छत्तीसगढ़

जिंदगी यूं हुई बसर तन्हा, काफिला साथ और सफर तन्हा

Nilmani Pal
26 April 2024 5:44 AM GMT
जिंदगी यूं हुई बसर तन्हा, काफिला साथ और सफर तन्हा
x

ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

सरकारी महकमे में जब तक मलाईदार पद रहता है, तब तक तो अधिकारी को काम में आनंद आता है। लेकिन जैसे ही मलाईदार पद से हटे नहीं कि काम से मन उखड़ जाता है। पिछले दिनों दफ्तर में एक अधिकारी का वाक्या ये था कि जब तक मलाई खा रहे थे, तब तक विभाग और काम बहुत अच्छा लग रहा था, किसी को भी अपना समझ नहीं रहे थे, लेकिन लूप लाइन में जाने के बाद उनका रवैया ही बदला-बदला नजर आने लगा। सबको अपना समझने लगे। और कहने लगे यार अब काम करने की इच्छा नहीं है । बहुत काम कर लिए।

अभी सुनने में आया है कि कुछ दिन बाद उक्त अधिकारी रिटायर होने वाले हैं । इसी बात पर गुलजार साहब का शेर याद आया-जिंदगी यूं हुई बसर तन्हा, काफिला साथ और सफर तन्हा। पता चला है कि साहब संघ की शाखा में नियमित जाने लगे हैं और तो और फिर से संविदा नियुक्ति के लिए आजमाइश भी कर रहे हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि मलाई किसे अच्छा नहीं लगता। कहा जाता है कि लोग रिटायरमेंट के बाद तीर्थ यात्रा पर जाते है तो अधिकारी कहीं और जाने का सोचते हंै?

इस फाइल को अच्छे से देखना है सर

मंत्रालय की बात करें तो दिन भर में कई चमत्कार बैठे-बैठे देखने को मिल जाता है। एक साहब के पास बैठा था। उनके मातहत एक फाइल लेकर आया और कहने लगा कि साहब इस फाइल को अच्छे से देखना है। समझदार के लिए इशारा काफी होता है। मैंने कौतूहलवश पूछ लिया कि ये अच्छे से देखना का क्या मतलब। उनका जवाब सुनकर मंै दंग रह गया। उनका कहना था कि फाइल में चर्चा करें लिख दो फिर फाइल पंद्रह से बीस दिन के लिए पेंडिंग, यही अच्छे से देखना होता है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ताली दोनों हाथ से बजती है यानी बिना चर्चा-खर्चा के फाइल आगे नहीं बढ़ेगी। चर्चा न करने के लिए खर्चा करें।

साहब बिजी हैं

मंत्रालय में कई तरह के अधिकारी पाए जाते हैं। कुछ काम को पेंडिंग नहीं रखना चाहते तो कुछ को पेंडिग काम करने में मजा आता है। हर अधिकारी का अपना अलग लॉजिक होता है । कुछ अधिकारियों का कहना है कि आसानी से फाइल साइन करने से लोग और उच्च अधिकारी काम की महत्ता कम आंकते हैं और दो चार दिन पेंडिंग रखने के बाद भेजने से उन्हें लगता है कि नीचे के अधिकारी ने फाइल को पूरी तरह से पढक़र जांच परख कर आगे भेजा है, इससे वजन बढ़ता है। साथ ही महत्वपूर्ण बात ये होती है की गाहेब-गाहे कोई भी मिलने पहुंच जाता है उसको दफ्तरी बाहर से ही चलता कर देता है या बाहर बिठाये रखता है । ये कहकर कि अभी साहब बिजी हैं, भले काम कुछ न हो। जनता में खुसुर फुसुर है कि हर इंसान चाहता है कि उसका रूतबा बरकरार रहे।

ऐसा प्रयोग हर समाज करें

जीवन में ऐसे -ऐसे कई वाक्या आते हैं जो लोगों के लिए मिसाल भी बन जाती है और इंसान अपने कृत्य से रातोरात सुर्खियां भी बटोर लेता है। पिछले दिनों महावीर जयंती के अवसर पर जैन समाज का शोभायात्रा, जुलूस निकला था। इस दौरान पानी बचाने सकोरे बांटे गए और मुख्य बात ये रही कि जुलूस में प्लास्टिक पूरी तरह से बैन रही किसी भी तरह से प्लास्टिक यूज नहीं किया गया जिसकी सर्वत्र तारीफ हो रही है। जनता में खुसुर फुसुर है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसा प्रयोग हर समाज को करना चाहिए।

सबका दिन आता है

जब से चुनाव तिथि घोषित हुई है, आम जनता खासकर गरीब और कामदार लोगों की निकल पड़ी है। अभी वे इतने व्यस्त हो गए हैं की उन्हें दो या तीन शिफ्ट में काम करना पड़ रहा है और भुगतान भी नगद। मामला ये है कि अभी चुनाव प्रचार जोरों पर है और नेताओं के लगातार आगमन को देखते हुए भीड़ जुटाना नेताओं के लिए जरुरी हो गया है। ऐसे में वे सभा में भीड़ बढाने के लिए और माहौल बनाने के लिए किराए के कार्यकर्ताओं को नगद देकर जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगवाते हैं। लोगों का कहना है कि घर में हर पार्टी का झंडा और पट्टा लगा है, जिधर का बुलावा आया, उस पार्टी का पट्टा गले में डालकर और झंडा लेकर निकल पड़ते हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि देखा जाये तो ये नेताओं से ज्यादा बिजी हो गए हैं।खैर सबका दिन आता है। वैसे भी उन्हें पांच साल तक फर्सत में रहना है। चुनाव के समय तो बिजी हो ना?

बड़े बोल न बोले

कहते हैं कभी नाव में गाड़ी तो कभी गाड़ी में नाव। पिछले पंद्रह साल तक जिस अफसर की तूती बोलती थी वो पांच सालों में कोर्ट कचहरी में उलझे रहे और पिछले पांच सालों तक जिनकी बादशाहत कायम रही, वो अब जेल के सींखचों में हैं। कुछ महीने पहले की बात है एक अधिकारी यह कहते नहीं थकते थे कि उन्हें कोई एक दिन के लिए भी जेल भेज नहीं सकता। समय चक्र घुमा और सुप्रीम कोर्ट से मामला खारिज होने के बाद फुले नहीं समां रहे थे लेकिन ये खुशी कुछ ही दिनों में काफूर हो गई, जब ईडी ने बयान देने के लिए बुलाया और गिरफ्तार कर लिया और सीधे जेल भेज दिया । अब देखना है किस- किस पर गाज गिरने वाली है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि वक्त से ज्यादा कोई ताकतवर नहीं होता चाहे वो कोई भी हो।

अशोका की गृहदशा ठीक नहीं

रातोरात हाईलाइट होने वाले अशोका बिरयानी के संचालक अर्श से सीधे फर्श पर आ गए। कांग्रेस के कुछ छुटभैये नेताओं, अधिकारियों के छत्रछाया में रहकर खूब फला-फूला और मार्केट में अपनी मनमर्जी चलाया। एक वक्त में कोई इनके खिलाफ बोलने वाला नहीं था। अक्सर नवरात्रि में बिरयानी की दुकाने बंद होती थी उस समय ये फल-फूल रहे और लोगों को बिरयानी परोस रहे थे। अचानक इनका सितारा गर्दिश में आया और सीधा पत्रकार रूपी धूमकेतु से टकरा गया और पत्रकारों पर हाथ छोड़ दिया । फिर क्या था पत्रकारों ने एकजुटता का परिचय देते हुए ऐसा बट्टा लगाया कि इनके चारों खाने चित हो गया। छुटभैये और अधिकारी भी सामने नहीं आए। आखिर धूमकेतु से जो टकराया था। जनता में खुसुर-फुसुर है कि रातोरात अचानक चमकने वाले तारे गर्दिशों को साथ लेकर ही चलते है जो आपके नेकी तक काम आते है।

Next Story