छत्तीसगढ़

आईपीएल सट्टा: कोई होगा कंगाल तो कोई मालामाल

Admin2
1 April 2021 5:52 AM GMT
आईपीएल सट्टा: कोई होगा कंगाल तो कोई मालामाल
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बुकियों-सटोरियों ने शुरू की तैयारी, पुलिस की भी नजर

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। टी-20 इंडियन प्रीमियर लीग आईपीएल का आगाज़ होने वाला है, उसमें सटोरियों की दिवाली होने वाली है, ये दीवाली पूरे डेढ़ माह तक चलने वाली है। जुए-सट्टे का कारोबार आए दिन अपने पैर पसार रहा है। सटोरिए और जुआरिओ का सबसे सुरक्षित शहर रायपुर और उसके आसपास के ग्रामीण इलाके है।

शहर में सट्टा कारोबार का संचालन जोरो पर है, शहर व इसके आसपास और ग्रामीण क्षेत्रों में खुलेआम चल रहे जुआ के अड्डे जहाँ एक ओर कानून व्यवस्था का खुला मजाक उड़ा रहे हैं, तो वहीं अवैध रूप से चल रहे जुआ और सट्टा के इस खेल से युवा पीढ़ी तबाह हो रही है जबकि अवैध रूप से खेले जा रहे इस खेल से पुलिस खुद को अनजान बता रही है। अधिकारियों को इसकी जानकारी होने के बावजूद किसी भी प्रकार की मुहिम नहीं चलाई जा रही है। इस कारण शहर में खुलेआम यह कारोबार खूब फल-फूल रहा है। विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि छुटभैय्या नेताओं और आसपास के रसूखदारों की मदद से जुएं एवं सट्टे का कारोबार चल रहा है। रायपुर में लंबे समय से इस कारोबार का संचालन हो रहा है लेकिन यहां तक वर्दी धारियों की पहुंच नहीं हो पा रही है और यही कारण है कि स्थानीय लोगों की मदद से सट्टा का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है।

क्या है स्पाट फिक्सिंग? : पहले पूरे मैच यानी नतीजे फिक्स किए जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला है। अब स्पाट और फैंसी फिक्सिंग से ही काम चल जाता है। अब मैच फिक्स करने की जरूरत नहीं, स्पॉट फिक्सिंग से ही भरपूर कमाई हो जाती है। स्पॉट फिक्सिंग का मतलब है कि मैच के किसी खास हिस्से को फिक्स कर देना। वहीं फैंसी फिक्सिंग काफी लोकप्रिय है। इसमें मैच की एक-एक गेंद पर कितने रन बनेंगे, कौन सा बैट्समैन कितने रन बनाएगा, पूरी पारी में कितने रन बनेंगे, इन सब पर सट्टा लगता है।

रेट कैसे तय होते हैं

आईपीएल क्रिकेट की जो सट्टेबाजी होती है, वो अवैध है, इसके रेट दिल्ली और मुंबई से तय होते है। वहां से रेट की जानकारी बड़े खाईवालों को पहुंचाया जाता है और वह से सटोरियों को और उनके धंधे से जुड़े लोगों को पहुंचाई जाती है। ये रेट सबसे पहले मुंबई पहुंचते हैं। फिर वहां से बड़े बुकिज़ और फिर वहां से छोटे बुकिज़ के पास पहुंचते हैं। अगर किसी टीम को फेवरेट मानकर उसका रेट 80-83 आता है, तो इसका मतलब यह है कि फेवरेट टीम पर 80 लगाने पर एक लाख रुपए मिलेंगे। दूसरी टीम पर 83 हजार लगाने पर एक लाख जीत सकते हैं। लेकिन जिस टीम पर सट्टा लगाया है, वो अगर हार गई तो लगाया गया पूरा पैसा डूब जाएगा। मैच आगे बढऩे के साथ टीमों के रेट भी बदलते रहते हैं।

क्या होता रेट का कोड वर्ड

मैच की पहली गेंद से लेकर टीम की जीत तक भाव चढ़ते-उतरते है, एक लाख को एक पैसा, 50 हजार को अठन्नी, 25 हजार को चवन्नी कहा जाता है। जीत तक भाव चढ़ते उतरते है। एक लाख को एक पैसा, 50 हजार को अठन्नी, 25 हजार को चवन्नी कहा जाता है। अगर किसी ने दांव लगा दिया और वह कम करना चाहता है तो फोन कर एजेंट को मैंने चवन्नी खा ली कहना होता है। ऐसे पूरे खेल को अंजाम दिया जाता है।

आईपीएल के हर मैच पर कितनी सट्टेबाजी

पुलिस का ये मानना है कि पूरे आईपीएल क्रिकेट मैच में करीब तीन सौ करोड़ रुपए का कारोबार होता है। ऐसा ही हाल दूसरे देशों का भी है। आईपीएल जैसी लीग अपने चरित्र और खेल के फार्मेट के कारण सट्टेबाजों और फिक्सरों के लिए मुफीद बन चुका है। अंदाज है कि हर आईपीएल मैच पर करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए की सट्टेबाजी होती है।

कैसे चलता है ये खेल : सट्टे पर पैसे लगाने वाले को एजेंट कहते है वही सट्टे के स्थानीय संचालक को बुकी कहा जाता है। सट्टे के खेल में कोड वर्ड का इस्तेमाल होता है। सट्टा लगाने वाले एजेंट दो शब्दों खाया और लगाया का इस्तेमाल करते है।यानी किसी टीम को फेवरेट माना जाता है तो उस पर लगे दांव को लगाया कहते हैं। ऐसे में दूसरी टीम पर दांव लगाना हो तो उसे खाना कहते हैं।

बुकियों और सटोरियों ने शहर में किया कब्जा

बड़े सटोरियों ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग अब खुलेआम सट्टा खेल रहे हैं और उनमें पुलिस का भी कोई डर नहीं नजर आता। वहीं पुलिस भी इस पूरे मामले पर अपनी आंखें मूंदे हुए हैं। रायपुर की तंग गलियों में काफी लोग सट्टे के धंधे में लगे हुए हैं। वहीं हालात देखकर लगता है कि इस पूरे मामले में कहीं ना कहीं छुटभैय्या नेताओं की भी मिलीभगत है। क्योंकि जिस तरह लोग खुलेआम सट्टा लगा रहे हैं, खबर तो यह भी है कि एक बार यह कारोबार बंद होने के बाद पिछले खाईवाल के बुलावे पर ही यह कारोबार दोबारा चालू हुआ है। शहर में रोजना लाखों रुपए का सट्टा खेला जा रहा है। और धडल्ले से चल रहे इस कारोबार को इलाके के सफेद पोश नेताओं और खाईवालों का खुला संरक्षण प्राप्त है, कालीबाड़ी में में ही प्रतिदिन लाखों का कारोबार होता है, जबकि बाकि जगहों से भी अवैध कमाई इसी कारोबार से किया जा रहा है।

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