छत्तीसगढ़

रक्षक ही भक्षक बन जाए तो फरियादी कहां जाएं...

Nilmani Pal
17 Sep 2021 4:56 AM GMT
रक्षक ही भक्षक बन जाए तो फरियादी कहां जाएं...
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जाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

पिछले दिनों शांति नगर के एक युवक ने खम्हारडीह तालाब में कूदकर ख़ुदकुशी कर ली, वजह खाकी वर्दी के पीछे छुपे भेडिय़े निकले। ऐसे भेडिय़े हर थानों में मिल जायेंगे। जो यही काम ही करते हैं। रक्षक ही अगर भक्षक बन जाये तो फरयादी किसके पास जाये, हालांकि एसपी प्रशांत अग्रवाल ने उन दोनों को सस्पेंड कर दिया है। अब सवाल उठता है कि सिर्फ सस्पेंड से ही काम हो जायेगा। उन दोनों की वजह से एक युवक की जान गयी,उस युवक के पिताजी खुद बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। उन पर क्या बीत रही होगी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि मामले की तहकीकीत कर उन दोनों को सेवा से बर्खास्त किया जाकर आजीवन कारावास की सजा मिलनी चाहिए। सरकार जिनको हर माह तनख्वाह दे रही है ऐसे लोग हफ्ता वसूली कर आम जनता को दहशत में डाल रहे हैं। देखा जाये तो हर थाने में ऐसे वसूलीबाज मिल जायेंगे, जिनको खोजखोज कर बर्खास्त किया जाना चाहिए। अपराध बढऩ़े के पीछे ऐसे रक्षकों का भी अहम योगदान रहता है जिनके संरक्षण में सट्टा, जुआ,गांजा, शराब जैसी सामाजिक बुराई फलता फूलता है। इन रक्षकों के डर से जनता शिकायत करने थाने नहीं जाती क्योकि उल्टा उनसे ही सवाल किया जाता है और संबंधित को इस बात की जानकारी भी दे दी जाती है। वहीं भोपाल में थाने में एक थानेदार ने अपराधी का बर्थ-डे धूमधाम से मनाया और केक काटा और अपराधी को अपने हाथों से थानेदार ने केक भी खिलाया। हालांकि बाद में थानेदार को लाइनहाजिर कर दिया गया। जनता में खुसुर फुसुर है कि यदि ऐसे थानेदार और पुलिसवाले रहे तो उनके हौसले पस्त होने के बजाय बुलंद होंगे ही।

या तो तू शेर का पता बता या मान ले कि तू ही शेर है ...

चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रही है गड़े मुद्दे बाहर निकल रहे है। अचानक दाऊद इब्राहिम के गुर्गे पकड़ लिए जाते हैं। अब सवाल ये उठता है कि इतने दिनों से से देश में क्या कर रहे थे। अचानक ये सारे आतंकवादी बिल से बाहर कैसे निकल आये। और पकड़ लिए गए। ये तो ऐसा हो गया जैसे पुलिस वाले शेर की खोज में जंगल जाते है वहां वे एक सियार को पकड़ लेते हैं और सियार महाशय से कहते हैं कि या तो तू शेर का पता बता या मान ले कि तू ही शेर है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि देश में जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आएगी तरह-तरह के अपराधी और कारनामे सामने आएंगे। अरे भई जनता चाहती है कि स्विस बैंक के जमादारों का नाम उजागर हो, रोजगार बढ़े, पेट्रोल-डीज़ल, रसोई गैस, खाने का तेल, अनाज आदि का दाम कम हो। मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने के बजाय इन बातों पर ज्यादा ध्यान दें।

किसानों का क्या होगा

केंद्र सरकार किसानों की बात मान नहीं रही है और प्रदेश में भाजपा धरना देकर किसानों का हक़ मांग रही हैं ये कैसा विरोधाभास है। एक तरफ हड़तालियों पर की सुटाई और दूसरी तरफ हड़ताल को समर्थन। हक़ देना ही है तो पिछले ग्यारह माह से आंदोलनरत किसानों की फरियाद सुनी जाये। खुद ब खुद किसानों की समस्या का हल निकल आएगा। इस सम्बन्ध में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने भी केंद्र सरकार से मांग की है कि उनका मुख्य फोकस तालिबान पर न होकर किसानों की समस्याओं पर होना चाहिए। क्योंकि तालिबान अफगानिस्तान में है भारत में नहीं है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पिछले पांच सितम्बर को मुजफ्फरपुर में किसानों ने एकजुटता दिखाई है हो सकता है उसे देखकर केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल में खाये चोट को याद कर किसानों की बेहतरी के लिए कुछ कर दे।

सुको ने किया ख़बरदार

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस महोदय ने समाज में बढ़ती हुई धार्मिक कट्टरता पर चिंता जाहिर करते हुए देश के सभी राजनीतिक दलों को सन्देश दिया कि वे देश को किस तरफ ले जा रहे हैं। अब ये देखना है कि चीफ जस्टिस महोदय की नसीहतों से राजनीतिक पार्टियां कितना सबक लेती हैं। आज यह भी देखा जा रहा है कि बिना इसके चुनावी वैतरणी पार भी नहीं करते दिखता, तभी तो अभी से सीएम साहब अब्बाजान और चचाजान वाली बात शुरू कर दिए है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जी किसान आंदोलन को ध्यान में रखकर जाट मतदाताओं को साधने की कोशिश में लग गए हैं। क्योंकि लाख कोशिश के बाद भी किसानों ने बंगाल में जाकर भाजपा सरकार के खिलाफ चुनाव प्रचार किया था जिसका परिणाम जग जाहिर है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि धरनारत अधिकतर किसान जाट समुदाय से आते हैं, ऐसे में जाट या अन्य किसान सिर्फ एक यूनिवर्सिटी का नाम एक सम्मानित जाट के नाम पर रखने या नई यूनिवर्सिटी खोलने मात्र से अपनी ग्यारह माह पुरानी मांगों को भूल जायेंगे, या इससे जाटों की नाराजगी दूर हो जाएगी, ऐसा नहीं लगता?

जल्द ही सुखद खबर आएगी

छत्तीसगढ़ के दिवंगत पंचायत शिक्षकों की विधवा महिलाओं की अनुकंपा नियुक्ति की मांग की समीक्षा करने राज्य सरकार ने अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास समिति रेणु जी पिल्ले की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय टीम गठित किया है, समिति अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्रता का परीक्षण कर सेवा शर्त निर्धारित करेगी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पंचायत शिक्षकों की विधवा पत्नियों प्रति संवेदनशील है। रेणुजी पिल्ले जल्द ही कोई संतोषजनक खबर देने वाली है। महिलाओं ने 57 दिनों तक आंधी-तूफान, बारिश में संघर्ष किया। महिलाओं ने हड़ताल खत्म करते हुए कहा कि भूपेश सरकार से बहुत उम्मीद है, जल्द ही सुखद खबर आएगी।

क्रिकेट कुंभ 19 से, सटोरिए लगाएंगे डुबकी

आईपीएल क्रिकेट का महाकुंभ 19 सितंबर से शुरू हो रहा है। जिसके लिए क्रिकेट के महापंडितों सटोरियों ने रणनीति तैयार कर ली है। पूरे देश में एक महीने तक क्रिकेट बुखार छाया रहेगा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि क्रिकेट और सट्टा का चोली-दामन का संबंध है। जब क्रिकेट शुरू हो रहा है तो सटोरिये का नेटवर्क गली-मोहल्ले सहित पूरे विश्व में फैल जाएगा। पुलिस को चमका देकर सटोरिए आनलाइन और आफलाइन नब्ज अभी से टटोल रहे है। राजधानी रायपुर तो वैसे भी क्रिकेट का दीवाना है। छोटे-मोटे मैच पर जब लाखों करोड़ों के सट्टे की खाईवाली करते है, आईपीएल तो सटोरियों के लिए दीवाली जैसा है। अभी से पुलिस से बचकर मुहूर्त के सौदे के साथ गुगों की नियुक्ति हो रही है। सटोरिए होटल, क्लब, घरों में आनलाइन ठिहे बनाकर सट्टा की बुकिंग करेंगे और आईपीएल में घर बैठे चौका-छक्का लगाएंगे। 15 अक्टूबर को दुबई में फाइनल मैच खेला जाना है। तब तक के लिए आप भी आईपीएल का आनंद लिजिए।

कैसा हिन्दी दिवस

14 सितंबर को पूरे देश में हिन्दी दिवस मनाया गया, जबकि हिन्दी दिवस तो 365 दिन मनाना चाहिए। भाजपा शासित प्रदेश कर्नाटक में कन्नड़ संगठनों ने हिन्दी दिवस के मौके पर हिन्दी थोपने के विरोध में ट्विटर अभियान चलाया, बैंकों के सामने धरने दिए । सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक हिन्दी रोकने के लिए ट्विटर अभियान भी चलाया। जनता में खुसुर फुसुर है कि ये कैसा हिन्दी दिवस है? हिन्दी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला था, लेकिन राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने आज तक कोई सरकार इमानदारी से काम नहीं कर पाई है।

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