छत्तीसगढ़

नवरात्रि विशेष

Admin2
11 Oct 2020 3:26 PM GMT
नवरात्रि विशेष
x

लेखक- अजय वर्मा (पूर्व पत्रकार है और ये रायपुर समेत छत्तीसगढ़ की संस्कृति, इतिहास और खान पान के बारे में लिखते हैं)

छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले में माता खल्लारी का सुप्रसिद्ध मन्दिर है। यह जगह महासमुन्द शहर से 23 किमी दूर है। मन्दिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना सुवरमारगढ़ के राजा सन्मान सिंह ने की थी। सुवरमारगढ़ को आजकल कोमाखान के नाम से जाना जाता है। एक बार राजा अपने महल से महासमुन्द जाने के लिए निकले थे। तभी रास्ते में खल्लारी माता उन्हें बुढ़िया के रूप में मिलीं थी और उन्हें पहाड़ी पर मन्दिर बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद उन्होंने साल 1805 के आसपास वहां मन्दिर बनवाया।

खल्लारी छोटा सा कस्बा है मगर इसका इतिहास दिलचस्प रहा है। पहले इसे खलवाटिका के नाम जाना जाता था। छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर के राजा जगन्नाथ सिंह की 38 वर्ष तक शासन करने के बाद साल 1371 में देहांत हो गया था। उन्होंने राज्य का विभाजन कर अपने बड़े बेटे वीर सिंह को 18 गढ़ देकर रतनपुर रियासत के राजा बनाया। वहीं छोटे बेटे देवनाथ सिंह को 18 गढ़ देकर रायपुर का राजा बनवाया। इससे पहले ही इसी वंश के राजा ब्रह्मदेव राय ने रायपुर में ब्रह्मपुरी नामक बस्ती बसाई। यह रायपुर शहर के स्थापना की शुरुआत थी। उन्होंने अपने बेटे रामचन्द्र देव के नाम पर रायपुरा बस्ती बसाया। वहीं दूसरे बेटे हाजी देव के नाम पर हाटकेश्वर नाथ मंदिर खारुन नदी के तट पर बनवाया। राजा ब्रह्मदेव का समय काल सन 748 के आसपास था। उन्ही के आसपास खल्लारी जो कि तब खलवाटिका था बसने लगा था। इतिहासकार यह भी कहते हैं के प्रताप सिंह देव के एक पुत्र लक्ष्मी देव को साल 1293 के आसपास खल्लारी का मंडलेश्वर बनाया गया। यह वंश रतनपुर से निकला था तो स्वाभाविक रूप से अपनी आराध्य माँ महामाया को भी रायपुर की तरह ही खल्लारी में स्थापित किया होगा। सम्भवतः बाद में उन्हें खल्लारी माता के रूप में पूजा किया जाने लगा। रायपुर के रायपुरा बस्ती के आदिवासी कन्या छात्रवास के पास एक उजाड़ किला है। जिसे सम्भवतः राजा ब्रह्मदेव राय ने बनाया था। यहां भी एक खल्लारी मन्दिर है। जिसका इतिहास 600 साल पुराना बताया जाता है। किले का अवशेष कुछ वर्षों पूर्व तक दिखता था। अब भी कुछ टीले दिखते हैं।

महासमुन्द क्षेत्र के बागबाहरा में चंडी माता का मन्दिर है। इस मंदिर को बने अधिक वर्ष नहीं हुए। किन्तु इसका इतिहास पुराना है। पहले यहां पहाड़ की डोंगरी में तांत्रिक अपनी तंत्र साधना करते रहे होंगे। साल 1997 के आसपास पहाड़ी के नीचे चंडी डोंगरी के पास बरसाती नाले को बांधने के लिए बांध बनाने का काम शुरू हुआ। बांध निर्माण में लगे मजदूरों की तांत्रिकों द्वारा की गई पूजा पाठ के अवशेषों जैसे नारियल की खोतली आदि पर नजर पड़ी। फिर वहीं से मूर्ति को नीचे लाकर स्थापित कर विधिवत पूजा अर्चना की शुरुआत की गई। यहां पूजा के समय प्रसाद खाने भालू आते हैं। इसी क्षेत्र के तुमगांव के भी चंडी मन्दिर में पूजा के समय प्रसाद खाने भालू आते हैं। यह जगह भी प्रसिद्ध है।

खल्लारी, चंडी बागबाहरा और चंडी तुमगांव तक जाने का आसन रास्ता सड़क मार्ग है। रायपुर से सभी जगह 50 से 60 किमी की दूरी पर है। तीनों जगह सुबह से जाकर दर्शन उपरांत शाम तक रायपुर लौटा भी जा सकता है। जिन्हें जंगल पर्यटन में रुचि हो इसी मार्ग पर आगे बारनवापारा जंगल भी है। यहां जंगल घूमने और रिसोर्ट में ठहरने की भी व्यवस्था है।


Next Story