
रायपुर. ''यह आठ दिनों का यह पर्युषण पर्व अष्टमंगल देने वाला, अष्टसिद्धी देने वाला है। यह दूसरों को जीतने का नहीं यह आत्मविजय करने का पर्व है। जो दूसरों को जीतता है वह सिकंदर कहलाता है और जो अपने-आपको जीतता है वह महावीर और तीर्थंकर कहलाता है। याद रखें सड़क कितनी भी अच्छी हो, धूल तो हो ही जाती है और रिश्ते कितने भी मीठे हों भूल तो हो ही जाती है। क्षमापणा करना, अपने-आपका आत्मावलोकन करना इसी का नाम पर्युषण पर्व है। अपने दिमाग को हमेशा शीतल, जुबान को मीठा-मधुर और दिल में हमेशा सबके प्रति प्यार रखो, पर्युषण पर्व की यही तो हमारे लिए सीख है। हम वीतराग बन पाए तो बहुत अच्छी बात है पर अगर हम वीत-राग न भी बन पाए तो वीत द्वेष बनने का संकल्प अवश्य कर लें। वीत-राग न बन पाए तो वीत-द्वेष जरूर बनें। वीत-द्वेष का मतलब है मेरा किसी से भी बैर भाव नहीं है। मेरी किसी से भी दूरियां नहीं है। राग को जीत सको तो अच्छी बात है और यदि न भी जीत पाओ तो ये संकल्प जरूर कर लो कि मैं आज से द्वेष पर विजय प्राप्त करता हूं। मेरा किसी से भी कभी बैर-विरोध न हो।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत पर्युषण पर्व आराधना सप्ताह के प्रथम दिवस बुधवार को 'पर्युषण: मिटाए भीतर का प्रदूषण' विषय पर व्यक्त किए। राष्टÑसंतों की पावन निश्रा में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आराधना बुधवार को प्रात: ठीक 8.40 बजे प्रवचन से आरंभ हुई। इससे पूर्व हजारों श्रद्धालुओं ने प्रात:काल पौषध धारण कर सामायिक की। आठ दिनों के इस पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के प्रवचनों का लाइव प्रसारण भी दुनिया के 135 देशों में अरिहंत टीवी के माध्यम से किया जा रहा है।
यह आत्मा को सजाने का है पर्व
विषयान्तर्गत राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभजी महाराज ने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के महात्म्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैसे देवों में गणपति, जैसे तीर्थों में शत्रुंजय, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय वैसे ही दुनियाभर के सारे पर्वों में सबसे महान अगर कोई पर्व है तो उसका नाम है पर्वाधिराज पर्युषण। यह वह पर्व है जो शरीर को सजाने का पर्व नहीं, जो घरों को सजाने का पर्व नहीं, यह पर्व है व्यक्ति की मन की दशा को सुधारने का, व्यक्ति के अन्तर्मन को निर्मल और पवित्र करने का है। व्यक्ति के भाव विशुद्ध करने का यह पर्व है। दिवाली में भी हम खर्च करते हैं और पर्युषण में हम खर्च किया करते हैं, फर्क केवल यह है कि दिवाली में किया हुआ खर्च हम घर-परिवार के लिए करते हैं और पर्युषण में हम जो खर्च करते हैं वह धर्म-अध्यात्म और भगवान के लिए करते हैं। दिवाली में भी हम सजावट करते हैं और पर्युषण में भी हम सजाते हैं, दिवाली में हम खुद को घरों-मंदिरों को सजाते-रौशन करते हैं लेकिन पर्युषण पर्व कपड़ों को-घरों को सजाने का पर्व नहीं यह पर्व है अपने-आपको सजाने का। संभव है व्यक्ति से वर्षभर में कभी भी कोई भूल हो सकती है। गलतियों से जुदा तू भी नहीं और गलतियों से जुदा मैं भी नहीं, दोनों इंसान हैं खुदा तू भी नहीं और खुदा मैं भी नहीं। गलती दुनिया में किसी से भी हो सकती है। इंसान की प्रकृति है गलती हो जाना, लेकिन गलती हो जाने पर भी उसको मानने के लिए तैयार न होना और ऊपर से अपने ईगो को संतुष्ट करना और गलती को ना मानना यह हमारी विकृति है। गलती होना हमारी प्रकृति है तो गलती हो जाने पर सॉरी कहना यही हमारी महान संस्कृति है। यह पर्युषण पर्व अपने-आपका लेखा-जोखा करने का पर्व है। यह पर्व आत्मावलोकन करने का है। आदमी सालभर दूसरों को देखता है वह क्या कर रहा है-क्या नहीं कर रहा है पर ये आठ दिन दूसरों को देखने का नहीं स्वयं को देखने का पर्व है। पर्युषण पर्व औरों को देखने का नहीं अपने-आपको देखने का पर्व है। संभव है हमने वर्षभर में किसी की हिंसा कर दी हो, किसी का मन दुखा दिया हो, हमने अवांछित शब्दों का प्रयोग कर दिया हो, इन सबके लिए क्षमापणा करने का यह पर्व है। यह वह महान पर्व है जिसमें लोग एक-दूजे के पांवों को छूकर, एक-दूजे को प्रणाम करके और क्षमापणा कर अपने तन-मन को निर्मल करते हैं।
सामने वाले को क्षमा करना यह बड़प्पन है
संतप्रवर ने कहा कि गलती होने पर क्षमा मांगना बहुत सरल है, अपनी गलती के लिए क्षमापणा करना बहुत सरल है। पर्युषण पर्व की आराधना इतने मात्र से नहीं होती कि आपने जो गलती की है उसकी आप क्षमापणा कर लें, पर्युषण पर्व की असली आराधना तब होती है जिसने आपके प्रति गलती की है आपने उसको भी माफ करने का जब बड़प्पन दिखाया है। कल्पसूत्र के अंतिम अध्याय में भगवान ने हमें बहुत गहरी बात कही है जो संपूर्ण धर्म संपूर्ण आराधना-साधना, श्रावक व्रत और संपूर्ण जीवन का सार कहा गया है और वो है- पर्युषण में पहला काम यही करो कि क्षमा मांगो। दूसरा काम करो क्षमा कर दो। भगवान कहते हैं जो क्षमापणा कर लेगा उसकी आराधना है। और जो क्षमापणा नहीं कर पाया चाहे वो सामायिक कर ले, चाहे मंदिर जाकर पूजा कर ले, चाहे प्रतिक्रमण कर ले, चाहे वह संवत्सरि का प्रतिक्रमण कर ले और चाहे सपनों का चढ़ावा ले ले, जब तक वह क्षमापणा नहीं करेगा तब तक उसकी आराधना पूर्ण नहीं होती। इसीलिए पर्युषण में सबसे महत्वपूर्ण है क्षमापणा। वर्षभर में आपने यदि कोई धर्म क्रिया की या नहीं की पर अगर पर्युषण पर्व में आपने आत्म विशुद्धि कर ली, अपने मन को पवित्र और निर्मल कर लिया तो आपका बेड़ापार हो गया।
आइने में अगर चेहरे की बजाय चरित्र दिखे तो...
कल्पना करो आईने में हमारा चेहरा दिखता है तो हम सब आइना देखते हैं समझो अगर आइने में हमारा चरित्र दिखने लग जाए तो क्या हम आइना देखना पसंद करेंगे। चेहरा देखने हम बार-बार आइना देखते हैं पर जिस दिन आइने ने हमारे भीतर का चरित्र दिखाना शुरू कर दिया तो हम उस दिन आइने के सामने जाने से घबराने लग जाएंगे। कलर फोटोग्राफी में सुंदर-गोरा चेहरा आता है पर जब उसका एक्सरे करोगे तो उसमें आपके भीतर का काला चित्र नजर आता है। जीवन का यथार्थ यही है। आज पर्युषण पर्व के दिन हम यह पहला संकल्प करते हैं- मैं वीत-राग बनुं या न बनुं पर वीत-द्वेष बनकर रहुंगा। आज से मेरा किसी से भी बैर-विरोध नहीं होगा, मैं किसी के भी प्रति अपशब्दों का प्रयोग नहीं करुंगा। हमारा मूल स्वभाव बिच्छु या सांप का नहीं है, हम इंसान है और हमें संत जैसा होना चाहिए। ये पर्युषण पर्व तो झुकने का पर्व है, छोटे तो सालभर झुकते हैं ये पर्व छोटों के झुकने का पर्व नहीं यह पर्व है बड़ों के झुकने का है। अपने शब्द-वचन, व्यवहार से किसी भी प्रकार की अगर पीड़ा या ठेस पहुंची हो तो उसके लिए क्षमा मांगने का यह पर्व है।
क्षमापणा बिना अधूरी है साधना-आराधना
संतश्री ने बताया कि भगवान ने हमें दो शब्द दिए हैं एक मिच्छामि दुक्कड़ और दूसरा है क्षमापणा। यह अच्छी तरह समझ लो कि इन दोनों में फर्क है। हमारे द्वारा वर्षभर में किसी भी प्रकार का हिंसामूलक कार्य हुआ हो या हमारे द्वारा किसी का दिल दुखा दिया गया हो, हमारे द्वारा किसी प्रकार का अनुचित कृत्य हो गया हो तो उसके लिए हम प्रतिक्रमण में आलोचना-अतिचार बोलते हुए मिच्छामि दुक्कड़म कहते हैं। अगर वर्षभर में कोई दोष या पाप हो गया हो तो उसके लिए मिच्छामि दुक्कड़म किया जाता है। पर अगर आपने किसी का दिल दुखा दिया हो तो उसके लिए मिच्छामि दुक्कड़म नहीं उसके लिए क्षमापणा कहा जाता है। इसीलिए संवत्सरि के दूसरे दिन एक-दूजे को मिच्छामि दुक्कड़म नहीं अपितु एक-दूजे को खमाउं-सा यानि क्षमापणा कहा जाता है। अगर कोई मुनि भी यदि पाक्षिक प्रतिक्रमण करने के बाद भी किसी के प्रति रहने वाले बैर-विरोध के लिए क्षमापणा नहीं कर लेता है तो कहते हैं उसकी आराधना व्यर्थ चली जाती है। शास्त्रों में यहां तक कहा गया है कि अगर चातुर्मास बीत जाने के बाद भी अगर मुनि जिससे प्रतिदोष हुआ है उससे क्षमापणा नहीं कर लेता कहते हैं वह मुनि धर्म से च्युत अर्थात् अलग हो जाता है। और जो श्रावक चार महीने बीत जाने के बाद भी हृदय से क्षमापणा नहीं करता तो कहते हैं वह श्रावक धर्म से निकल जाता है। यदि वह संवत्सरि पर्व बीत जाने के बाद भी बैर-विरोध की गांठ अगर रख लेता है तो भगवान कहते हैं- वो मेरा श्रावक कहलाने का अधिकारी नहीं होता है।
वे किस्मत वाले हैं जो रोज मंदिर जाते हैं
संतप्रवर ने आगे कहा कि भगवान ने हमें चार शब्द दिए हैं- क्रोध प्रीति या प्रेम का नाश करता है। मान-अभिमान यह विनय धर्म का नाश करता है। माया हमारे मैत्री धर्म को करती है। और लोभ ये तो सबसे बुरा है क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई पाप नहीं है जो लोभ न कराए। लोभ यह सर्वनाश कर देता है। महान, भाग्यशाली और किस्मत वाले होते हैं वे लोग जो रोज सामायिक करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। जो रोज मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करने का सौभाग्य लेते हैं। परमात्मा उसके होते हैं जो रोज मंदिर में जाकर श्रद्धापूर्वक प्रभु की पूजा करता है, समता और साधना उसकी फलीभूत होती है जो रोज बैठकर सामायिक करता है।
पुण्य का मतलब केवल पैसा नहीं है
संतश्री ने कहा कि पुण्य का मतलब केवल पैसा नहीं होता। हमने कई बार कुटिया में स्वर्ग को पलते देखा है और कई बार कोठियों में नर्क पलते देखा है। इसीलिए ये मत समझना कि कोई बहुत अमीर है तो वह बहुत पुण्यवान है। उसकी पुण्याई है कि वह अमीर है। किसी के पांच बेटे हैं और पांचों उसका कहना मानते हैं, कोई पांच भाई साथ-साथ रहते हैं, छोटे से मकान में चार बहुएं और उनका परिवार साथ-साथ रहता है, कुटिया में रहने वाले के बहु-बेटा मां-बाप की सेवा सुश्रुषा कर रहे हैं ये भी तो पुण्य का उदय है। पैसा पुण्य के उदय का एक रूप है, बाकी पुण्य के हजारों रूप हैं। पैसे से कोई अमीर न हो पर अमीरी के कई रूप होते हैं। धर्माचारी पैसे से अमीर न होते हुए भी बड़ा अमीर है।
आज से शुरू करें क्रोध के त्याग की अट्ठाई
संतश्री ने श्रद्धालुओं से आह्वान कर कहा कि आज से हम सभी लोग अट्ठाई शुरू कर दें, यह अट्ठाई भोजन का त्याग करने वाली नहीं यह क्रोध का त्याग करने वाली होगी। इस अट्ठाई से आपको पर्युषण पर्व का सौ प्रतिशत परिणाम मिल जाएगा। अभी से संकल्प कर लो- मैं आठ दिन के लिए क्रोध के त्याग का उपवास शुरू करता हूं। संतश्री द्वारा धर्मसभा में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को क्रोध के त्याग का संकल्प कराया गया।
पर्युषण में करणीय हैं ये कार्य
संतश्री ने पर्युषण में करणीय कार्यों की चर्चा करते बताया कि अष्टान्हिका प्रवचन में भगवान ने हमें पर्युषण पर्व में करणीय कार्य बताए हैं। वे हैं- आठों दिन जिनेन्द्र पूजा। परमात्मा के मंदिर जाकर रोज हमें प्रभु के दर्शन-पूजन, भक्ति और सेवा का सौभाग्य जरूर लेना चाहिए। परमात्मा पूजा रोज करनी चाहिए, इससे मन की दशाएं सुधरती हैं, मन शांत होता है, आदमी की आत्मा भवी बनती है। परमात्मा के मंदिर में जाकर रोज प्रभु सेवा का अवसर जरूर लेना चाहिए। आठों दिन जितनी बन पड़े गुरुजनों की सेवा करें। पर्युषण पर्व में अनुकम्पा दान अवश्य करें। दुनिया में सबसे महान कोई दान है तो वह है अभय दान। किसी मरते जीव को बचाना इसे महादान कहा गया है, जिसे भगवान ने अभयदान कहा है।
आज पोथाजी व पांच ज्ञान के चढ़ावे का लाभ
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि गुरुवार को पर्युषण पर्व आराधना की प्रवचन सभा के दौरान गुरु भगवंत को कल्पसूत्र अर्थात् पोथाजी वोहराने और पांच ज्ञान की पूजा कराने का पुण्य अवसर भी सौभाग्यशाली श्रद्धालुओं को प्राप्त होगा। शुक्रवार प्रात: ठीक 8.35 बजे से कल्पसूत्र आगम पर आधारित हिन्दी रूपांतरण का वांचन शुरू हो जाएगा।
सीमंधर महिला मंडल ने प्रस्तुत किया सुमधुर भाव गीत
0 तपों के एकासने के लाभार्थियों का हुआ बहुमान
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि आज धर्मसभा में श्रीसीमंधर महिला मंडल द्वारा गुरु भगवंतों की महिमा पर समूह भाव गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी गई। वहीं अक्षय निधि, समवशरण, कसाय विजय तप के एकासने के लाभार्थी- भागचंद मुणोत परिवार, जयवंत राज पारख परिवार, जेठमल कोटड़िया परिवार, हीरचंद चोपड़ा परिवार, कैलाश कुमार पारख परिवार, नरेन्द्र दुग्गड़ परिवार का बहुमान किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में पिछले सोमवार से प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है।
आज के प्रवचन का विषय 'पर्युषण पर्व के संदेश एवं कर्र्तव्य'
दिव्य चातुर्मास समिति के महासचिव प्रशांत तालेड़ा व कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि गुरुवार 25 अगस्त को पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आराधना के द्वितीय दिवस प्रात: ठीक 8.40 बजे से 'पर्युषण पर्व के संदेश एवं कर्र्तव्य' विषय पर विशेष प्रवचन होगा। पर्युषण पर्व के दौरान श्रद्धालुओं को कल्पसूत्र व अंतकृत सूत्र की शिक्षाएं पर प्रवचन श्रवण का पुण्यलाभ प्राप्त होगा। महिलाओं का पौषध आराधना हॉल सदरबाजार में एवं पुरुषों का पौषध व्रत दादाबाड़ी में होगा। पर्व आराधकों, व्रतियों के लिए पर्युषण पर्व पर सदर पाटा ग्रुप नं-1 द्वारा 24 से 31 अगस्त तक शाम 4.30 से सूर्यास्त के पूर्व महावीर भवन सदर बाजार के प्रथम तल पर और दादाबाड़ी एमजी रोड व पंडरी स्थित महालक्ष्मी क्लाथ मार्केट में चौविहार हाउस की व्यवस्था की गई है। वहीं आंगी समिति सदरबाजार द्वारा प्रभु परमात्मा की प्रतिमाओं के आठ दिवसीय आंगी सजाओ प्रतियोेगिता का आयोजन सदर जैन मंदिर में जारी है, जिसके लिए हरीश डागा व मांगीलाल गोलछा से संपर्क किया जा सकता है। दादाबाड़ी में गुरुदेव श्रीललितप्रभ सागरजी के जीवन प्रसंगों पर आधारित जीवंत झांकी की प्रस्तुति श्रीसमृद्धि महिला मंडल द्वारा शाम 6.30 बजे से दी गई। जिसका अवलोकन करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। दादाबाड़ी व सदर जैन मंदिर में संध्या समय आठ दिवसीय प्रभु भक्ति की जा रही है।
