जरुरी नहीं रौशनी चरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं
ज़ाकिर घुरसेना / कैलाश यादव
खबर है कि एक तरफ यूक्रेन से लौटने वाले मेडिकल छात्रों को भारत सरकार देश के मेडिकल कालेजों में ही दाखिला देकर उनका भविष्य संवारने वाली है, दूसरी तरफ उनके मंत्री प्रहलाद जोशी बयान देते है कि विदेश में पढऩे वाले 90 प्रतिशत छात्र नीट पास नहीं कर पाते इसलिए विदेश जाते है, ये कैसा विरोधाभास। खारकीव में रूस की गोलीबारी से भारतीय छात्र की मौत से सबके मन में ये सवाल उठ रहा है कि 1991 सोवियत रूस से अलग हुए देश में इतने कम खर्चे में डाक्टरी की पढाई कैसे संभव है। क्या भारत सरकार ऐसा नहीं कर सकती कि यहां भी पढ़ाई सस्ती हो जाये।
मृत छात्र नवीन के पिता ने यह भी अपील की है कि गुणवत्ता की दुहाई देकर 90 प्रतिशत अंक पाने वाले छात्रों को शिक्षा से महरूम नहीं रखना चाहिए। कालेज खोलने के लिए नियम व शर्ते आसान और फीस कम कर दें तो भी काफी तादात में बच्चे बाहर न जाकर यहीं पढ़ाई कर सकते हैं। दूसरी बात ये ही यूक्रेनी डाक्टर विदेशों में जाकर इलाज करते हैं लेकिन भारत में उनको मान्यता नहीं मिलती ऐसा क्यों?
जबकि बड़े बड़े नेता, अधिकारी बेहतर ईलाज के लिए विदेश जाते हैं। भारत में कई कॉलेजों में छात्रों को पांच साल में एक करोड़ से भी अधिक फीस चुकानी पड़ जाती है। और प्रतिभाशाली गरीब बच्चे चाह कर भी डाक्टर नहीं बन सकते यानी व्यवस्था में ही खोट है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि एक तरफ 73 साल पूर्व आजाद हुए देश और मात्र 31 साल पहले स्वतंत्र हुए यूक्रेन में 40 लाख में छात्र डाक्टर बन रहे है। और भारत में डेढ़ करोड़ में भी डाक्टर नहीं बन पा रहे है। 73 साल पुरानी पद्धति को बदलने के लिए भारत सरकार को शिक्षाविदों से विचार विमर्श करना चाहिए। यूक्रेन से पढ़े डाक्टरों को देश में सीधे प्रैक्टिस करने पर रोक है।
कई छात्र इन पेचीदगी से बचने दूसरे देशों में प्रैक्टिस कर लेते हैं, क्योंकि वहां ऐसी परीक्षा की बाध्यता नहीं होती। सरकार को चाहिए इस पर ठोस नीति बनाये ताकि भारतीयों को विदेश जाकर पढऩे की जरुरत न पड़े। निजी मेडिकल कालेजों में डोनेशन इतना है कि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चे को डाक्टर बनाने की सोच भी नहीं सकता इसी बात पर ठीक ही कहा गया है जरुरी नहीं रौशनी चरागों से ही हो, शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं।
भूपेश ने पकड़ी योगी की दुखती नस
भूपेश बघेल ने यूपी की चुनावी सभा में श्रोताओं को प्रभावित किया। लोग भूपेश की सभा में छत्तीसगढ़ मॉडल को जानने पहुंचते रहे है। यूपी में छुट्टा घूम रहे मवेशियों की दुखती नस भूपेश बघेल ने पकड़ ली है और सभा में जमकर दबाने से भी पीछे नहीं हटे। यूपी की सभी सभाओं में छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना के फायदे गिनाए। दो रुपए किलो में गोबर खरीदी और फसलों को मवेशियों से बचाने गौठानों से लोगों को मिलने वाले रोजगार को बी बताया। जिन किसानों के पास मवेशी नहीं है वे भी गोबर बिनकर हर महीने 3 से 30 हजार तक कमाई कर रहे है और यूपी छुट्टा मवेशी जान लेवा साबित हो रहे है। जनता में खुसुर-फुसर है कि अब योगी जी को चुनाव परिणाम के बाद भूपेश बघेल को राजनीतिक गुरू बना लेना चाहिए जिससे मवेशी और गोबर की उपयोगिता को महत्व दे सके। पीएम मोदी ने तो भूपेश बघेल के नक्शे कदम पर चलकर इंदौर में गोबरधन प्लांट का शिलान्यास कर दिया है।
कोरोना की लहर आखिर कब होगी खत्म
बारत में कोरोना वायरस की चौथी लहर की खबर आ रही है। अभी तो तीसरी लहर की भी ठीक से वापसी नहीं हुई है और ये चौथी लहर ने फिर डराना शुरु कर दिया है। जनता में खुसुर-फुसर है कि आखिर इस कोरोना से भारत कब मुक्त होगा। चौथी लहर करीब चार माह चलेगी। उधर विश्व संगठन ने हाल ही में आगाह किया था कि ओमिक्रान स्वरूप अंतिम स्वरूप नहीं होगा। अगला स्वरूप अधिक संक्रामक हो सकता है। देश में कोरोना ने पिछले तीन लहरों में कमर तोड़ कर रख दी है, जनता तीनों लहरों की चपेट से पूरी तरह नहीं उबर पाई है और ऐसे में चौथी लहर 22 जून के आसपास सकती है। इस खबर ने देश में फिर डरावना माहौल बना दिया है।
मुख्यमंत्री भूपेश योगी के मठ क्यों गए?
कांग्रेस के स्टार प्रचारक और यूपी के मुख्य पर्यवेक्षक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है।
सीएम भूपेश ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पांच चरणों में मतदान हो चुका है, पहले, दूसरे और तीसरे चरण में जो रूझान सामने आए है उससे साफ हो गया है कि भाजपा का यूपी से विदाई तय है और योगी आदित्यनाथ की घर वापसी यानी मठ में बैठना तय है। जनता में खुसुर-फुसर है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस हाईकमान ने ऐसे ही पर्यवेक्षक नहीं बनाया है। मुख्यमंत्री भूपेश यूपी के सीएम योगी के मठ में गोरखनाथ की पूजा करने के साथ पहले जहां योगी बैठते थे, उस स्थान का भी पर्यवेक्षण करने गए थे।
गोरखनाथ मठ से बाहर निकलते ही घोषणा कर दी कि अब बाबा आदित्यनाथ योगी का मठ में स्थान सुरक्षित हो गया है। क्योंकि चुनाव के दौरान मतदान में रूझान दिखाई वह योगी को मठ में बैठने वाला है।
गुमनाम सेनानी को तलाशेगी या चुनाव परिणाम में खो गए राज्यों को
आजादी की लड़ाई में कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने हिस्सा लिया इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ गंवाने वाले हजारों सेनानियों का नाम न तो अभिलेखों में है और न ही लोगों को पता है। इसके लिए केंद्र्रीय संस्कृति मंत्रालय देश भर के विवि के इतिहासकारों की मदद लेने की तैयारी कर रही है। कोई व्यक्ति अनसंग हीरोज के बारे में कुछ भेजना चाहता है तो इतिहास विभाग में भेज सकता है।
जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये तो एक बहाना है इसी बहाने चुनाव परिणाम आने के बाद जहां अनपेक्षित परिणाम आए है वहां के विभीषणों की तलाश करेगी। गुमनाम सेनानी की खोज करना टेढ़ी खीर है, यह जितना आसान दिखता है उतना सरल नहीं है। क्योंकि आजादी के हर आंदोलन में लाखों दीवाने बिना किसी के आह्वान के खुद होकर आजादी की लड़ाई कूद कर स्वयं की आहूति दे दी। घर वालों को भी पता नहीं चला कि वे लोग कहां गए। अपना सब कुछ देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दिया।
यूपी में वोटिंग ट्रेंड को लेकर खुसुर-फुसुर
यूपी में विधानसभा के छठवें चरण का मतदान गुरुवार को संपन्न होते ही चुनाव विश्लेषकों की खुसुर-फुसर शुरू हो गई है। पांच चरणों में कमोबेश 2017 में जितनी वोटिंग हुई है। वोटिंग ट्रेंड को लेकर एक्सपर्ट अब इस बात के आकलन में जुट गए है कि वह प्रो इनकम्बेंसी है या एंटी इनकम्बेंसी है।
2019 के लोकसभा चुनाव का वोटिंग ट्रेंड भी इससे बहुत अलग नहीं था, कुछ लोग तो इसके पीछे कोरोना महामारी को वजह बताते है, तो अन्य कहते है कि जनता ने सभी दलों को देख लिया है और इसलिए चुनाव लडऩे वाली पार्टियों ओर से किए गए वादे को लेकर भी उत्साह नहीं है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि यूपी का ताज किसके सिर पर होगा इसके लिए 10 मार्च तक इंतजार करना पड़ेगा। अभी तो सिर्फ चाय-पान ठेलों में चुनावी विश्लेषण का दौर जारी है।