प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गड़बडिय़ों की मंत्री की अनदेखी!
- छत्तीसगढ़ में सड़कों के निर्माण में भारी भ्रष्टाचार, नियमों-मापदंडों से जमकर खिलवाड़
- अधिकारी विभागीय मंत्री को नहीं मालूम भ्रष्टाचार हुआ है, सरकार को कैसे भनक लगेगी?
- विभाग के सबसे बड़े अधिकारी को ही सडक़ घोटाले की जानकारी नहीं है तो विभागीय मंत्री और सरकार को कैसे इसकी जानकारी पहुंचेगी
- ये एक गंभीर भ्रष्टाचार का मुद्दा है
- जनता की टैक्स की गाढ़ी कमाई का पैसा अधिकारी गटक रहे हैं
- सीईओ ने मांगी सूची - पीएम ग्राम सड़क योजना के सीईओ आलोक कटियार ने सडक निर्माण में भ्रष्टाचार को ले कर जनता से रिश्ता से बात की। उन्होंने कहा कि- गडबड़ी से सबंधित रिपोर्ट और सडकों की सूची उपलब्ध कराएं। परिीक्षण के बाद जरूरी हुआ तो जांच कराई जाएगी।जनता से रिश्ता ने विभागिय अधिकरियों केसाथ सडकों के गुणवत्ता जांच की बात कही थी जिस पर प्रशासनिक अमले ने तवज्जो नहीं दिया। जनता से रिशता मेजर मेंट मशीन, ड्रिल मशीन व अर्थ इक्विपमेंट के साथ सडकों की गुणवत्ता जांच की जरूरत बताई थी।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में हुए भ्रष्टाचारों का मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता ने सिलसिलेवार एक साल तक मय प्रमाण खुलासा किया। पीएम ग्राम सड़क योजना के निर्माण और मापदंड को लेकर सारे दस्तावेज विभाग को जांच के लिए उपलब्ध कराने की शर्ते मंजूर करने के बाद भी विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव से लेकर बड़े अधिकारियों ने जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। वर्षों से एक ही जगह जमे पीएम ग्राम सड़क के बड़े अधिकारिओं के भ्रष्टाचार का कच्चा चिट्ठा विभागीय मंत्री और उच्च अधिकारियों को नहीं दिखा। पीएम सड़क के नाम पर वहीं की मिट्टी खोदकर डाल दिया और सड़क बन जाने का प्रमाण प्रस्तुत कर संबंधित ठेकेदारों को पूरा का पूरा भुगतान करवा दिया। केंद्र से आने वाले पीएम ग्राम सड़क जांच अधिकारियों को जीरो ग्राउंड तक ले जाया ही नहीं गया। वहीं होटलों में प्रजेंटेशन देकर सड़कों के निर्माण को ओके करवा दिया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पीएम ग्राम सड़क योजना में बैठे जिम्मेदार अधिकारी की सेटिंग इतनी बढिय़ा है कि केंद्र के अधिकारी भी होटल में बैठकर पीएम ग्राम सड़क योजना को मान लिया कि इस योजना में कही भी भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। सड़क पूरी ईमानदारी से बनाया गया है। इस तरह टीप लिखकर ठेकेदारों पीएम ग्राम सड़क योजना के बकाया भुगतान कर दिया गया। पीएम ग्राम सड़क योजना में पिछले 20 सालों में इतना भ्रष्टाचार हुआ है कि जो सड़क संबंधित अधिकारियों ने बनाया है वह पगडंडी में डामरपोत दिया है जिसकी सैकड़ों गांव के ग्रामीणों ने लिखित और मौखिक शिकायत भी की थी, जिसकी आज तक जांच नहीं हुई। क्या पीएमग्राम सड़क योजना का अधिकारी इतना प्रभावशाली है कि 15 साल भाजपा सरकार और साढ़े तीन साल कांग्रेस सरकार ने शिकायतों की जांच की जहमत ही नहीं उठाई।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में यत्र-तत्र, सर्वत्र घोटाला...!
ग्रामीण इलाकों में बनाए जा रहे प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की सडक़ों के निर्माण में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। क्षेत्रीय अफसर और ठेकेदार मिलीभगत कर कम लागत में दोयम दर्जे की निर्माण कर शासन के करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। विभागीय अधिकारियों को या तो इनकी कारगुजारियों का पता नहीं है या फिर पता होने के बाद भी कमीशनखोरी के चक्कर में कोई कार्रवाई अथवा जांच नहीं हो रही है। सडक़ों के निर्माण में मापदंडों और गुणवत्ता का कहीं भी ख्याल नहीं रखा गया है। मटेरियलों के इस्तेमाल में भी तय मापदंड नहीं अपनाए गए हैं। ऐसा एक जिला ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में आदिवासी और दूरस्थ इलाके के गांवो में भी इस योजना के तहत बनी और बनाई जा रही सडक़ों में व्यापक गड़बडिय़ों की शिकायतें मिल रही हैं। संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी न तो निर्माण कार्यो की समय-समय पर मॉनिटरिंग करते हैं न ही वस्तु स्थिति से विभागीय मंत्री को अवगत कराते हैं। विभाग टेंडर जारी कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और सारा काम निचले स्तर के अधिकारियों की देखरेख में होता जो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को घटिया निर्माण का अवसर देते हैं। विभागीय मंत्री को तत्काल इस पर संज्ञान लेकर गड़बडिय़ों की जांच करवाकर दोषी अधिकारी-ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी वहीं के रिटायर्ड अधिकारी
प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनाई गई सडक़ों की गुणवत्ता जांचने दो प्रकार की टीम होती है पहली टीम नेशनल क्वालिटी मॉनिटर जिसे एनक्यूएम बोला जाता है जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होते हैं. दूसरी टीम स्टेट क्वालिटी मॉनिटर जिसे एसक्यूएम कहा जाता है। जिनका काम प्रधानमंत्री सडक़ योजना में हो रहे घोटालों की जाँच करते हैं। मजे की बात ये है कि ये सब अधिकतर उसी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी होते हैं जो एक प्रकार से ओब्लाइज़्ड होते हैं। अब होता ये है कि प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के सीईओ द्वारा बनाये गए स्टेट क्वालिटी मॉनिटर कैसे सीईओ के या विभाग के खिलाफ रिपोर्ट देंगे। एक तो 62 वर्ष पार किये होते हैं साथ ही थके हुए भी। अब इनसे क्या उम्मीद किया जा सकता है। होटल के एसी रूम से ही थैली झोंककर ओके रिपोर्ट दे देने की भी जानकारी है। विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है। ग्रामीणों और आम जनता को पीएमजीएसवाय में हुआ लीपापोती दिखाई दे रहे है, लेकिन एनक्यूएम और एसक्यूएम के अधिकारियों को कैसे नहीं दिखाई दे रहा है। इस मामले में विभागीय सूत्रों ने बताया जिसकी पुष्टि जनता से रिश्ता नहीं करता कि सडक़ की गुणवत्ता जांचने वाले टीम के लिए एक-एक लाख की राशि फिक्स कर दिया है जिसके कारण उनके आंखों में हरियाली का चश्मा चढ़ा हुआ रहता है। एसक्यूएम के अधिकारियों को सब कुछ पता है कि कही कोई सडक़ बना ही नहीं है, उसके बाद भी एसक्यूएम बनाने के एहसास के तले दबे है। जिसके कारण जांच रिपोर्ट अधिकारी के कहे अनुसार ही बनाकर देते है। क्योंकि अगर एसक्यूएम ने विभाग के खिलाफ रिपोर्ट दिया तो दूसरे दी उन्हें घर बैठने का लेटर भी थमा दिया जाता है। क्योंकि उसकी नियुक्ति ही विभाग द्वारा किया जाता है। इस प्रकार क्वालिटी कंट्रोल को जांचने वाले अधिकारी ने भी बिना देखें क्वालिटी कंट्रोल का मानक प्रमाण पत्र दे देते हैं। जो घोर आश्चर्य की ओर इंगित करता है गांव वाले आम जनता ठेकेदार के दादागिरी से और छुटभैय्या नेताओं की दबंगई से डर के मारे विभाग ने शिकायत करने से भी डरते हैं क्योंकि विभाग के अधिकारियों ने मनमाने ढंग से शिकायतों का निपटारा बिना कार्रवाई किए स्थानीय स्तर पर कर देते हैं।
पुल-पुलियों का भी घटिया निर्माण
इस इलाके में बनाई गई सडक़ों में बनाए गए पुलों का निर्माण भी घटिया स्तर का है। सडक़ें बनकर तैयार हुई हैं और कई जगहों पर पुलियों में दरार नजर आ रही हैं। मटेरियल की मिक्सिंग भी अत्यंत दोयम दर्जे की है जिसके कारण पुल धंसकने भी लगे हैं। सडक़ों पर पुराने पुलियों का नया निर्माण भी नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन पुल-पुलियो का नया निर्माण होना चाहिए था। कई सडक़े तो ऐसी है जिसका मरम्मत आज तक नहीं हुआ है एक बार सडक़ बनने के बाद ठेकेदार को कम से कम पांच साल मेंटेनेंस करना होता है लेकिन अधिकारियो से सेटिंग कर दोबारा उस ओर देखना तक मुनासिब नहीं समझते। बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां हुई हैं यह विभाग के संज्ञान में नहीं है, आपने संज्ञान में लाया है अब इस पर जानकारी लेकर जांच और कार्रवाई की जाएगी। सडक़ों के निर्माण में गुणवत्ता का पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए ऐसा नहीं हुआ है तो यह गलत है।
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