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राजनांदगांव। राजनांदगांव के जनता से रिश्ता के पाठक रोशन साहू मोखला ने एक कविता ई-मेल किया है.
पांव बेड़ियाँ बांध-बांध तेरे चेहरे क्यों खिलते ।
उसने तो बांधी घुंघरू तुम बेड़ियाँ लिए फिरते।।
स्व अहं पोषित करना रहा तेरा निज कर्म मर्म ।
स्वर मुखर न होने देना बस जैसे हो यही धर्म ।।
हे सर्वेश्वर भाग्यनियन्ता हाय! ऐसी नियति।
नयन मूंदे बैठे क्यों न समझूँ तेरी स्वीकृति।।
किंकर्तव्यविमूढ़ता कदाचित,कहो न विरति।
तुम आरम्भ तुम इति,विस्मृत होवे न सुरति।।
युगों पहले खींची रेखा ज्यों गहरातीं जातीं है।
किरणों से सौदा या झरोखे बंद कर जातीं है ।।
छम छम छमके पायल,घुंघरू आंसू बहाती ।
घायल पांवों से झरते लहू तुम्हे नजर न आती।।
पलकों पले सपन सलोने अश्रुधार न धोये।
ऐसी चलन चले कि कहीं मीरा अब न रोये ।।
Nilmani Pal
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