आधुनिक समाज को प्रकृति प्रेम आदिवासियों से सीखने की जरूरत : राज्यपाल अनुसुईया उइके
रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश-दुनिया में आदिवासियों की संस्कृति बहुत समृद्ध है। आदिवासी, समृद्ध संस्कृति के वाहक होने के साथ ही प्रकृति के पूजक भी हैं। उनकी जीवनशैली और प्रकृति के बीच एक गहरा सामंजस्य है। आदिवासी न्यूनतम आवश्यकताओं पर जीने वाले होते हैं, यह वास्तव में उनकी जीवनशैली का मूलमंत्र है। वे प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जितनी उन्हें आवश्यकता होती है, क्योंकि वे धरती को अपनी माता मानते हैं। आधुनिक समाज को कई मायनों में उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। आज विश्व, जलवायु परिवर्तन के कारण अनेकों समस्याओं का सामना कर रहा है, इसे हल करने का उपाय प्रकृति से प्रेम करने में और उसका आदर करने में छिपा हुआ है। उक्त बातें राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उईके ने आज साईंस कॉलेज मैदान में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्योत्सव 2021 के अवसर पर कही। राज्यपाल सुश्री उइके ने इस समारोह में देश के विभिन्न राज्यों के साथ विदेशों से आए लोक कलाकारों का छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्वागत करते हुए कहा कि हमारे देश में अतिथि देवो भवः की परम्परा है। मुझे विश्वास है कि यहां पधारे अतिथि, छत्तीसगढ़ में अपने प्रवास का आनंद लेंगे और सुखद यादें लेकर जाएंगे। उन्होंने इस अवसर पर प्रदेशवासियों को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस की अग्रिम बधाई भी दी।
राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान अनेकता में एकता की अनोखी छटा दिखाई दे रही है। ऐसा लग रहा है, मानो यहां लघु भारत आ गया है। यह महोत्सव, विभिन्न परंपराओं और संस्कृतियों का संगम है। इस सुंदर और भव्य राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल और उनकी पूरी टीम को बधाई दीं। उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य शासन मिलकर आदिवासी हितों की रक्षा के साथ शिक्षा, आर्थिक कल्याण और सामुदायिक उत्थान को बढ़ावा देने के लिए अनेक कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए उन्हें जागरूक करना और सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाना जरूरी है। इस दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा महती प्रयास किए जा रहे हैं। राज्यपाल ने कहा कि इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में विदेशी कलाकारों के नृत्य के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के करमा, सुआ, शैला आदि देखने को मिलेगा, वहीं विभिन्न प्रदेशों के मनमोहक लोक नृत्य देखने को मिलेंगे।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से जनजातीय समुदायों के बीच कला और संस्कृति की साझेदारी तो हो ही रही है, गौर करने वाली बात यह भी है कि इन समुदायों के कल्याण के लिए देशभर में काम कर रहे लोग भी एक दूसरे से अपने अनुभवों और उपलब्धियों को साझा कर रहे हैं औरएक दूसरे से प्रेरणा ले रहे हैं। इस तरह समग्र रूप में यह आयोजन राष्ट्रीय जनजातीय परिदृश्य में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ने आगे कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के इस आयोजन से पूरे छत्तीसगढ़ में जिस तरह के वातावरण का निर्माण हुआ है, उससे ऐसा लग रहा है कि हमारी दीवाली आज से ही शुरु हो गई है। इस साल छत्तीसगढ़ के लोगों की दीवाली लंबी होने वाली है। इससे जाहिर है कि हमारी खुशियां भी दोगुनी होने वाली है। लोक-गीत, लोक-नृत्य, लोक-शिल्प, लोक-वाद्य और लोक-परंपराएं जब आपस में मिलती हैं, तभी गांवों में दीवाली सजती है। ठीक यही वह समय होता है जब खेतों में धान की बालियां भी सुनहरी होने लगती हैं। छत्तीसगढ़ में इस बार ये सारा संजोग आज से ही शुरु हो गया है।