रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की को कस्टडी में देने की पिता की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जैविक परिवर्तन से गुजरने की उम्र में उसकी मां ही लड़की की सही देखभाल कर सकती है।
मामले में पति पत्नी के बीच सन् 2009 में विवाह हुआ था और 1 साल बाद उनसे एक बच्ची ने जन्म लिया। कुछ समय के बाद दोनों में संबंध खराब हो गए और पत्नी अलग रहने लग गई। पत्नी ने गुजारा भत्ता के लिए परिवार न्यायालय में आवेदन लगाया। पति ने तर्क दिया कि पत्नी ने उस पर झूठे आरोप लगाए हैं। वह आपराधिक स्वभाव की है इसलिए बच्ची को मेरी कस्टडी में दी जानी चाहिए। आरोपों से इनकार करते हुए पत्नी ने बताया कि पति ने उसके गहने ले लिए हैं और उसे दहेज के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है। बच्ची को कस्टडी में मांगने के पति की दलील का विरोध करते हुए उसने कहा कि वह अपनी बच्ची की देखभाल और पढ़ाई ठीक तरह से करा रही है। परिवार न्यायालय ने पति को आदेश दिया कि वह गुजारा भत्ता दे। न्यायालय ने पति के उस आवेदन को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने बच्चे की कस्टडी की मांग की थी.
इसके विरुद्ध पति ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी जिसकी सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधा किशन अग्रवाल की बेंच में हुई। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि बच्चे की उम्र 10 वर्ष है। 10 से 15 वर्ष की आयु तक लड़की कुछ जैविक परिवर्तनों से गुजरती है जिसकी देखभाल मां अच्छी तरह कर सकती है न कि पिता। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने परिवार न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है।