- महीनों बाद भी कई जिलों में नहीं पहुंची गाडिय़ां!
- क्यों किया जा रहा है लोकप्रिय भूपेश सरकार को बदनाम
- छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन में दवा परिवहन का मामला
- एक माह के भीतर ठेकेदार को सम्पूर्ण वाहन उपलब्ध कराना था लेकिन आज तक कई जिलों में वाहन उपलब्ध नहीं कराये गये
- दवा परिवहन के लिए जानबूझकर अपात्र फर्म को लाभ पहुंचाया गया, मिली भगत की आशंका
- सेनेटरी नेपकिन खरीदी में भी विभाग की फजीहत हुई, कम दाम की नेपकिन को अधिक दाम में खऱीदा गया
- सेनेटरी नेपकिन खरीदी में भी किया जमकर भ्रष्टाचार
सीजीएमएससी का अभी हाल में ही एक और घोटाला सामने आया है। केंद्र सरकार द्वारा जनऔषधि प्रोजेक्ट के तहत मात्रा एक रुपए में सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध करा रही है वहीं दूसरी ओर सीजीएमएससी द्वारा निजी फर्म से 1.85 में खरीदी करने की सूचना मिली है, इस बात की पुष्टि के लिए विभाग के जिम्मेदार अधिकारियो से चर्चा कर हकीकत जानने की कोशिश की गई लेकिन मोबाइल रिसीव नहीं किया गया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में मुफ्त में सेनेटरी नेपकिन के वितरण हेतु एक जुलाई को इसके लिए टेंडर पास किया गया है जबकि प्रधानमंत्री जनऔषधि की वेबसाइट से पता चला कि उनके द्वारा मात्र एक रूपये में सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध कराया जाना बताया जा रहा है। इस प्रकार सीजीएमएससी पुराने घोटालो से सबक नहीं लिया गया है। ऐसा महसूस किया जा रहा है कि सेनेटरी नेपकिन खरीदी में भी जमकर भ्रष्टाचार किये जाने की चर्चा है।
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा दवा परिवहन के लिए दी गई निविदा में गोलमाल नजऱ आ रहा है। सबसे पहले तो निविदा बुलाया गया तब निविदाकारों के दस्तावेजों को सही ढंग से देखा नहीं गया। एवं जिस ठेकेदार को काम दिया गया है उसने समय पर वाहन भी नहीं लगाया। सूत्र यह भी बताते हैं कि कई जिलों में आज पर्यन्त सम्पूर्ण गाडिय़ां पहुंची ही नहीं आधेअधूरे वाहनों से काम चलाया जा रहा है। जिससे समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनरक्षक दवाईयां नहीं पहुँच रही है। विश्वसनीय सूत्रों से या भी जानकारी मिली है कि सफल निविदाकार द्वारा निविदा में चाही गई वाहन के बदले दूसरा वाहन दिया जा रहा है। विभाग द्वारा इन सब की अनदेखी की जा रही है। विभागीय अधिकारीयों की मिलीभगत से निविदा शर्तों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। निविदा की शर्तों के मुताबिक ठेकेदार के पास खुद की 16 गाडिय़ां होना आवश्यक था , आवश्यकता पडऩे पर बाहर से गाड़ी बुलवाकर दवा परिवहन में लगाई जा सकती थी लेकिन सूत्र बताते हैं कि सफल निविदाकार के पास स्वयं की 16 गाड़ी भी नहीं है। यह भी सूचना मिली है कि निविदाकार द्वारा जो वाहन निविदा में दी गई थी जैसे टाईप1 एवं टाईप 2 , इस प्रकार का वहां भी दवा सप्लाई में नहीं लगाया गया है। निविदाकार को कार्यादेश जारी होने के एक माह के भीतर ही सभी वाहन लगानी थी। कार्यादेश 13 मई 2021 को विभाग द्वारा जारी किया गया था लेकिन आज लगभग तीन महीने हो चुके हैं कई जिलों में सम्पूर्ण वाहन नहीं पहुंची है। सम्बंधित जिलों के अधिकारियो से जानकारी मिली है कि अभी तक सम्पूर्ण वाहन नहीं पहुंची है। निविदा की शर्तो के मुताबिक विभाग इस दशा में निविदाकार को काली सूची में डाल कर ईएमडी की राशि जप्त कर निविदा निरस्त कर सकती है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं होना संदेह को जन्म देता है। एक के बाद एक खुलासे से सरकार के काम पर पलीता लग रहा है। लगता है विभाग पिछले घोटालो से सबक नहीं लिया है। सरकार को संज्ञान में लेकर दोषियों पर करवाई करनी चाहिए। दवा परिवहन में घोटाला भी जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही है। सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि सीजीएमएससी द्वारा दवा परिवहन हेतु बुलाई गई निविदा के मूल्याकन में गड़बड़ी कर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाया गया है। साथ ही निविदा में दिए शर्तो का भी खुल्लम खुल्ला उललंघन किया गया है। गौरतलब है कि सीजीएमएससी द्वारा राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की गई पोविडोन आयोडीन एंटीसेप्टिक साल्यूशन (घोल) को जांच में नकली पाया गया था । मामला खुलने के बाद शासन ने आनन-फानन में सभी अस्पतालों से दवा को वापस मंगा लिया था। औषधि विभाग ने जाँच की थी तो दवाई गुणवत्ताहीन पाई गई थी।
अफसर बेलगाम हो गए हैं
कम दर की सेनेटरी नेपकिन को अधिक दर पर सीजीएमएससी के अधिकारियो द्वारा खऱीदा गया है। जिसकी भी शिकायत प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव से लिखित में की गई थी लेकिन कुछ कार्रवाई नहीं हुई। इस सम्बन्ध में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने तत्काल करवाई करने कहा था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई । कहीं प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जानबूझकर बदनाम करने की साजिश तो नहीं हो रही है?
विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होने से सीजीएमएससी के अधिकारियों और कर्मचारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं और अपनी मनमानी कर रहे हैं। शिकायतकर्ता को स्वास्थ्य मंत्री ने जांच के बाद निश्चित तौर पर दोषियों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया था लेकिन इसके बावजूद भी सीजीएमएससी के अधिकारियो को कोई फर्क नहीं पड़ते दिख रहा है। ज्ञातव्य है कि सीजीएमएससी लिमिटेड के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से दवा परिवहन हेतु वाहनों को लगाने दर अनुबंध हेतु 5 दिसंबर 2020 को निविदा आमंत्रित की गई थी जिसमें कुल 3 निविदाकारों ने भाग लिया था उक्त निविदा में दिनांक 24 फऱवरी 2021 को दावा आपत्ति चाही गई थी जिसके तहत तीनों निविदाकारों को अपात्र घोषित कर दिया बाद में एक निविदाकार को पात्र कर दिया गया। दावा आपत्ती में दूसरे निविदाकारो को मामूली बात पर अपात्र घोषित कर अपने चहेते को निविदा दिए जाने की जानकारी मिली है। जिसमे भारी भ्रस्टाचार किये जाने की आशंका है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अनुभवहीन फर्म को निविदा दी गई है। जबकि निविदा की शर्तो के मुताबिक अनुभवहीन निविदाकार को निविदा में भाग लेने की अनुमति ही नहीं थी। इस सम्बन्ध में एक अन्य प्रतिभागी द्वारा कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाने की जानकारी मिल रही है। एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा भी इस सम्बन्ध जानकारी मांगने की जानकारी मिली है। जिस निविदाकार को पहले इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव ही नहीं है उसे निविदा किस आधार पर दिया गया है जाँच का विषय है। इससे जाहिर होता है कि दवा परिवहन निविदा के मूल्यांकन में गड़बड़ी कर जमकर भ्रस्टाचार किया गया है। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि वहीं टेंडर भरने की अंतिम तारीख तक ईएमडी की राशि जमा की जाती है लेकिन सफल निविदाकार द्वारा तय तिथि तक भी एमडी की राशि जमा नहीं की गई थी लेकिन वित्तीय मूल्यांकन में निविदाकार द्वारा पुरानी निविदा में जमा की गई ईएमडी राशि के रूप में स्वीकार कर लिया गया है जिसके संबंध में प्रबंध संचालक द्वारा किसी भी तरह का अनुमोदन नहीं लिया गया है जो कि निविदा के नियम के विरुद्ध है। समिति द्वारा गुमास्ता के नाम पर भी गोलमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि विभाग द्वारा जानबूझकर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचने के लिए ऐसा किया गया है। । सफल निविदाकार द्वारा टेंडर की शर्तो का खुला उललंघन इसके बावजूद पात्र घोषित किया जाना संदेह के घेरे में है। इन सबको देखते हुए इस बात से इंकार नहीं जा सकता कि निविदा में भारी गड़बड़ी हुई है। इस सम्बन्ध में सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक एवं अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से जानकारी हेतु कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाई। वाहन नहीं पहुंचने से दवा सप्लाई पर असर पडऩे की जानकारी है। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि प्रदेश के कई जिलों में अभी तक ठेकेदार द्वारा वाहन मुहैया नहीं कराया गया है। सूत्रों ने यह भी जानकारी दी कि कई जिलों में अभी तक ठेकेदार द्वारा सम्पूर्ण वाहन की व्यवस्था नहीं की गई है। विभिन्न डिपो के सहायक प्रबंधको से बात करने पर उनके द्वारा बताया गया कि मुख्यालय से वाहन भेजने के उपरांत ही हम दवाओं का परिवहन करवा सकते है। ठेकेदार द्वारा वाहन भेजने की बात हुई है लेकिन लगभग तीन माह होने को है अभी तक संपूर्ण वाहन नहीं मिला है।
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