ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
खुसुर फुसुर के पाठक ने याद दिलाया कि देश के आज़ाद होने के पहले कई सत्याग्रह हुए उसमें से एक सत्याग्रह किसान आंदोलन भी था जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था बात 1928 की है। आंदोलन की वजह अंग्रेजों द्वारा लगान बढ़ाना था। ऐसा किसान आंदोलन सरदार पटेल के अगुवाई में हुआ जो कि इतिहास में दर्ज हो गया और किसानों की जज्बा,जोश और जुनून को देखते हुए अंग्रेजों को लगान वृध्दि वापस लेना पड़ा। आज के किसान आंदोलन में भी वही जोश,जज्बा और जुनून देखने को मिल रहा है। जब अंग्रेज किसानों का जज्बा देखकर उनकी मांगे मान लिए तो फिर ये तो चुनी हुई सरकार है इनको तो तुरंत किसानो की मांगे मान लेना चाहिए। लगभग एक दजऱ्न बैठकें होने को है लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पाया। 26 जनवरी की घटना से ऐसा लगने लगा था कि किसानों का हौसला पस्त होगा, लेकिन पस्त होने के बजाय दोगुना हो गया । उन पर तरह-तरह के इल्ज़ामात लगे लेकिन अपनी मागो को लेकर कड़कड़ाती ठण्ड और बारिश में भी डटे रहे। क्योंकि तीनों कृषि कानूनों से उनको अपना भविष्य अंधकारमय नजऱ आने लगा है। तभी तो वे मौसम परवाह किये बिना डटे रहे। अब प्रधानमंत्री जी को चाहिये की वे किसानो की भावनाओं की क़द्र कर इसका समाधान निकल कर उनको अपने घर वापस भेजें ।
अति उत्साह में बिप्लव देब
पिछले दिनों त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देब ने एक सभा में कहा कि हमारी पार्टी सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी भाजपा की सरकार बनाएगी। यह अति उत्साह में दिया गया बयान है। बोलने की आज़ादी है कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता में खुसुर फुसुर है कि जिस प्रकार तोडफ़़ोड़ कर कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनी है हो सकता है नेपाल और श्रीलंका में भी प्रयोग किया जा सकता है। हो सकता है वहां के सांसदों को तोड़कर अपनी सरकार बना लें,सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उम्मीद में दुनिया कायम है।
मिथुन दा अब कहीं मिथुन बा तो नहीं
मिथुन चक्रवर्ती 1993 में फिल्म दलाल में प्रमुख भूमिका में आए थे उस समय फिल्म का एक गाना ...चढ़ गया ऊपर रे अटरिया में लोटन कबूतर रे...गुटुर-गुटुर कापी फेमस हुआ था। कही मिथुन दा भाजपा के अटरिया में तो लोटने वाले तो नहीं है? दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत जाने माने फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से उनके निवास में मिले। मिलना भी जरुरी था क्योंकि आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव है। हालांकि मिथुन दादा ने किसी प्रकार की राजनीतिक चर्चा से इंकार किया है जनता में खुसुर-फुसुर है कि इंकार कब इकरार में बदल जाये कहा नहीं जा सकता। इसी बात पर मोहम्मद रफी साहब का एक गाना याद आ गया-ना-ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे, करना था इंकार मगर इकरार तुम्ही से कर बैठे...।
नेपाल को पेट्रोल सप्लाई भारत से
हमारा छत्तीसगढ़ प्रदेश नेपाल या पाकिस्तान बार्डर पर नहीं है कि सस्ता पेट्रोल वहां से ला सकें । दरअसल नेपाल में 22 रुपये और पाकिस्तान में 36 रूपये यहाँ के रेट से कम है। मजे की बात ये है कि नेपाल में बिक रहा पेट्रोल भारत से ही जाता है इसकी सप्लाई इंडियन आयल कारपोरेशन ही करता है। बिहार और यूपी बार्डर के लोग सस्ते के चक्कर में नेपाल से पेट्रोल ला रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के वरिष्ठ मंत्री का कहना है कि पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स कम करने का इरादा नहीं है क्योकि राज्य को पहले से ही राजस्व की प्राप्तियों में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जनता में खुसुर फुसुर है कि भूपेश सरकार को बड़ा दिल कर पेट्रोल डीज़ल के टैक्स में कमी कर जनता को महंगाई से कुछ तो राहत दें और केंद्र सरकार के नक्शे कदम पर ना चलें।
सरकार मोदी जी की या मनमोहन सिंह जी की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल के बढ़ते कीमत पर बयान दिया कि सारी गलती पिछली सरकार की थी, जनता में खुसुर-फुसुर है कि होली आई नहीं और नेता होली की खुमारी में नजऱ आने लगे है। जनता भी भांग के नशे में मदहोश होकर मोदी जी से पूछ रही है कि आप भी तो 7 साल से सरकार चला रहे है आपने उस गलती को सुधारने की कोशिश क्यों नहीं की? आखिर अब किसकी सरकार है आप की या मनमोहन सिंह की।
आग दोनों तरफ लगी हुई है
कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टी में नियुक्ति के बाद से असंतोष की आग भड़क उठी है। भाजयुमो में हुई नियुक्ति के बाद मचा बवाल ठंडा हुआ नहीं था कि अब कांग्रेस के जिला कार्यकारिणी गठन के बाद इधर बवाल मच गया। ऐसे माहौल में कांग्रेस में लगी आग से भाजपाई हाथ भी नहीं सेंक पा रहे हैं, क्योंकि आग उनके घर में भी लगी हुई है।
सिर मुंडाते ही ओले पड़े
भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी व्दारा नव नियुक्त पदाधिकारियों की बर्थ सर्टिफिकेट मांगने से खलबली मच गई है। नेता चारों खाने चित हो गए है। क्योंकि ऐसा किसी भी प्रभारी ने मांग नहीं किया था। अभी भी जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों का पेंच फंसा हुआ है। युवा मोर्चा में सबसे ज्यादा 11 जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। ये तो सिर मुंडाते ही ओले पडऩे वाली बात हो गई।