छत्तीसगढ़

जस्टिस रजनी दुबे ने हाईकोर्ट में एक प्रकरण पर हिंदी में आदेश जारी कर शुरू की नई परंपरा

Nilmani Pal
15 Sep 2022 3:57 AM GMT
जस्टिस रजनी दुबे ने हाईकोर्ट में एक प्रकरण पर हिंदी में आदेश जारी कर शुरू की नई परंपरा
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बिलासपुर। हिंदी दिवस 14 सितंबर को जस्टिस रजनी दुबे ने हाईकोर्ट में एक प्रकरण पर हिंदी में आदेश जारी कर नई परंपरा शुरू की है। फैसले के प्रमुख अंश हिंदी में लिखे गए हैं। जस्टिस रजनी दुबे ने इस अपराधिक मामले में आरोपियों की दोषमुक्ति के खिलाफ शासन की अपील खारिज कर दी। इस मामले में हाईकोर्ट ने 26 जुलाई को निर्णय सुरक्षित रखा था।

प्रकरण के अनुसार गुलाब सिंह वर्मा, सफदर अली रायपुर और अविनाश चन्द्र के मामले में सुनवाई करते हुए विशेष प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश बिलासपुर ने 10 अप्रैल 2022 को निर्णय पारित कर सभी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के आरोप से दोषमुक्त किया गया था। इसके खिलाफ शासन ने हाईकोर्ट में अपील की थी। सुनवाई के बाद जस्टिस रजनी दुबे ने कहा कि विचारण न्यायालय द्वारा सूक्ष्मतापूर्वक मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य की विवेचना करते हुए जो निर्णय पारित किया गया है वह प्रकरण में आए साक्ष्य के आधार पर विधि एवं तथ्य के अनुरूप है। इस आधार पर कोर्ट ने शासन की अपील निरस्त कर दी। शासकीय कर्मी गुलाब सिंह वर्मा, सफदर अली और अविनाश चन्द्र के खिलाफ धारा 409,467,468,471 और 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

दरअसल सफदर अली स्टोर कीपर, एसई सोढ़ी एसडीओ और गुलाब सिंह वर्मा उपयंत्री के तौर पर जल संसाधन विभाग में पदस्थ थे। इन पर जलाशय निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप था। सीमेंट की बोरी के साथ निर्माण सामग्री की सप्लाई नहीं हुई और काम समय पर पूरा नहीं किया गया। शासन द्वारा दर्ज कराए गए मामले को जिला कोर्ट में आरोपियों ने चुनौती दी। कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था। इसी के खिलाफ शासन ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट में जस्टिस द्वारा आर्डर तो हिंदी में पहली बार किया गया है लेकिन फैसलों की कापी हिंदी में पहले से मिल रही है। हाईकोर्ट ने इससे पहले दो मामलों की सुनवाई के दौरान पाया था कि अंग्रेजी में मिले कोर्ट के फैसले के कारण पक्षकार को समझने में परेशानी होती है। इसे देखते हुए याचिकाकर्ता या पक्षकार की मांग पर आदेश की कापी हिंदी में दी जा रही है।

इसके लिए एक अनुवादक की भी नियुक्ति की गई है। याचिकाकर्ता या पक्षकार को इसके लिए 10 रुपया प्रति कॉपी शुल्क देना पड़ता है। दरअसल मामले की सुनवाई के बाद आमतौर पर हाईकोर्ट में फैसले अंग्रेजी में ही जारी किए जाते हैं। अंग्रेजी सभी को समझ न आने से अधिकतर याचिकाकर्ता व पक्षकार पूरी तरह अपने अधिवक्ताओं पर निर्भर रहते हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में हिंदी में याचिका दायर करने के साथ ही उन याचिकाकर्ताओं को जो अपनी याचिका पर हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर बहस करना चाहते हैं, उन्हें हिंदी में बहस करने की छूट दी जा रही है। इसके पीछे कोर्ट का उद्देश्य याचिकाकर्ता को अपनी बात स्पष्ट रूप से कहने की आजादी देना और हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिश भी शामिल है।


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