छत्तीसगढ़

मीरा न रोये

Nilmani Pal
29 Sep 2023 5:19 AM GMT
मीरा न रोये
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राजनांदगांव। राजनांदगांव के जनता से रिश्ता के पाठक रोशन साहू मोखला ने एक कविता ई-मेल किया है.

पांव बेड़ियाँ बांध-बांध तेरे चेहरे क्यों खिलते ।

उसने तो बांधी घुंघरू तुम बेड़ियाँ लिए फिरते।।

स्व अहं पोषित करना रहा तेरा निज कर्म मर्म ।

स्वर मुखर न होने देना बस जैसे हो यही धर्म ।।

हे सर्वेश्वर भाग्यनियन्ता हाय! ऐसी नियति।

नयन मूंदे बैठे क्यों न समझूँ तेरी स्वीकृति।।

किंकर्तव्यविमूढ़ता कदाचित,कहो न विरति।

तुम आरम्भ तुम इति,विस्मृत होवे न सुरति।।

युगों पहले खींची रेखा ज्यों गहरातीं जातीं है।

किरणों से सौदा या झरोखे बंद कर जातीं है ।।

छम छम छमके पायल,घुंघरू आंसू बहाती ।

घायल पांवों से झरते लहू तुम्हे नजर न आती।।

पलकों पले सपन सलोने अश्रुधार न धोये।

ऐसी चलन चले कि कहीं मीरा अब न रोये ।।

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