छत्तीसगढ़

भैरमबंद गौठान की मीना, सरिता, लक्ष्मी ने बनाई अपनी पहचान

Shantanu Roy
25 May 2023 3:28 PM GMT
भैरमबंद गौठान की मीना, सरिता, लक्ष्मी ने बनाई अपनी पहचान
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दंतेवाड़ा। ऐसी ग्रामीण महिलाएं जो कभी मात्र घर गृहस्थी की चारदीवारी में सीमित रहने के अलावा खेती बाड़ी में ही रमी रहती थीं। वर्तमान में ऐसी ग्रामीण महिलाओं के लिए ग्राम पंचायतों में बनाए गए गौठानों के द्वारा वास्तव में आत्मनिर्भरता का पथ प्रशस्त किया गया है। राज्य शासन की इस महत्वाकांयोजना की संकल्पना अब साकार रूप धारण कर चुकी है। विशेष तौर पर दुर्गम बीहड़ वनांचलों में रहने वाली ग्रामीण महिलाओं के बीच गौठान का क्रियान्वयन सुखद बदलाव लेकर आया है। ये महिलाएं जिस प्रकार बिना झिझक पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने स्वावलंबन की कथा का बयान करती है वह देखते ही बनता है। जाहिर है गौठानों में चल रही विभिन्न प्रकार की आजीविका गतिविधियों ने न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है बल्कि एक नई ऊर्जा के साथ भविष्य के प्रति आशावान बना दिया है।
इस कड़ी में विकासखंड दंतेवाड़ा अंतर्गत भैरमंबद ग्राम की निवासी व गौठान अंतर्गत स्व-सहायता समूह की सदस्य महिलाएं मीना, लक्ष्मी व सरिता ने अपने जीवन में बदलाव का श्रेय गौठान को देती है, आत्मनिर्भरता की चाह के बावजूद तीन वर्ष पहले इन महिलाओं के पास खेती किसानी में जीविका के अलावा और कोई विकल्प भी नही था। वे बताती है कि भैरमबंद गौठान से वे पिछले तीन साल से जुड़ी हुई हैं। भैरमबंद गौठान में वर्तमान में 11 समूहों की ओर से ग्राम संगठन बनाया गया है जहां अलग-अलग समूह वर्मी खाद निर्माण, मशरूम उत्पादन, कुक्कुट पालन, साग सब्जी उत्पादन और गोबर पेंट निर्माण में संलग्न है, इन समूहों में आस-पास के ग्राम बालूद, बालपेट छन्दपारा की महिलाएं भी शामिल है। अपनी आय का जिक्र करते हुए इन महिलाओं में से एक लक्ष्मी ने बताया कि पिछले तीन साल में गौठान में गोबर खरीदी के माध्यम से उन्हें 70 हजार रुपए का आय अर्जन हुआ। और इस आय से उन्हें घर वालों का आर्थिक सहयोग तथा बच्चों की पढ़ाई लिखाई में मदद मिली, साथ ही उन्होंने अपने लिए नया पायल भी खरीदा।
इसी प्रकार एक अन्य उत्साही महिला सरिता ठाकुर बताती है कि वे 8वीं उत्तीर्ण है। अत: समूह से जुड़े हुए आर्थिक लेन-देन व बैंकिंग गतिविधियों को वे बखूबी कर पाती है, और तो और उन्होंने ई-रिक्शा भी खरीद कर चलाना सीख लिया है और इसके जरिए उन्हें प्रतिदिन 5 सौ से 6 सौ रुपये की आमदनी भी हो जाती है। इस क्रम में मीना ने बताया कि अब महिलाओं को गौठान के माध्यम से प्राकृतिक कीटनाशक निर्माण का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इससे भी समूह की सभी महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। उल्लेखनीय है कि वर्मी खाद विक्रय से इस गोठान समूह की महिलाएं अब तक 6 लाख रुपए का वर्मी खाद विक्रय कर चुकी है, साथ ही कुक्कुट पालन से 50 हजार रुपए और मशरूम उत्पादन से 10 हजार रुपए की आय हो चुका है। इन उत्साही ग्रामीण महिलाएं का कहना है कि अधिक से अधिक महिलाएं गौठान से जुड़े इससे न केवल वे सपनों को साकार कर सकती है, बल्कि घर परिवार में आर्थिक योगदान देकर एक नया मुकाम हासिल किया जा सकता है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि गौठानों से शुरू हुई महिला सशक्तिकरण की यह यात्रा भविष्य में अपने सुखद अंजाम तक जरूर पहुंचेगी।
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