अगला आम चुनाव का मुद्दा मंहगाई होगा या देशवासी जातिवाद में उलझे रहेंगे?
ज़ाकिर घुरसेना
कहावत है कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है लेकिन अब यह सियासत में भी जायज होता दिख रहा है। राजनैतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए नफऱत फैलाने का काम कर रहे हैं जो देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं दिखता। लेकिन उन्हें यह सत्ता के लिए जायज दिखता है। देश की जनता ने देखा है कि जिस जिस प्रदेशों में चुनाव हुए थे वहां साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं में अचानक इजाफ़ा हुआ था, इन हिंसक घटनाओं पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि जिन राज्यों में इस साल या अगले साल चुनाव होने वाले हैं, वहां भी साम्प्रदायिक तनाव भड़कने की हिंसक घटनाएं ज्यादा हो रही है। ऐसी घटनाओं में जान-माल का नुकसान तो बेगुनाह आम आदमी का ही हुआ है। उसके बावजूद आम जनता का ध्यान इस ओर जा ही नहीं रहा है। लोग बढ़ती मंहगाई, पेट्रोल डीज़ल और गैस के दामों में हो रहे बेतहाशा इजाफे को छोड़ सिर्फ साम्प्रदायिकता के नशे में मदहोश नजऱ आ रहे हैं। साम्प्रदायिकता के सामने इन मुद्दों से जनता का ध्यान या तो भटका दिया गया है या भटक गया है। मंहगाई का मुद्दा बौना नजऱ आ रहा है। आज से 40 साल पहले बनी एक हिन्दी फिल्म रोटी-कपड़ा और मकान में मनोज कुमार व्दारा गाए गाना बाकी कुछ बचा तो मंहगाई मार गई...आज अक्षरश: चरितार्थ हो रहा है। लेकिन जनता के सामने मंहगाई का मुद्दा ही नजर नहीं आ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली चुनाव के वक्त पेट्रोल डीज़ल के बढे दामों पर ट्वीट किये थे कि उनके नसीब से पेट्रोल डीज़ल के दामों में कमी आयी है तो नसीब वालों को वोट दीजिये बदनसीब को नहीं, वहीँ स्मृति ईरानी ने मनमोहन सिंह की सरकार ने जब पेट्रोल डीज़ल का रेट बढ़ाया था तब उन्होंने ट्वीट किया था कि पेट्रोल की कीमतों में फिर वृद्धि यूपीए लोगों की तकलीफों को नजऱ अंदाज़ करती है यह सत्ता की हेकड़ी है। अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि अभी तेल और गैस के दाम बढ़ रहे है तो क्या यह मोदी सरकार की हेकड़ी है ? या अब मोदी जी के नसीब को क्या हुआ जो धड़ाधड़ तेल और गैस के दामों में बढ़ोतरी किये जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि जब तेल का रेट बढ़ेगा तो मंहगाई भी बढ़ेगी।
5 राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद जिस प्रकार से पेट्रेोल -डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है और पिछले दिनों गैस के दाम में सीदे 50 रुपए की बढ़ोत्तरी की गई इस पर न तो जनता कुछ बोल रही और न ही विपक्ष कोई आंदोलन कर रहीहै जनता तो मंहगाई से परेशान है तो क्या विपक्ष भी मृतप्राय: हो गई है? सन 2012 में जब मोदी गुजरात के सीएम थे, और केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब उन्होंने ट्वीट किया था कि पेट्रेोल की कीमतो ंमे ंबढ़ोत्तरी यूपीए की नाकामी है, इससे करोड़ों गुजरातियों पर असर पड़ेगा। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने यह भी कहा था कि पेट्रोल की कीमतों को बढ़ाने के फैसला संसद के सत्र के खत्म होने के एक दिन बाद लेना संसद की गरिमा को चोट पहुंचाना है। क्या अब संसद की गरिमा याद नहीं आ रही है और करोड़ों भारतीयों के बारे में नहीं सोच रहे है। पिछले महीने पांच प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को जिस प्रकार से जनादेश मिला उससे उन्हें भी लगने लगा कि अब मंहगाई जनता का मुद्दा नहीं रह गया है। लेकिन जनता में सुगबुगाहट तो जरूर है मंहगाई को लेकर। हालांकि क्रूड आयल के दामों में बढ़ोतरी से मजबूरन आयल कंपनियों को रेट बढ़ाना पड़ रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने वेट में कमी कर तेल के दामों में कमी जरूर की थी और बाकि राज्यों को वेट कम कर तेल के दामों में कमी करने हेतु कहा था। कुछ राज्यों ने जरूर वेट कम कर तेल के रेट में कुछ कमी किया था। लेकिन वो भी ऊंट के मुँह में जीरा के सामान था।
राजनीतिक विश्लेषक यह जरूर कह रहे हैं कि अगला आम चुनाव पेट्रोल डीज़ल और गैस के दामों पर हो सकती है। देश में हो रहे साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं पर संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी चिंता जताई है। और सात समुन्दर पार संसदों में भारत का साम्परदायिक तनाव का मुद्दा उठाया जा रहा है। उसके बावजूद किसी को कोई फर्क पड़ता नजऱ नहीं आ रहा है। हिन्दू और मुस्लिमों को एक दूसरे का दुश्मन बताया जा रहा है। कर्नाटक का हिजाब मामला हो, मध्यप्रदेश के खरगोन का मामला, दिल्ली के जहांगीरपूरी क्षेत्र का मामला हो या मुंबई का अजान और हनुमान चालीसा विवाद सब का मकसद वही था कि दो समुदायों के बीच नफऱत को और कैसे बढ़ाया जाए। देश के विभिन्न हिस्से में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की एक जैसी घटनाएं होना किसी सुनियोजित साजिश की तरफ इशारा करती है। आने वाले दिनों में इन सभी जगहों में चुनाव होना है। साम्प्रदायिक तनाव के पीछे ऐसा लगता है कि इन सबके पीछे चुनाव ही बड़ी वजह है। जब जनता जनार्दन मंहगाई, बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाएगी तब परिणाम कुछ और ही होंगे। लेकिन जिस प्रकार से गैस और तेल के दामों में इजाफा हो तरह है आने वाला आम चुनाव का मुख्य मुद्दा यही रहेगा।