छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला कोंडागांव में डेढ़ वर्ष में कुपोषित बच्चों की संख्या में आई 41.54 प्रतिशत की कमी

Nilmani Pal
12 Sep 2021 7:48 AM GMT
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला कोंडागांव में डेढ़ वर्ष में कुपोषित बच्चों की संख्या में आई 41.54 प्रतिशत की कमी
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छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित एवं आदिवासी बाहुल्य कोंडागांव जिले में कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है। कोरोना काल के दौरान मात्र डेढ़ वर्ष में ही जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में 41.54 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। कम समय में ही जिले ने विभागों के समन्वित प्रयास, बेहतर रणनीति और मॉनिटरिंग के साथ उपलब्धि हासिल कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। बच्चों को प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ प्राप्त हो सके इसके लिए प्रशासन ने जिले में अंडा उत्पादन यूनिट भी स्थापित किया है। आज रोजाना यहाँ से पांच हजार अंडे बच्चों को मिल रहे हैं। अब इसकी दूसरी यूनिट भी लगाई जाएगी। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर मिलने वाले रागी और कोदो से पोषण आहार तैयार कराया जा रहा है। अंडे और अनाज बच्चों तक पहुँचे इसके लिए वाट्सएप ग्रुप बनाया गया है, खिलाये जा रहे बच्चों की तस्वीर ग्रुप में पोस्ट की जाती है। जिसकी मॉनिटरिंग स्वयं कलेक्टर करते हैं।

बस्तर संभाग से 80 किमी दूर कोंडागांव जिला के नक्सल प्रभावित एवं आदिवासी बाहुल्य होने के कारण विकास की मुख्यधारा से कई गांव दूर रहे हैं। ऐसे में इन गांवों में कुपोषण, एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं रही है। कोंडागांव जिले में कुपोषण की बढ़ती दर प्रशासन के लिए एक चुनौती थी। वजन त्यौहार के आंकड़ों के अनुसार जिले में फरवरी 2019 में 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार थे। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती थी कि कुपोषण की दर को नियंत्रित करना था।

जिला कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि सुपोषण अभियान के तहत जून 2020 में 'नंगत पिला' परियोजना की शुरुआत की गई। हल्बी बोली में जिसका अर्थ होता है एक स्वस्थ बच्चा। परियोजना को पूरा करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को नोडल के रूप में नियुक्त किया गया। सबसे पहले कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए जुलाई 2020 में जिले में बेसलाइन स्क्रीनिंग शुरू की गई, जिसमें 12726 बच्चों की पहचान की गयी। 'नंगत पिला' परियोजना के तहत सबसे महत्वपूर्ण कार्य बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करना था। इसके लिए बेहतर क्रियान्वयन एवं मॉनिटरिंग पर जोर दिया गया। इसके लिए 'उड़ान' नाम से एक कंपनी शुरू की गई। आंगनबाड़ी द्वारा पौष्टिक आहार प्रदान करने के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जोड़ा गया। इन महिलाओं द्वारा स्थानीय स्तर पर मिलने वाले पौष्टिक आहार तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में भेजा जा रहा है। बच्चों को अंडा, चिक्की, बिस्किट, बाजरे की खिचड़ी, रागी और कोदो से बने आहार दिए जा रहे हैं। बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाले ऑर्गेनिक व देसी अंडे दिए जा सकें, इसके लिए इसके जिले में अंडा उत्पादन यूनिट की स्थापना की गई है। जिले की सभी आंगनबाड़ी को 220037 अंडे और 35422 किग्रा मोठे अनाज की आपूर्ति हो चुकी है।

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