छत्तीसगढ़

समाज का अभिन्न अंग है मजदूर

Nilmani Pal
30 April 2023 12:23 PM GMT
समाज का अभिन्न अंग है मजदूर
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विशेष-लेख:

धनंजय राठौर, संयुक्त संचालक

मजदूरों की कड़ी मेहनत का सम्मान करने के साथ-साथ श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वालों को सम्मान देने के लिये श्रम दिवस मनाया जाता है और हम श्रम दिवस को मजदूर दिवस कहते हैं। भारत सहित कई देशों मे एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। बहुत संघर्ष करने के बाद मजदूरों को उनका अधिकार मिला है। मजदूर कौन-मजदूर का मतलब हमेशा गरीब से नहीं होता हैं, मजदूर वह ईकाई हैं, जो हर सफलता का अभिन्न अंग हैं, फिर चाहे वो ईंट गारे में सना इन्सान हो या ऑफिस की फाइल्स के बोझ तले दबा एक कर्मचारी। हर वो इन्सान जो किसी संस्था के लिए काम करता हैं और बदले में पैसे लेता हैं, वो मजदूर हैं। हमारे समाज में मजदूर वर्ग को हमेशा गरीब इन्सान समझा जाता है, धुप में मजदूरी करने वालों को ही हम मजदूर समझते हैं, इसके विपरीत मजदूर समाज वह अभिन्न अंग है।

श्रमिक दिवस का उद्देश्य- श्रमिक दिवस का महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि श्रमिकों के ऊपर होने वाले अन्याय पूर्ण व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन करना, ताकि लोगों को यह आभास हो कि श्रमिक वर्ग एकजुट हैं और वह अपने विरुद्ध किसी भी प्रकार के अन्याय या विसंगति को बर्दाश्त नहीं करेंगे। मजदूर का हमारे समाज का बहुत ही महत्त्व अंग है। हमारे समाज की आर्थिक उन्नति मजदूरों पर निर्भर करती है। आज के समय में हर काम के लिये मशीन है, लेकिन मशीन चलाने के लिये मजदूरों की जरूरत पडती है। आज के समय में मजदूरों का महत्व कम नहीं हुआ, उनकी जरूरत उतनी ही है, जितनी मशीन की जरूरत है।

श्रमिक दिवस का आरंभ- 19 वीं शताब्दी के अंत में अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिवस मनाने की शुरुआत एक मई 1886 से हुई। अमेरिका में उद्योगपतियों द्वारा मजदूर वर्ग के लोगों पर शोषण किया जाने लगा और मजदूर वर्ग के संपूर्ण लोगों को 15 घंटा तक काम लेना शुरू कर दिया था। उस दौरान कानून ने मजदूर लोगों को उद्योगपतियों द्वारा किए जाने वाले शोषण से छुटकारा दिलाने के लिए मजदूर वर्ग के लोगों द्वारा श्रमिक आंदोलन चलाया गया। श्रमिक आंदोलन 8 घंटे के रूप में जाना जाता है। इस आंदोलन के पश्चात मजदूर वर्ग के लोगों को 8 घंटे प्रतिदिन कार्य के घण्टे तय किए गए।

भारत में श्रमिक दिवस का आरंभ- भारत में सबसे पहले चेन्नई में श्रमिक दिवस एक मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। भारती मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार के नेतृत्व में शुरू हुई। भारत में मद्रास हाईकोर्ट के सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये। भारत में यह दिन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या कामगार दिन के रूप में जाना जाता है। प्राचीन समय से ही श्रमिकों के साथ बहुत ही असमानता का व्यवहार हुआ है और एक लंबे संघर्ष के बाद उन्हें यह अधिकार प्राप्त हुए हैं।

महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा था कि मज़दूरों, कामगारों और किसानों की बेहतरी, भलाई और विकास, अमन और कानूनी व्यवस्था बनाऐ रखने के लिए वचनबद्ध होते हैं। भारत, घाना, लीबिया, नाइजीरिया, चिली, मैक्सिको, पेरू, उरुग्वे, ईरान और जॉर्डन सहित कई देशों में एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन मजदूरों और श्रमिकों को समर्पित है।

मजदूर को मजबूर समझना हमारी सबसे बड़ी गलती है। वह अपने खून-पसीने की कमाई खाता है। ये ऐसे स्वाभिमानी लोग होते हैं, जो थोड़े में भी खुश रहते हैं एवं अपनी मेहनत और लगन पर विश्वास रखते हैं। इन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पसंद नहीं होता है। श्रम दिवस या मजदूर दिवस हमें यह सीखता है कि जैसे हम एक साथ जुटकर रैली, जुलुस निकाल करके मजदूरों को उनका अधिकार दिलवाते हैं, ठीक इसी प्रकार हमें एक साथ रहकर किसी भी संकट का सामना करना होगा।

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