही नहीं कुछ संस्थाएं न्यूज वेबसाइट्स के नाम पर विदेशों से भी फंडिंग कर रहे हैं। ऐसे ही आरोप में हालहि में दिल्ली की एक न्यूज पोर्टल के दफ्तर और उससे जुड़े पत्रकारों के घरों में प्रवर्तन निदेशालय ने छापे की कार्रवाई की थी। छत्तीसगढ़ में भी लगभग 45 हजार न्यूज पोर्टल और वेबसाइट्स रजिस्टर हैं जिनमें से लगभग 100 न्यूज पोर्टल्स को राज्य सरकार के संबंधित विभाग ने शार्टलिस्ट कर इंम्पेनलिस्ट किया है। जिन्हें सरकारी विज्ञापन की पात्रता मिली हुई है। इनमें से ज्यादा तर किसी भी अखबार की वेबसाइट नहीं है और इनका आरएनआई नहीं है। बावजूद संबंधित विभाग ने उन्हें इंम्पेनलिस्ट कर सरकारी लाभ देने का रास्ता खोल दिया है। इससे न्यूज पोर्टल वालों को और प्रोत्साहन मिल रहा है।
प्लेटफार्म का वसूली ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल
प्रदेश में भाजपा सरकार से जुड़े और उपकृत अधिकारी-नेताओं ने शार्टकट कमाई का नया रास्ता निकाल लिया है। हर्रा लगे न फिटकिरी रंग चोखा के कहावत को सरकार में बैठे नेताओं और मंत्रियों के चहेतों के साथ पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के मुंह लगे अधिकारी और नेताओं को विभाग में बैठे अधिकारी सरकार के जनसंपर्क फंड को लुटाने के लिए नई सरकार के शपथ के साथ ही वेबपोर्टलों के लिए खजाना खोल दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी ऊपरी कमाई का जरिया बनाए रखने के लिए दोनों पार्टियों के नेताओं और अधिकारियों के बेटे-बेटियों को वेबपोर्टल खोलने की सलाह देकर पत्रकार बनवा दिया और आसानी से कम खर्च में लाखों करोड़ों की कमाई का जरिया लांच कर दिया। इनपेनलमेंट कमेटी में शामिल लोगों को भी नहीं मालूम की वेबपोर्टल का आरएनआई में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। सरकारी विज्ञापन की बाध्यता भी प्रिंट मीडिया की तरह नहीं है। फिर भी मनमर्जी के वेबपोर्टल को धड़ाधड़ लाखों के विज्ञापन जारी कर रहे है। अखबार में 60-40 के रेसो के साथ प्रसार संख्या के आधार पर विज्ञापन दिया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उल्टा बांस बरेली वाला खेल चल रहा है। प्रदेश में दौड़ रहे अधिकांश वेबपोर्टल आरएनआई में न रजिस्टर्ड है और न ही गूगल एनालेस्टिक में यूजर में उनकी गुणवत्ता क्राइटेरिया में है, फिर भी पोर्टलवालों को सरकार में बैठे भ्रष्टअधिकारी एक वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाने पूरे प्रदेश में वेबपोर्टलों का अंबार लगवा दिया है। जो आने वाले सालों में ब्लेक मेलिंग के धंधे के रूप में परिवर्तित हो जाएगा। प्रदेश में अब तो कुकुरमुत्ते की तरह वेबपोर्टल मोबाइल पर चल रहे है और अधिकारियों की मिली भगत से लाखों की कमाई कर रहे है। मार्केट में कम्प्यूटर आईटी इंजीनियरों और साफ्टवेयर का काम करने वालों से 5 से 15 हजार में वेबपोर्टल बनाकर सरकार से हर महीने 50 से एक लाख तक विज्ञापन लेकर सरकारी धन डकार रहे है।
एक आदमी के नाम पर 40-५० डोमिन रजिस्टर्ड
न्यूज पोर्टल की प्रदेश में ऐसी दुकानदारी चल रही है कि लोगों ने इससे लाभ कमाने के एक नाम पर ही कई-कई डोमिन रजिस्टर करा ली है। इसमें से कुछ संचालन स्वयं कर रहें बाकि को दूसरे लोगंों के माध्यम से संचालित करवा रहे हैं ताकि सरकार से ज्यादा विज्ञापन और अधिकारियों-ठेकेदारों से भी ज्यादा वसूली की जा सके। इस तरह के न्यूज पोर्टल संचालित करने वालों में ज्यादातर राजनीतिक दलों, सरकार और संबंधित विभाग के अधिकारियों के नजदीकी और उनसे जुड़े हुए लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं कई अवैध गतिविधियों और कारोबारों लिप्त लोगों के साथ उद्योगपति और रियल स्टेट से जुड़े लोग भी न्यूज पोर्टल संचालित कर रहे हैं।
अपराधी भी न्यूजपोर्टल का संचालक
न्यूज पोर्टल के लिए किसी तरह की पात्रता या अनिवार्यता से संबंधित मापदंड नहीं होने से अखबार की तरह ही कोई भी व्यक्ति एक वेबसाइट बनाकर न्यूज पोर्टल संचालित कर लेता है। अखबारों-चैनलों से जुड़े पत्रकारों के साथ स्वतंत्र पत्राकारिता करने वाले इसे अपना माध्यम तो बना ही रहे हैं। बड़े उद्योगपति, बिल्डर, कारोबारियों के अलावा छुटभैय्ये नेता और अपराध से जुड़े लोग भी न्यूजपोर्टल चला रहे हैं। जेल में बंद अपराधी भी अपने परिजनों-गुर्गो के सहयोग से न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। न्यूज पोर्टलों की बाढ़ से आम पत्रकारों की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। न्यूज पोर्टल चलाने वाले तथाकथित पत्रकार वास्तविक पत्रकारों को भी नहीं बख्शते और पांच-दस हजार में पत्रकार तैयार करने की बात कहकर मजाक भी उड़ाते हैं। ऐसे न्यूज पोर्टलों को सरकार और उसके संबंधित विभाग भी उपकृत कर रहा है जिससे ऐसे पचासों न्यूज पोर्टल रोज पैदा हो रहे हैं।
सरकार की घोषणा से बढ़ा आकर्षण
छत्तीसगढ़ में न्यूजपोर्टल की बाढ़ के पीछे पत्रकार अधिमान्यता और विज्ञापन हासिल करना मुख्य वजह है। न्यूजपोर्टल की आड़ में संचालकों को धमकी-चमकी और चाटूकारिता के रास्ते कमाई का रास्ता तो मिलता ही है। सरकार की घोषणा से भी न्यूज पोर्टल संचालित करने लोगों में दिलचस्पी बढ़ी है। सरकार ने अखबार के न्यूजपोर्टल संचालित करने वालों को भी अधिमान्यता देने की घोषणा की है। वहीं विज्ञापन के लिए न्यूजपोर्टल को इंपैनलमेंट भी किया जा रहा है। इससे इनको सरकारी विज्ञापन मिलना निश्चित हो जाएगा। इसी लालच में पत्रकारिता करने वालों के साथ अन्य लोग भी न्यूजपोर्टल शुरू कर रहे हैं।
ज्यादा कमाई के नाम पर युवाओं को कर रहे गुमराह
न्यूज पोर्टल और वेबसाइट चलाने वाले लोग युवाओं को रोजगार और कम मेहनत में ज्यादा कमाई का झांसा दे रहे हैं। उनसे अपने रजिस्टर्ड डोमिन से न्यूज पोर्टल संचालित कराने के साथ अपने द्वारा संचालित पोर्टल के लिए न्यूज अपलोड और सोशल मीडिया में न्यूज शेयर करवा रहे हैं। इसके बदले उन्हें प्रति न्यूज अपलोड करने के तीन रुपए और सोशल मीडिया में प्रति न्यूज शेयर करने के लिए पांच रुपए तक दिए जा रहे हैं। लेकिन इससे एक दिन में दस न्यूज अपलोड करने के तीस रुपए और दस-बारह न्यूज शेयर करने पर ज्यादा से ज्यादा 70-75 रुपए दिन का बनता है। ऐसे में एक दिन में एक आदमी 100 रुपए ही कमा पाता है। महीने में उसे सिर्फ तीन-चार हजार रुपए ही मिल पाता है जिसके लिए भी पोर्टल संचालक से बार-बार मिन्नते करनी पड़ती हैं। इससे वेबपोर्टल में काम करने वाले युवा अब संचालकों के झांसे को समझने लगे हैं और इससे वेबपोर्टल संचालकों की पोल भी खुलने लगी हैं।
न्यूज पोर्टल की कानूनन मान्यता
सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने की खातिर दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं ताकि सरकार की ऑनलाइन पहुंच को कारगर बनाया जा सके और एक बयान भी दिया जिसमे यहां कहा गया कि दिशानिर्देशों का उद्देश्य सरकारी विज्ञापनों को रणनीतिक रूप से हर महीने सर्वाधिक विशिष्ट उपयोगकर्ताओं वाले वेबसाइटों पर डालकर उनकी दृश्यता बढ़ाना है। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा। हालांकि विदेशी कंपनियों के स्वामित्व वाली वेबसाइट को इस स्थिति में सूचीबद्ध किया जाएगा कि उन कंपनियों का शाखा कार्यालय भारत में कम से कम एक साल से पंजीकृत हो एवं संचालन कर रहा हो।
पत्रकारिता हो रही कलंकित
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। व्यवस्थागत कमियों को दूर करने की पहल के साथ समाज और लोकहित में शोषितों-वंचितों और पीडि़तों के लिए आवाज उठाना पत्रकारिता का धर्म है, लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। मीडिया भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है। लोग इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगे हैं। पत्रकार भी अब पत्रकार नहीं रहा। स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले जहां अखबार, न्यूज पोर्टल की आड़ में आर्थिक लाभ के रास्ते तलाशते रहते हैं वहीं बड़े-बड़े बैनर्स, अखबार और न्यूज चैनल से संबद्ध पत्रकारों को संस्थानों ने पत्रकार की जगह समाचार संकलक और लाइजनर बना दिया है। जिन्हें ये विशेषज्ञता हासिल नहीं है उनकी पत्रकारिता ही संकट में है। अब न्यूज पोर्टलों को माध्यम बनाकर कोई भी आदमी पत्रकारिता के आड़ में व्यवसाय के साथ ब्लेमेलिंग और धौंस दिखाकर वसूली जैसा कृत्य कर रहे हैं।
फेक्ट फाइल
वेबसाइट की बढ़ती भीड़ बनी सरकार के लिए सिरदर्द
डीएवीपी के कानून के अंतर्गत वेबपोर्टल वालों को पत्रकार नहीं माना जाता
वेब पोर्टलों की बाढ़ से सरकार की विज्ञापन नीति डूबने के कगार पर
दो खबर लगाकर सरकार और अधिकारी को ब्लैकमेल करने का अधिकार कर लेता है सुरक्षित
अपने लोगों को उपकृत करने वेबपोर्टलों को विज्ञापन देने की जो नीति बनाई अब वेबपोर्टलों के सामने घुटने टेकते दिखाई दे रही है।
25000 रुपए में निर्माण होने वाली वेबसाइट की तादाद इतनी बढ़ गई है कि अब सरकार के लिए विज्ञापन नीति के अनुसार विज्ञापन देना मुश्किल हो रहा।
डीएवीपी की अधिमान्यता के लिए वेबसाइट को संपूर्ण रुप से रजिस्टर्ड कराने के साथ 30 लाख से ज्यादा विवर्स होना जरूरी।
सबसे ज्यादा खतरा पुलिस विभाग को है पुलिस की हर गोपनीय मीटिंग और हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में फर्जी वेबसाइट वेबपोर्टल वाले उपस्थित रहते हैं।
किसी भी अधिकारी और कर्मचारियों और बड़े नेता को बदनाम कर ब्लकमैलिंग व वसुली का आसान माध्यम।
फर्जी वेबसाइट वेब पोर्टल के कारण वास्तविक पत्रकारों और बड़े अखबार के घरानों की मीडिया के अच्छे ईमानदार घरानों के पत्रकारों की बेइज्जती मनमाने ढंग से करने से भी भ्रष्ट और निम्न दर्जे के ओछी मानसिकता वाले लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
फर्जी पोर्टल माफिया तंत्र और नक्सलियों के समर्थक-विचारक फर्जी पत्रकार और माफिया समर्थक नक्सलाइट के समर्थक अपनी-अपनी वेबसाइट बनाकर कोई भी सरकारी गोपनीय बात देशद्रोही गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं ।


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