छत्तीसगढ़

कार्रवाई करने के बजाय अधिकारी और कर्मचारी बने शो-पीस

Nilmani Pal
1 Jan 2022 5:59 AM GMT
कार्रवाई करने के बजाय अधिकारी और कर्मचारी बने शो-पीस
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  1. पर्यावरण संरक्षण मंडल के जिम्मेदार अपने ही विभाग की प्रणाली को लगा रहे जंग
  2. औद्योगिक धूल और प्रदूषण से नागरिकों का जीना हुआ मुहाल
  3. फैक्ट्रियों के डस्ट से जन्म ले रहे कुपोषित बच्चे
  4. फैक्ट्रियों को प्रदूषण मुक्त एनओसी देने कर रहे भारी भरकम वसूली
  5. मेडिकल वेस्ट आसपास खेत में खपाने से जमीन की उर्वरा क्षमता कम होने के साथ उत्पादित हो रहे जहरीली सब्जियां
  6. पर्यावरण विभाग ने अस्पतालों और क्लीनिकों के वेस्ट खपाने का आज तक नहीं लिया संज्ञान

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। एक कहावत है कि घर को आग लगी घर के चिराग से, इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है पर्यावरण विभाग का चाल और चरित्र। पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले प्रदेश के नर्सिंग होम और क्लिनिक संचालकों पर पर्यावरण संरक्षण मंडल मेडिकल वेस्ट खपाने को लेकर पूरी मेहरबान नजऱ आ रहा है। शासन और एनजीटी के निर्देशानुसार हर ऐसे उद्योग धंधे, नर्सिंग होम या क्लिनिक इन सभी के खुलने से पहले पर्यावरण विभाग द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है उसके बाद ही उन्हें कार्य प्रारम्भ करने की अनुमति दी जाती है। लेकिन देखा ये जा रहा है कि एनओसी के आड़ में पर्यावरण विभाग के अधिकारी और छोटे कर्मचारी भारी भरकम उगाही कर रहे हैं। बड़े अधिकारियो को इसकी भनक तक नहीं लगती। छोटे कर्मचारी या अधिकारी संबंधित संस्थान में कोई न कोई कमी बताकर और उनके द्वारा जमा किये गए आवेदन में भी कमी बताकर प्रकरण को रोक देते हैं और मनमाने रूपये वसूलते हैं। पर्यावरण विभाग द्वारा नर्सिंग होम और अस्पतालों की मॉनिटरिंग नहीं की जाती है जिसका फायदा नर्सिंग होम वाले उठा रहे हैं। नर्सिंग होम से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के लिए ट्रीटमेंट प्लांन्ट लगाना आवश्यक कर दिया गया है जो कि एनओसी देते वक्त ही बता दिया जाता है कि यह प्रक्रिया अनिवार्य नियमों में शामिल है। लेकिन नियम कायदों के उललंघन करने के बावजूद पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारी इन सब बातों का अनदेखी कर रहे हैं। जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। अस्पतालों और क्लिनिक से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह है। अस्पतालों और क्लिनिक संचालको के लिए भले ही ये मामूली कचरा होता है लेकिन जनमानस और अन्य जिव जन्तुओ के लिए यह ज़हर की पुडिय़ा है यानि मौत का सामान है। इन कचरो से पर्यावरण को नुकसान तो पहुँचता ही है लोगों को इंफेक्शन, एचआईवी, महामारी हेपेटाइटिस जैसी गंभीर बीमारियां भी होने का अंदेशा बना रहता है। लेकिन चंद पैसों के लालच में पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारी इन सब पर ध्यान नहीं देते। मेडिकल वेस्ट निजी और सरकारी दोनों अस्पतालों से निकलता है लेकिन पैसों के लालच में वहां के स्टाफ इस जैविक कचरे को कबाडिय़ों को बेच देते हैं। इसके आलावा कई निजी अस्पताल इस कचरे को आसपास के खुले जगह या नालो में डाल देते है और वहां से कचरा कबाडिय़ों तक पहुंच जाता है। कबाड़ में कुछ ऐसी सामग्री भी होती है जैसे कि सीरिंज, टेबलेट की शीशियां, प्लास्टिक ड्रिप या कई अन्य ऐसी भी सामग्री हैं जिसके संपर्क में आने से इंसान गंभीर बीमारी की चपेट में आ सकता है। पर्यावरण विभाग के उच्चधिकारियों को इन सब की जानकारी नहीं होती। इन कचरों के वजह जमीन की उत्पादकता जहरीली होने से सब्जियों और अनाज पर भी पड़ता है। शहर के आसपास सब्जी और अनाज भी बहुतायत मात्रा में उगाये जाते है जिसका असर भी इनके उत्पादन और क्वालिटी पर भी फर्क पड़ता है।

जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

नर्सिंग होम से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को सही तरीके से नष्ट करने के लिए पर्यावरण निरीक्षकों की जिम्मेदारी होती है लेकिन पर्यावरण विभाग के निरीक्षक इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते, हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सख्ती के बाद मंडल ने पहली बड़ी कार्रवाई की थी । सहर के कुछ नर्सिंग होम पर कार्रवाई करते हुए उन पर जुर्माना भी लगाया गया था। कार्रवाई को पर्यावरण क्षतिपूर्ति का नाम दिया गया था। लेकिन सवाल ये उठता है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल के होते हुए पर्यावरण क्षति होना ही नहीं था। जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिन अस्पतालों पर जुर्माना लगाया गया था उसमे कुछ बड़े और सरकारी अस्पताल भी इसमें शामिल थे। पर्यावरण क्षतिपूर्ति को आधार बनाकर विभागीय कर्मचारी अस्पताल और क्लिनिक में बेड के अनुसार रेट तय करते हैं। जितना बड़ा अस्पताल उतना ज्यादा पैसा। विभाग के उच्च अधिकारियों को इसे संज्ञान में लेकर संबंधित कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ।

निजी व सरकारी अस्पताल पर्यावरण की कर रहे अनदेखी

पर्यावरण की अनदेखी और नियमों का उल्लंघन निजी व सरकारी अस्पताल दोनों कर रहे हैं। हालांकि पर्यावरण संरक्षण मंडल ने मेडिकल वेस्ट के डिस्पोजल को लेकर लापरवाही बरतने वाले अस्पतालों को नोटिस जारी किया था और समझाइश भी दिया गया था। लेकिन पर्यावरण संरक्षण मंडल के कर्मचारियों की मिली भगत के चलते संचालकों ने ध्यान नहीं दिया, जिसकी सजा आमजनता भुगत रही है। ध्यान नहीं देने वाले अस्पताल संचालकों पर मंडल की सख्ती कार्रवाई की चेतावनी जरूर देते हैं लेकिन ये सख्ती बाद में नरमी में बदल जाती है।

इन नियमों का पालन हो रहा है या नहीं जानकारी नहीं

1- सभी अस्पतालों को अपने संस्थानों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को लेकर सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसी से अनुबंध करना होगा। भले ही अस्पताल 10 बिस्तरों से कम का भी क्यों न हो?

2- अस्पतालों से निकलने वाले मल-मूत्र, खून और अन्य केमिकल को सीधे नाले-नालियों में न बहाकर ट्रीटमेंट करके बहाए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए अस्पतालों को तत्काल सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने के निर्देश दिए गए हैं।

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