अकिफ फरिश्ता
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राज्य सूचना आयोग ने हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों के संबंध में मांगी गई जानकारी को सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(आई) के तहत व्यक्तिगत सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में नहीं होना बताकर देने से इंकार करते हुए प्रकरण नस्तीबद्ध कर दिया। धोटालों और अनियमितताओं के लिए चर्चित छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी भी काफी रसूख वाले और सूचना आयोग जैसी संस्था से भी अपने हक में फैसला कराने में सिद्ध हस्त निकले। हाउसिंग बोर्ड के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स में अनियमितता और घोटाले उजागर हुए जिन पर महज विभागीय जांच के बाद लीपा-पोती कर जिम्मेदार अधिकारियों को बख्श दिया गया। अनियमितता और घोटालों के आरोपी कई अधिकारी प्रमोट होकर अपर आयुक्त के पद पर शोभित हैं। सरकारी पैसों का बंदरबांट कर ये अधिकारी करोड़ों के चल-अचल संपत्ति अर्जित कर चुके हैं। सरकार की उदासीनता और हाउसिंग बोर्ड प्रबंधन की लापरवाही से इन अधिकारियों को मनमानी करने की खुली छूट मिली हुई है। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी भी हाउसिंग बोर्ड देने से लगातार बच रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि अपील करने पर सूचना आयोग से भी वही जवाब दिया जा रहा है जो हाउसिंग बोर्ड के जनसूचना अधिकारी दे रहे हैं।
सूचना के अधिकार के तहत हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी हर्षकुमार जोशी, एचके वर्मा और एमडी पनेरिया के संदर्भ में जानकारी मांगी गई थी। जिसमें से हर्ष कुमार जोशी और एचके वर्मा के संबंध में हाउसिंग बोर्ड ने इन अधिकारियों की सहमति नहीं मिलने और आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(आई) के तहत जानकारी देने से इंकार कर दिया। प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी यही बात कहते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया तब सूचना आयुक्त के कार्यालय में इसके खिलाफ अपील की गई। जहां कई महीने बाद मामले में संज्ञान लेते हुए सूचना आयोग ने भी प्रकरण बिना किसी फेरबदल के प्रकरण नस्तीबद्ध कर दिया। आवेदक ने अब आयोग के फैसले के खिलाफ कोर्ट में रिट याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है।
चल-अचल संपति की जानकारी देना अनिवार्य : सरकार ने पहले ही प्रावधान किया हुआ है कि किसी भी विभाग, बोर्ड के अधिकारियों के लिए चल-अचल संपति का विवरण हर साल सरकारी वेबसाइट में दर्शाना अनिवार्य किया है। हालाकि सरकार के इस प्रावधान के बाद भी अधिकारी इस पर अमल नहीं करते और अपने दबदबे और पहुंच के दम पर इस पर परदा डालने में भी कामयाब रहते हैं। आवेदक ने जिन अधिकारियों के संबंध में जानकारी मांगी थी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अनेक आरोप हैं, विभागीय जांच में ये अधिकारी मिलीभगत और लीपापोती कर खुद को बेदाग बताते रहे। घोटालों की जांच स्वतंत्र एंजेसी से नहीं कराए जाने का लाभ ये अधिकारी उठाते रहे हैं। ऐसे में इनकी वैध संपति का सार्वजनिक होना जनहित में होता।
तालपुरी प्रोजेक्ट के आड़ में की मोटी कमाई : छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की तालपुरी इन्टरनेशनल कालोनी में जिन्होंने अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई से मकान खरीदा है उन्हें अब पछताना पड़ रहा है। ज्यादातर परिवार गुणवत्ताविहीन निर्माण कार्य और उपयोग में लाई गई घटिया वस्तुओं से दो चार हो रहे है। यहां निवासरत 260 ऐसे परिवार है जिन्होंने अदालत में छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के खिलाफ याचिका दायर कर घटिया निर्माण कार्य को लेकर आपत्ति दर्ज की है। इस योजना के जरिये जहाँ छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की साख पर बट्टा लगा , वही अफसरों की तिकड़ी ने करोड़ों रूपये अपनी झोली में डाले। इस ब्लैक मनी से इन अफसरों ने अपने परिजनों और नाते रिश्तेदारों के नाम से छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर चल अचल संपत्ति अर्जित की। भ्रष्ट्राचार की इस योजना की शासन स्तर पर जांच भी की गई। लेकिन प्रभावशील अफसरों की तिकड़ी ने इस जांच रिपोर्ट को ही आलमारी में कैद कर दिया। भिलाई में तालपुरी प्रोजेक्ट योजना के लिए वर्ष 2007 में बीज विकास निगम से 57.50 एकड़ एवं भिलाई इस्पात संयंत्र से 75.33 एकड़ कुल 132.83 एकड़ भूमि छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड ने प्राप्त की थी। इस पर दो हजार से अधिक आवास निर्मित किये गए है। ये सभी आवास एक निर्धारित कीमत पर ग्राहकों को बेचे गए थे। अब ये ग्राहक घटिया निर्माण कार्य को लेकर दो चार हो रहे है। ग्राहकों की शिकायत और भ्रष्ट्राचार के मामले सामने आने के बाद पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने मामले की जांच कराई थी। लेकिन लगभग ढाई सालों से जांच रिपोर्ट को सरकारी आलमारी में कैद करके रख दिया गया। हजारों पीडि़तों को उम्मीद बंधी थी कि जांच रिपोर्ट के आधार पर मौजूदा कांग्रेस सरकार कड़े कदम उठाएगी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिरने लगा है। पूर्ववर्ती सरकार में जिस तरह से दागी अफसरों की तूती बोलती थी, ठीक वैसे ही मौजूदा कांग्रेस सरकार में सत्ताधारी दल के नेताओं ने उन्हें अपने सिर आँखों पर बैठा लिया है। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि अफसरों की तिकड़ी ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए करोड़ों रूपये का वारा-न्यारा किया।