छत्तीसगढ़

मयूर पंख के जगह प्लास्टिक की सोहाई से सज रही है देवारी तिहार में गाय माता

Shantanu Roy
24 Oct 2022 7:05 PM GMT
मयूर पंख के जगह प्लास्टिक की सोहाई से सज रही है देवारी तिहार में गाय माता
x
छग
बालोद। दिपावली का पर्व पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता राहा है। भारत के छत्तिसगढ़ राज्य में दिपावली का यह पर्व और भी उत्साह से मनाये जाने का रिवाज बरसों से चलन में मौजूद है। राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में यह त्यौहार किसान और कृषि सेक्टर की सफलता पूर्ण उपलब्धि के बाद मनाया जाता राहा है। लिहाजा कृषि सेक्टर को प्रभावित करने वाली तमाम गतिविधियों को इस त्यौहार में बकायदा शामिल कर खुशीयां मनाई जाती है। बरसों से राज्य के अंदर मौजूद कृषि सेक्टर को पशुओं से काफी सफलता मिलती हुई देखा जाता राहा है लिहाजा इस त्यौहार में पशुओं को किसान शामिल करते हैं अपितु मवेशियों की पुजा भी करते हैं। गांवों में बैगर राऊत के देवारी ना के बराबर मानी है वंही देवारी के दिन जिस घर में गाय ( लक्ष्मी ) ना हो उसे घर नहीं माना जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो बैगर राऊत और बैगर गरवा के देवारी है अधूरा अतः दिपावली पूजन के दिन मवेशियों की पुजा मां लक्ष्मी के रूप में सूब्बे के किसान सिद्दत से करते हैं। वंही किसानों की मवेशियों का देखभाल करने वाले राऊत का भी किसान दिपावली पूजन के दौरान धन्यवाद करते हैं।
आधुनिकीकरण के इस दौर में छत्तिसगढ़ राज्य की यह अनोखी पौराणिक सांस्कृतिक परम्परा और सभ्यता लगातार आधुनिकीकरण का भेंट चढ़ राहा है। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद सरकार राज्य की इस अनमोल धरोहर को संजोकर रखने हेतू कई प्रयासों को अंजाम देने हेतू प्रयास में जुटी हुई है। सरकार की तमाम प्रयासों के बावजूद हमारी संस्कृति और सभ्यता से संबंधित जुड़ी हुई संसाधन धरातल पर तेजी से कम हो रही है। कम होती हुई संसाधन हमारी संस्कृति और सभ्यता को निश्चित रूप से प्रभावित कर रही है जिसकी बानगी हमें दिपावली त्यौहार की तैयारियों पर पिछले दिनों देखने को मिला है। राज्य में दिपावली पर्व के दौरान बरसों से मवेशियों को गले में राऊत के द्वारा सोहाई बनाकर पहनाई जाती है। चूंकि घटती हुई जंगल और कम होती हुई मयूरो ने मोर पंख का दाम बाजार में बढ़ा दिया है।
लिहाजा वर्तमान समय में राऊतो के द्वारा मवेशियों को पहनाने हेतू प्लास्टिक से बनाई गई सोहाई का इस्तेमाल किया जा राहा है। मोर पंख से बनाई गई एवं कौड़ियों से सजाई गई विभिन्न प्रकार के छत्तिसगढी परापंरारिक सोहाई को दिपावली पर्व के दौरान मवेशियों को पहनाने का रिवाज है। बढ़ती हुई मंहगाई और कम होती हुई मयूर पंख राज्य में दिपावली की दौरान मवेशियों की खुशी को कम दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छतिसगढ़ राज्य की पंरपरा और सभ्यता को संजोए रखने हेतू अनेक प्रयास कर रहे हैं। दिपावली का यह पर्व राज्य की खुशहाली का प्रतीक है और इस खुशहाली में मवेशियों का महत्वपूर्ण योगदान है अतः प्लास्टिक की सोहाई से मवेशियों को शुसोभित करना सही नहीं माना जा राहा है। मुकेश यादव जैसे युवा राऊत जो किसानों की मवेशियों का देखभाल करते हुए उनकी सेवा दिन रात करते हैं। ऐसे राऊत बंधूओ को सरकार की ओर से मवेशियों को त्यौहार के सीजन में उचित संसाधन सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए ताकी छत्तिसगढ़ राज्य के पौराणिक सांस्कृतिक परम्परा अनुसार हमारा यह पर्व देश दुनिया में छत्तिसगढ़ राज्य की पारांपरिक सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
Next Story