महात्मा गांधी नरेगा के तहत बनाए जा रहे छोटे-छोटे संसाधन भी स्थायी परिसंपत्तियों के रूप में ग्रामीण परिवार की आजीविका के स्तर में बदलाव लाने में कारगर साबित हो रहे हैं। मेहनतकष परिवारों के लिए कोरिया जिले में बीते दो वर्षों में 652 से ज्यादा कुंए बनाए गए हैं। महात्मा गांधी नरेगा से बनाए जा रहे कुंए या कहें कि एक छोटा सा सिंचाई का साधन किसी मेहनती किसान के लिए कितना लाभप्रद हो सकता है इसका जीवंत उदाहरण बन चुका हैं ग्राम पंचायत ताराबहरा में रहने वाले श्री रामाधार का किसान परिवार। मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड के ग्राम पंचायत ताराबहरा के जागरूक किसान रामाधार के पास खेत तो थे लेकिन सिंचाई का विकल्प न होने से वह केवल बारिष पर ही आश्रित थे। एैसे में असिंचित धान की फसल के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं था। लगभग पांच एकड़ की खेती होने के बावजूद इनके लिए बारिष आधारित धान की खेती के अलावा कोई आर्थिक उपक्रम नहीं था जिससे यह साल भर कुछ आर्थिक लाभ ले सकते। इनके पास महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कार्यों में अकुषल श्रम के अलावा कोई रोजगार का विकल्प नहीं था।
आर्थिक तंगी से गुजरते रामाधार के परिवार को इनकी जागरूक रहने की प्रवृत्ति ने ग्राम विकास की योजना बनाने के लिए आयोजित हुई ग्राम सभा में एक अवसर उपलब्ध कराया। जहां इस परिवार ने आवेदन दिया और ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित होने पर इन्हे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत एक कुंए की स्वीकृति मिल गई। इस परिवार ने इस कंुए में काम करके न केवल अकुषल श्रम की मजदूरी का लाभ लिया साथ ही अपने लिए नए संसाधनों का निर्माण भी कराने में सक्षम हुए। आलू की खेती के बीच इनके बेटे श्री सुनील सिंह ने बताया कि हमारे परिवार में कुल पांच एकड़ जमीन है। जिसमें से एक भूभाग लगभग तीन एकड़ का है। यहां इस परिवार ने महात्मा गांधी नरेगा के तहत एक लाख अस्सी हजार रूपए की लागत के स्वीकृत कुंए का निर्माण ग्राम पंचायत के सहयोग से कराया। इस कुंए के निर्माण में अकुषल श्रम करने के बदले इस परिवार को पूरे सौ दिन का रोजगार भी प्राप्त हुआ जिससे लगभग 18 हजार रूपए का सीधा लाभ इस परिवार को मिला। इसके बाद जब रामाधार का कुंआ बनकर तैयार हो गया तो इस तीन एकड़ के क्षेत्र को इस परिवार ने जाली और तारों के माध्यम से घेरकर सुरक्षित भी कर लिया।
श्री रामाधार के सुपुत्र सुनील ने बताया कि खरीफ में धान की हाइब्रिड खेती करके इस बार 15 क्विंटल उपज ज्यादा हुई। इसके साथ ही सिंचाई का साधन बन जाने से सितंबर में ही आलू की बोनी कर लेने से एक सीजन में ही लगभग दस क्विंटल आलू की फसल भी तैयार हुई जिसे लगभग 45 से 50 रूपए प्रति किलो की दर से स्थानीय बाजारों में बेचकर परिवार को 40 हजार रूपए का मुनाफा भी हुआ। मेहनत करके अपनी दूसरी फसल के लिए तैयारी में जुटे इस परिवार के लिए युवा सुनील ने बताया कि कुंए से मिले लाभ से ही हमने एक सौर सुजला योजना का पंप भी लगवा लिया है। अब खेती आसान और फायदे का काम हो गई है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अब दूसरों के यहां काम करने की कोई जरूरत भी नहीं रही। आलू की फसल के बाद यह परिवार अपने खेतों में गेंहूं की फसल बोने की भी तैयारी कर रहा है। आने वाले समय में इन्हे गेंहू की फसल से भी लाभ होगा।