बेबस ईएनसी, अनुमति नहीं दे रहे लोक निर्माण विभाग सचिव, दु:खी है अनियमितकर्मी
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। प्रदेश के अनियमित कर्मचारियों के नियमितिकरण के लिए जनता से रिश्ता लगातार खबरें प्रकाशित कर शासन प्रशासन का ध्यान आकर्षित कर रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2018 के चुनाव घोषणा पत्र में अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने की घोषणा की थी, लेकिन शासन में आमने के बाद अधिकारियों की उदासीनता और गलत जानकारी का खामियाजा अनियमित कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश में 5 लाख अनियमित कर्मचारी विभिन्न विभागों और मंत्रालय में काम कर रहे है। जबकि सरकार के परमानेंट कर्मचारी तो सिर्फ हाजिरी लगातार नेता गिरी करते आ रहे है। अधिकारियों के साथ देर रात तक विधानसभा और वित्तीय बजट जैसे काम को पूरी तल्लीनता से काम को निष्ठा के साथ संपन्न कर रहे है उसके बाद भी उन कर्मचारियों को सरकारी की घोषणा का लाभ नहीं मिल रहा है।
मस्टरोल एवं एचआर दो श्रेणियों के कर्मचारियों में दर्ज
लोक निर्माण विभाग में जनवरी 2021 की स्थिति में उच्च कुशल, कुशल, अर्धकुशल, अकुशल श्रेणी के 4260 श्रमायुक्त दर के अस्थाई श्रमिक कार्यरत थे। जिनकी संख्या वर्तमान में बढ़कर लगभग 5 हजार पहुंच चुकी है। इन सभी को राजकोषीय खाते से बैंक माध्यम से हर माह वेतन का भुगतान प्रतिदिन के गणना के अनुसार मासिक रूप से किया जाता है। इन्हें लोक निर्माण विभाग मस्टरोल एवं एचआर दो श्रेणियों के कर्मचारियों में दर्ज किया हुआ है। इन सभी का ईपीएफ का प्रकरण क्षेत्रीय भविष्य निधि कार्यालय से निर्णय हो चुका है। जिसमें लोक निर्माण विभाग को 39 करोड़ की राशि निश्चित समय सीमा के भीतर जमा करने कहा गया था। वह समय सीमा समाप्त हो गई परंतु विभाग द्वारा राशि जमा नहीं की गई है। इस राशि पर करोड़ों रुपए का ब्याज हर माह लग रहा है। श्रमिको को इससे नुकसान नही हो रहा है परन्तु छत्तीसगढ़ शासन को विशुद्ध रूप से राजस्व की क्षति निरन्तर हो रही है।
अतिरिक्त भार नहीं आएगा
लोक निर्माण में यदि इन श्रमिकों को ईपीएफ एवं ईएसआईसी की सुविधा उपलब्ध हो जाती है तो इन समस्त अस्थाई श्रमिकों के परिवारों को उनके आश्रितों को सामाजिक सुरक्षा के रूप में अकाल मृत्यु होने पर जहां एकमुश्त रकम मुआवजे के रूप में, बीमा की राशि, आश्रितों को पेंशन का लाभ ईपीएफ एवं ईएसआईसी दोनो से पृथक पृथक मिलेगा, वही कार्यरत कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश एवं पितृत्व अवकाश का लाभ, बीमार पडऩे एडमिट होने पर सवैतनिक लाभ प्राप्त होगा। जिसका समस्त वित्तीय भार ईपीएफ एवं ईपीएफ द्वारा स्वयं वहन किया जाएगा। जिससे छत्तीसगढ़ लोक निर्माण विभाग को अतिरिक्त भार नहीं आएगा। यह एक सर्वोत्तम उपाय इन अस्थाई श्रमिकों के लिए बन सकता है एवं सरकार से हर बार कर्मचारी संगठनों द्वारा समय-समय में मांगे जाने वाले मुआवजे,राहत की मांग से सदैव के लिए मुक्ति मिल सकती है।
54 विभाग एवं निगम, मंडल, आयोग चल रहा अनियमित कर्मियों के भरोसे
यह जानना आवश्यक है कि दै.वे.भो. में मिथ्या भ्रम है की शासकीय संस्थाओं में दैनिक आधार पर वेतन प्राप्त करने वाले कलेक्टर दर श्रमिक व श्रमायुक्त दर श्रमिक का शासकीय विभाग ईपीएफ, ईएसआईसी नहीं जमा कर सकते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं है छत्तीसगढ़ शासन के श्रम आयुक्त के निर्देश के अनुसार समस्त 54 विभाग एवं समस्त निगम मंडल आयोग को निर्देशित किया गया है कि वे सभी अपने विभाग में ऐसे समस्त कर्मचारी जो ठेकेदारी, आउटसोर्सिंग प्लेसमेंट अथवा विभाग द्वारा सीधे प्रतिदिन के वेतन की गणना से रखे गए हैं उनकी ईपीएफ एवं ईएसआईसी आवश्यक रूप से जमा करें उदाहरण स्वरूप रविशंकर विश्वविद्यालय, देवभोग दुग्ध संघ, छत्तीसगढ़ शासन के मार्कफेड विभाग यह सभी शासकीय संस्था अथवा उसके उपक्रम है। जहां पर वहां के कलेक्टर दर व श्रमायुक्त दर के श्रमिकों के प्रयास से ईपीएफ एवं एसएससी की कटौती वर्षों पूर्व प्रारंभ हो चुकी है। छत्तीसगढ़ लोक निर्माण विभाग के द्वारा वर्तमान में इन 5000 श्रमिकों के यूएन नम्बर नहीं बन पाने के कारण कटौती प्रारंभ नहीं की गई है। इससे हर माह लगभग 50 लाख रुपए के ऊपर का राजस्व नुकसान सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ शासन को हो रहा है। जिसकी जिम्मेदारी तय नहीं है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार होंगे?
श्रमिकों के यूएन नंबर जनरेट नहीं
लोक निर्माण विभाग के वर्तमान प्रमुख अभियंता केके पिपरी व पूर्व प्रमुख अभियंता द्वारा विभागीय लोक निर्माण विभाग के सचिव को इन समस्त श्रमिकों के यूएन नंबर जनरेट करने हेतु अनिवार्य पैन कार्ड की आवश्यकता के लिए पैन कार्ड बनाने की अनुमति का आवेदन 2 माह पूर्व से दिया गया है। 39 करोड़ की राशि के प्रदान करने का पृथक से पत्र भी सचिव महोदय को लिखा गया है।दोनो पत्रों कि अनुमति लोक निर्माण विभाग के सचिव प्रदान नहीं कर रहे हैं। इस वजह से लोक निर्माण विभाग को मात्र 2 महीने में एक करोड़ के राजस्व का नुकसान पहुंच चुका है। यदि लोक निर्माण विभाग के सचिव महोदय द्वारा इसी प्रकार निरन्तर विलंब किया जाता है और पैन कार्ड बनाने की अनुमति शीघ्र नहीं दी जाती है तो यह राजस्व नुकसान निरंतर हर माह बढ़ता ही चला जाएगा।
नुकसान झेलना पड़ रहा
छत्तीसगढ़ की संवेदनशील सरकार की छवि को कहीं ना कहीं विभाग के गैर जिम्मेदार अधिकारियों उनके निर्णय लेने की असमर्थता विलम्ब के चलते बट्टा बैठ रहा है। इससे गरीब जरूरतमन्द वर्षो से कार्यरत श्रमिकों को भी बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है। विषय में लोक निर्माण विभाग के मंत्री महोदय को स्वयं संज्ञान लेते हुए तत्काल प्रमुख अभियंता लोक निर्माण विभाग को पैन कार्ड बनाने की अनुमति व 39 करोड़ राशि भुगतान की अनुमति प्रदान करने हेतु सचिव लोक निर्माण विभाग से चर्चा करने की आवश्यकता है।
अस्थायी श्रमिकों की जानकारी न मंगा रहा न भेज रहा
लोक निर्माण विभाग के श्रमायुक्त दर के श्रमिकों की जानकारी विभाग द्वारा अवर सचिव लोक निर्माण विभाग को प्रेषित नही किया जा रहा है सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार केवल सेटअप में कार्यरत श्रमिकों की जानकारी ही प्रमुख अभियन्ता कार्यालयो को प्रेषित की जा रही है। आश्चर्य का विषय है की 5 हजार श्रमिकों को हर माह वेतन भुगतान करने वाला विभाग आखिर क्यों? सेटअप के अतिरिक्त कार्यरत अस्थायी श्रमिको की जानकारी नहीं मंगा पा रहा है न शासन को भेज रहा है। जबकि छत्तीसगढ़ शासन के विभिन्न विभाग प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके यहां अनियमित दैनिक वेतन भोगी न होने की स्थिति में कार्यरत कलेक्टर दर श्रमिक , जॉब दर, मानदेय श्रमिको की जानकारी सामान्य प्रशासन विभाग को अपने अपने अवर सचिव के माध्यम से प्रेषति कर रहे है। यह जानकारी सांख्यमत रूप में केवल वेतन अंतर सहित कालम में हा , नही लिख कर प्रेषित किया जाना है।
अधिकारी की हठधर्मिता
क्या मस्टर रोल व एचआर में गड़बड़ी के चलते भयभीत विभागीय अधिकारी नहीं चाहते कि लोक निर्माण विभाग के कार्यरत श्रमायुक्त दर के सभी श्रमिकों की संख्यात्मक जानकारी प्रेषित की जाए ? इसमें प्रमुख अभियन्ता की मौन स्वीकृति है? अथवा प्रमुख अभियन्ता का उन्ही के अधिकारी नहीं सुनते? इसलिये दबाव बना कर अधीनस्थों से जानकारी नहीं मंगवा पा रहे है? शासन के विभिन्न विभागों निगम मंडलों में अयिमित कर्मचारी नियमितिकरण का बाट जोह रहे है। उनका नियमितिकरण कब होगा यह कोई भी नहीं बता पा रहा है जबकि सरकार सभी को नियमित करना चाहती है।मगर अधिकारी अपनी हठधर्मिता से पीछे नहीं हट रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि यदि कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया तो वो किसी की भी नहीं सुनेंगे । जबकि अनियमित रहेंगे तो नौकरी से निकालने के डर से काम मजबूरी में भी करते रहेंगे।