दुर्ग। राष्ट्रसंत श्री ललित प्रभ जी महाराज साहब ने कहा कि आनंद और खुशियां जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत है। यह दौलत किसी किस्मत वाले को मिलती है। तिजोरी की दौलत तो हर किसी को मिल जाती है पर ये खुशियोंभरी जिंदगी की दौलत किसी-किसी को नसीब होती है। हर आदमी को अपने जीवन में अच्छे स्वभाव, अच्छी सोच का मालिक होना ही चाहिए। क्योंकि यही वे सद्गुण हैं जो आदमी के वर्तमान को भी उज्जवल बनाते हैं और उसके भविष्य को भी तय करते हैं। तय है- जैसा आदमी का नेचर होता है, वैसा ही आदमी का फ्यूचर होता है। यह जिंदगी अच्छे रंग के साथ नहीं अच्छे ढंग से जी जानी चाहिए। अच्छे नेचर का मालिक बनना चाहते हो तो अपने स्वभाव में पलने वाले गुस्से को गुड बाय कर दो।''
संत प्रवर सोमवार को बांधा तालाब में श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के समापन पर हजारों लोगों को संबोधित कर रहे थे। संतप्रवर ने कहा कि लोगों के साथ हमारे रिश्ते कैसे रहेंगे, ये भी हमारा स्वभाव और व्यवहार तय करता है। क्योंकि जैसा होता है आदमी का स्वभाव, वैसा ही पड़ता है दूसरों पर प्रभाव। अगर आपको लगता है कि आपका चेहरा सुंदर नहीं है तो कोई दिक्कत नहीं, अपने स्वभाव को सुंदर बना लो। क्योंकि आपका स्वभाव सुंदर बन गया तो आप लोगों के दिलों में राज करोगे। सुंदर चेहरा दो दिन अच्छा लगता है। ज्यादा धन दो महीने अच्छा लगता है पर आदमी का सुंदर स्वभाव ये दूसरों को जिंदगीभर अच्छा लगता है। जिंदगी यदि हमें आनंद से जीनी है, तो यह आत्मनिरीक्षण कर लें कि क्या मैं जिंदगी में छोटीे-छोटी बातों में क्रोध और कसाय में घिर जाता हूं, क्या मैं किसी के दो टेढ़े शब्द कहने पर अपने-आपको अपमानित महसूस कर ल क्षमा कर देता हूं।
संतप्रवर ने कहा कि आदमी का शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाता है, यानि यह शरीर भी मिट्टी हैं और सोना-चांदी, हीरा ये मिट्टी के ही कलेवर हैं तो फिर मिट्टी को मिट्टी से सजाने के लिए काहे के लिए इतनी माथाफोड़ी करते हो। इसी का नाम तो मिथ्यात्व है, इसी का नाम संसार है, इसी का नाम दुनिया में फंसना है। अनगढ़े पत्थर को भी जब तराशकर प्रतिमा बनाया जा सकता है, जब पत्थर में से भी प्रतिमा को प्रकट किया जा सकता है, मूर्ति तो पत्थर के अंदर है, आजू-बाजू का कचरा हटाओ तो मूर्ति अपनेआप बाहर निकलकर आ जाती है। ऐसे ही आदमी का अच्छा नेचर होता है, जो बाहर से डाला नहीं जाता, फालतू का कचरा जो आपने भीतर में इक्ट्ठा कर रखा है उसे हटा दो तो आपको लगेगा कि मैं कितना बढ़िया क्वालिटी का इंसान बन गया। जब पत्थर में से प्रतिमा को प्रकट किया जा सकता है तो आदमी को क्यों नहीं सुधारा जा सकता।
संतप्रवर ने आगे कहा कि जब हम दुनिया में आते हैं तो केवल तीन सांसों की जिंदगी लेकर आते हैं। लेकिन फिर भी इस छोटी-सी जिंदगी में वह न जाने कितने कलह के साधन अपने मन में पैदा कर लेता है। केवल तीन सांस की जिंदगी है। पहली सांस है जन्म की। दूसरी सांस लेता है जवान की। तीसरी होती है बुढ़ापे की। एक चैथी सांस और होती है, जिसे चैथी सांस नहीं अंतिम सांस कहते हैं।
संतप्रवर ने कहा कि अच्छे नेचर का मालिक बनने और जिंदगी को स्वर्ग सरीखे आनंद और मिठासभरी बनना चाहते हो तो अपने जीवन से इन पांच दोषों को हमेशा के लिए डिलिट कर दो। वे हैं- स्वभाव में पलने वाला गुस्सा, भीतर में पलने वाला अहंकार-अभिमान या ईगो, छल-प्रपंच या माया, लोभ और ईष्र्या। अपने गुस्से को जीवन से हटाने के लिए भीतर में पे्रम और क्षमा को सेव कर लो। अभिमान को हटाने विनम्रता को अपना लो। माया को हटाने मित्रता को अपना लो। लोभ को हटाने संतोष को अपना लो। संतोष से बड़ा सुख और धन दुनिया में और कुछ होता नहीं है। ईष्र्या को हटाने सबको अपना मान लो। औरों की खुशी में खुश होना और औरों के दुख को बांटना सीख लो।
संतश्री ने कहा कि अपने जीवन से क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कसायों को दूर करने के लिए तीन गुणों को अपना लें। पहला अपने दिल को बड़ा रखें, दूसरा अपने दिमाग को हमेशा ठंडा रखें और तीसरा अपनी जुबान को हमेशा मीठी बनाए रखें। जिसके पास इन सद्गुणों की दौलत है दुनिया में उससे ज्यादा सुखी-उससे बड़ा धनवान और कोई नहीं।