छत्तीसगढ़

जनता की इतनी परवाह है तो शारदा चौक का चौड़ीकरण करो

Nilmani Pal
14 Jun 2022 5:31 AM GMT
जनता की इतनी परवाह है तो शारदा चौक का चौड़ीकरण करो
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  1. भीड़ से मुक्त करने के नाम पर 20 साल से चल रही है राजनीति
  2. दशकों पुराने फ्लाप फार्मूले से फिर स्थिति जस की तस
  3. दस्ते पर निगम का रोज हजारों का खर्च-शहर को राहत 15 मिनट
  4. राजनीतिक स्वार्थ के चलते समस्या जस की तस
  5. मुआवजे को लेकर भवन मालिकों को विश्वास में नहीं लिया जा रहा

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर । राजधानी रायपुर के बाजारों में बरसों से अतिक्रमण करके सडक़-फुटपाथ पर सामान फैलाकर दुकानदारी आज कर रहे हैं बल्कि विगत कई वर्षों से ये दूकानदार रोजीरोटी के लिए के लिए मशक्कत कर रहे हैं। नगर निगम के अधिकारी कर्मचारी की मिलीभगत से पहले तो कब्जा करवाया जाता है फिर नए अधिकारी ही कब्जा हटाने निकल पड़ते हैं। पिछले दिनों नगर निगम टीम ने पुलिस के सहयोग से प्रमुख मार्गों अवैध कब्ज़ा अवैध गुमटी और टपरी मुहिम चलकर लोगो को जाम से निजात दिलाई लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर अवैध कब्ज़ा होने ही क्यों देते हैं । पुलिस और निगम प्रशासन के बुलडोजर के साथ निकली टीम को देखकर सडक़ और फुटपाथ के कब्जाधारियों में हडक़ंप तो जरूर मचता है लेकिन देर के लिए सुबह कार्रवाई होती है शाम को फिर से ठेले गुमटियां आबाद हो जाती है। इससे पहले कि दुकानदार दुकानों के बाहर रखा सामान समेट पाते, निगम अमले ने सामान को जब्त करने के साथ हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी। नगर निगम और यातायात पुलिस ने मिलकर पंडरी स्थित पुराना बस स्टैंड, मालवीय रोड, केके रोड,एम जी रोड,पुरानीबस्ती,लाखेनगर, मंडी गेट, अवंति बाई चौक, सदर बाजार, कटोरातालाब सहित पूरे शहर में अवैध कब्ज़ा हटाओ अभियान चलाया था। लेकिन आज देखें तो स्थिति जस की तस हो गई है। दुकानों के बाहर रखे सामान, होर्डिंग, ग्लो साइन बोर्ड, ठेला आदि जब्त करने के साथ ही दुकानदारों के सामान को सडक़ से हटवाकर भीतर करवाया और सडक़ को अतिक्रमण मुक्त करवाया गया । इस कार्रवाई के दौरान यह भी देखा गया कि छोटे दुकानदारों के साथ सख्ती और बड़े रसूखदार दुकानदारों के साथ नरमी से भी पेश आये। हालाकि कुछ दुकानदारों ने रसूखदार दुकानदारों पर कोई कार्रवाई न करने को लेकर निगम अमले का विरोध भी किया लेकिन पुलिस को साथ देखकर वे शांत रहने में ही भलाई समझे।

छुटभैय्ये नेता करवाते हैं अवैध कब्जा

प्रमुख बाज़ारो में वहां के दुकानदार ही खुद फुटपाथ में दुकान लगाने के एवज में पैसे लेते हैं और अतिक्रमण करवाते हैं ऐसे दुकानदारों पर भी जुर्माना लगाना चाहिए ताकि वे अतिक्रमण करवाने के पहले सोचें। यहाँ देखा गया है कि अतिक्रमणकारी कभी सत्ता के रसूखदारों से नज़दीकी के चलते तो कभी निगम कर्मियों से मिलीभगत से अवैध कब्ज़ा करते हैं। जिन्हे अवैध कब्ज़ा हटाए जाने की भी जानकारी मिल जाती है। और आननफानन में अपना सामान समेत लेते है। जिन्हे जानकारी नहीं होते वे बेचारे फंस जाते हैं। फुटपाथ के दुकानदार भी चाहते हैं की जनता को आने जाने में किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होने चाहिए इसके लिए मुख्य बाज़ारो को एकांगी मार्ग करना चाहिए। करोडो रुपयों की लगत से जयस्तंभ के पास पार्किंग परिसर बनाया गया है उसका भी उपयोग अधिक से अधिक होने चाहिए। खुद बखुद जाम की समस्या से निजात मिल जाएगी।

ये कैसी स्मार्ट सिटी का मास्टर प्लान है जहां 30 साल पुराने ढरें पर गाड़ी चल रही है। पब्लिक जाम से परेशान है और नगर सरकार तमाशा देख रही है। एक तरफ भाजपा शासन काल में राजधानी रायपुर के विकास के नाम सीमेंट क्रांकीट का जंगल खड़ा कर दिया गया जो लोगों को छांव देने में भी ओव्हर फ्लाई असफल रहा। अब साढ़े तीन साल कांग्रेस की सरकार और 15 साल से नगर निगम में कांग्रेस की परिषद काबिज है। भाजपा शासन में फंड का रोना रोया जाता था, अब तो कांग्रेस की सरकार और कांग्रेस की नगर सरकार है तो फंड की कमी का कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए। नगर निगम दृढ़ इच्छा शक्ति से अतिक्रण हटाने की ठान ले तो शहर की जनता को जाम से मुक्ति मिल जाएगी।

शहर में व्यापारियों द्वारा दुकानें एवं ठेले आदि सड़क पर लगाने से जाम आदि की समस्या बहुत पुरानी है। राज्य बनने के बाद से आज तक समस्या जस की तस है जबकि शहर की आबादी दिनों-दिन चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है, वाहनों की संख्या बी कई गुना ज्यादा बढ़ गया है इससे यातायात पर सबसे ज्यादा दबाव बढ़ा है। जिसका हल सरकार नहीं निकाल पा रही है। अतिक्रमण हटाने हेतु विगत 30-40 वर्षों से एक ही फार्मूले पर काम हो रहा है, शिकायतें बढऩे पर एक दिन निगम का दस्ता आता है अतिक्रमण हटाता है दस्ते के जाने के आधा घंटे के बाद फिर पहले जैसा हो जाता है। क्या यह नगर निगम के दस्ते के अपमान जैसा नहीं है।

गोल बाजार के राकेश गुप्ता के अनुसार नगर निगम के अतिक्रमण दस्ता एक दिन का खर्च लाखों रुपये है। प्रतिदिन नगर निगम प्रशासनको अतिक्रण हटाने का भार उठाना पड़ता है। इसके एवज में शहर की जनता को कुछ देर के लिए ही राहत मिल पाती है । निगम दस्ता के जाते ही फिर यथा स्थान पर अतिक्रमण हो जाता है। यदि वाकई नगर निगम अतिक्रमण हटाना चाहती है तो रणनीति में बदलाव क्यों नहीं करती। अतिक्रमण हटाओ दस्ते की जगह तीन से पांच लोगों की टीमें बनाई जाय, हर टीम के पास एक कैमरा और चालान बुक हो, उदाहरण के लिये चिकनी मंदिर चौक से शास्त्री बाजार की ओर एक टीम दायें और एक टीम बांये साइड कार्य करे, बिना किसी से कोई बात किये कैमरामैन सड़क पर पसरी दुकान का फोटो खींचे, एक सदस्य रजिस्टर में दुकान का नाम लिखे और आगे बढ़ते रहें। एक निर्धारित समय तक कहीं रुक कर या आफिस जाकर फोटो के प्रिंट आउट लेकर (जैसा आजकल यातायात विभाग चालान भेजता है) चालान बनाकर उसी दिन दुकानदार को भेज दिया जाय और निर्धारित फाइन निर्धारित कर दी जाय। कुछ दिन बाद फिर यही प्रक्रिया दोहरायी जाय और दूसरी, तीसरी, चौथी बार चालान के साथ दंड की राशि भी बढ़ती रहे, और एक दिन दुकान को सील करे या ट्रेड लायसेंस निरस्त करें। ऐसा करने से अतिक्रमणकारी पर प्रशासन का खौफ रहेगा। बिना जोर जबरदस्ती या बल प्रयोग के खामोशी से अतिक्रमण धीरे धीरे कम होने लगेगा।

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