तूफानों से आँख मिलाओ, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव
राधिका के रंग में कृष्ण को रंगते देखा था, लेकिन कलयुग में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा है। यहां राधिका ही भगवामय हो गई और कांग्रोसियों ने आरोप लगा दिया कि यह सब भाजपा वालों का किया धरा है। पिछले दिनों कांग्रेस भवन में राधिका खेड़ा और सुशील आनंद शुक्ला के बीच तकरार राष्ट्रीय लेबल तक पहुंच गया था। राधिका खेड़ा ने भूपेश बघेल पर भी आरोप लगाया था कि भूपेश बघेल सुशील शुक्ला का ही साथ दे रहे हैं। भाजपाइयों का कहना है की कांग्रेस में महिलाओं की कद्र नहीं है, खुद राधिका खेड़ा ने कहा कि कौशल्या की भूमि में महिलाओं का कोई सम्मान नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेसियों का कहना है कि ये सब भाजपा का किया धरा है और राधिका खुद सरकार जाने के बाद कांग्रेस छोडक़र बीजेपी में शामिल होना चाहती थीं क्योंकि राधिका खड़ा का काम छत्तीसगढ़ के कई विभागों में काम चल रहा था जिसका करोड़ों रूपये भुगतान लेना बाकी था अब सरकार बदलने के बाद भुगतान अटकना तय था, जिसे निकालने के लिए भाजपाई होना जरुरी था। इसी बात पर राहत इंदौरा साहब का एक शेर याद आया -तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो..। बहरहाल जनता में खुसुर फुसुर है कि जितनी मुँह उतनी बातें हो रही है, कौन सही और कौन गलत बाद में पता चलेगा।
किसके बात में कितना वजन, डबल इंजन या विपक्ष
राधिका खेड़ा प्रकरण को लेकर भाजपा के पूर्व मंत्री और कुरुद के विधायक अजय चंद्राकर ने तंज कसते हुए कहा था कि कांग्रेसियों ने एक महिला के साथ गलत और अपमानजनक व्यवहार किया है कांग्रेसियों को पता नहीं कि महिलाओं से कैसे व्यवहार किया जाता है। राधिका खेड़ा इतनी असुरक्षित हो गई थी की पीसीसी चीफ के पास जाने के लिए अपनी माँ के साथ गई, अचानक इतना खौफ कैसे आ गया। पिछले बीस साल से कांग्रेस में राधिका जी है ऐसा उनका कहना था। इस पर पीसीसी चीफ ने कहा कि अजय चंद्राकर के बयान को गंभीरता से लेता कौन है। और चंदराकर खुद अपने कार्यकाल को देखें जिसमें महिलाओं से दुव्र्यवहार को कौन नहीं जानता । जनता में खुसुर फुसुर है कि कौन किसको कितना वजन दे रहा है, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि जनता किसको कितना वजन और भाव दे रही है ये बात महत्वपूर्ण है। वजन तो वजन है भाई यहां विपक्ष भी नहीं है, सारे विपक्षी है, और वहां तो डबल इंजन है भाई, वजन तो रहेगा ही।
लोन वर्राटू का असर कांग्रेस में
जिस तरह नक्सलियों में लोन वर्राटू यानी घर वापसी अभियान कारगर साबित हो रहा है वैसे ही कांग्रेसियों में बाकी की राजनीतिक जिंदगी बेदाग बिताने के लिए भाजपा की ओर आकर्षण की दौड़ मची है। बड़े से लेकर छोटे और पूर्व मंत्री से लेकर संत्री और रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, आईएफएस तक भाजपा में घर वापसी कर रहे हैंऔर बेदाग जिंदगी जीने की जुगत लगा रहे है। पिछले कई सालों से पुलिस विभाग नक्सल उन्मूलन अभियान चला रहा है। कभी खुशी- कभी गम जैसा परिणाम आ रहा था। लेकिन पिछले कुछ दिनों में कई दर्जन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर मुख्य धारा में लौटना उचित समझा। ये सब लोन वर्राटू से प्रभावित होकर ही लौटे हैं। ऐसा ही रहा तो एक दिन बस्तर से नक्सली साफ़ हो जायेंगे यानी मुख्य धारा में लौट जायेंगे सब चैन की बंशी बजाएंगे। जनता मे खुसुर फुसुर है कि वजन तो पुलिस विभाग का ही है
रेत से भी तेल निकला
किसी गंभीर काम या नामुमकिन काम के लिए कहा जाता है कि रेत से तेल निकालने चले यानी असंभव काम करने चले हौ। आज के दौर में कोई काम असंभव नहीं है। अधिकारी से लेकर नेता सभी रेत माफियाओं के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं धड़ाधड़ रेत से भरी हाइवा पकड़ कर जुर्माना ठोंक रहे हैं, लेकिन रेत का अवैध परिवहन रूकने का नाम नहीं ले रहा है यानी ढोल का पोल साफ नजर आ रहा है। देखा गया है कि रेत परिवहन में लगे अधिकतर हाइवा किसी नेता, टीआई और अधिकारियों के हैं, अब ऐसे में कार्रवाई कौन करेगा ? इससे अंदाजा लगाया जा सकता रेत और हाइवा का चोली दामन का संबंध है। सारी राजनीति अब रेत पर आकर टिक गई है। क्योंकि रेत से ही महल बनता है। इसलिए इसकी जरूरत तो राजा को भी है और रंक को भी है। जनता में खुसुर फुसुर है कि पिछले दिनों राजिम इलाके में रेत माफिया के खिलाफ आवाज उठाने वाले यूटूबलर और उसके साथियों की धुनाई कर दी जिसके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई थी, वो तो भला हो पेपर वालों का उनके वजह से रिपोर्ट दर्ज़ करनी पड़ी। यानी सैंया भये कोतवाल तो डर कहे का। रेत से जुड़े लोग हर किसी का तेल निकाल रहे है।
किसको बिठाएं कुर्सी पर
पिछले दिनो दूरसंचार विभाग के एक अधिकारी को भी ईडी ने धर लिया, धर क्या लिया जेल भेज दिया। अच्छा खासा टेलीफोन विभाग में काम कर रहे थे । पूर्ववर्ती इन्ही की सरकार ने डेपुटेशन पर मंत्रालय में पदस्थ किया था। समय बदला नान यानी नागरिक आपूर्ति निगम के बॉस बना दिए गए देखते देखते विभाग से नागरिक किनारे हो गय.ा और बन गया आपूर्ति निगम । और माल पानी की आपूर्ति आबाध गति से होने लगी। जबकि यही विभाग नान घोटाले के नाम से बहुत फेमस भी हुआ । बड़े-बड़ों पर आरोप लगा, लेकिन नए साहब भूल गए कि ये काजल की कोठरी है और अपना काम चालू रखा। मजे की बात है कि दूरसंचार विभाग के ही एक अधिकारी भी इसी चक्कर में बड़े घर में हैं। एक साहब माल के चक्कर में फंस गए तो दूसरे पानी के चक्कर में। लगता है दूरसंचार विभाग में काम करके भी इनकी दूरदृष्टि सही नहीं थी लगता है। जनता मे खुसुर फुसुर है कि दूध देती गाय का लात भी मीठा होता है। अब पता चला कि ज्यादा मीठा भी डायबिटिज का कारक बन जाता है। जिसका इलाज जेल में होता है।
साहब की अपील बेअसर
लोकसभा चुनाव की तिथि घोषित होने और आचार संहिता लगने के बाद से रायपुर कलेक्टर सहित सभी जिलों के कलेक्टरों ने अपील करना चालू कर दिए थे कि अधिक से अधिक तादात में मतदान कर जिम्मेदार नागरिक बने साथ ही यह भी कहा कि ग्रामीण मतदाताओं के अपेक्षा शहरी मतदाता कम तादात में मतदान करते हैं, लाखों लोग मतदान में भाग नहीं लेते। इस बार भी वही हुआ। रायपुर लोकसभा के लगभग आठ लाख लोग मतदान नहीं किए यानी अपील का कोई असर नहीं हुआ । कमोबेश यही हाल बिलासपुर औ्रर अन्य शहरों में भी देखने को मिला। जनता में खुसुर फुसुर है कि अब हर मतदाताओं के लिए शासन के तरफ़ से ऐसा कोई ईनाम स्कीम लाए ताकि मतदान के दिन सुबह उठते ही लोग मतदान केंद्र की ओर दौड़ पड़ें। जनता में खुसुर-फुसुर है कि सटोरियों का कहना है कि हमें भी मौका देकर देखे आयोग हम सौ फीसद मतदान की गारंटी लेते है।