छत्तीसगढ़

भूपेश की मनमानी पर अंकुश नहीं लगाया तो कांग्रेस चली जाएगी रसातल में

Nilmani Pal
1 April 2024 6:07 AM GMT
भूपेश की मनमानी पर अंकुश नहीं लगाया तो कांग्रेस चली जाएगी रसातल में
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कार्यकर्ताओं की अनदेखी कांग्रेस पर पड़ेगी भारी

बिलासपुर, महासमुंद,जांजगीर, राजनांदगांव में बाहरी प्रत्याशियों का हो रहा खुलकर विरोध

जब टिकट के लिए सर्वे हो सकता है तो विरोध के लिए क्यों नहीं

पैराशूट और आयातित प्रत्याशियों से स्थानीय कार्यकर्ताओं में विद्रोह

कांग्रेस के असंतुष्टों ने भाजपा में शामिल होकर खड़ी कर दी मुसीबत

टिकट वितरण को लेकर बड़े नेता भी असहमत

रायपुर (जसेरि)। प्रदेश में ले दे के 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आई और उस बागड़ को खेत निगल गई। जिसने भाजपा को टक्कर देकर सत्ता से बाहर किया वही सर्वेसर्वा बनकर अपने सलाहकारों से सत्ता और कांग्रेस को लुटवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। जिसका परिणाम 2023 में जिन कांग्रेसियों ने भूपेश पर भरोसा कर सत्ता पर बैठाया उसे उतार कर सड़क पर ला दिया। कांग्रेस पार्टी ने आज तक कांग्रेसी ईमानदार कार्यकर्ताओं को सम्मान की नजर से नहीं देखा और मात्र दरी उठाने वाले बिछाने वाले मानते रहे। जब दरी बिछाने-उठाने वालों के सम्मान में ठेस पहुंचा तो पूरी कांग्रेस को बिछा कर रखा दी। भूपेश को लग रहा था कि मेरी वजह से सत्ता में आई है कांग्रेस लेकिन ऐसा नहीं था, बिना कार्यकर्ता की मेहनत के कोई भी बड़ा नेता नहीं सकता। छत्तीसगढ़ में तो 2018 में कांग्रेस की सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री को नजरों में कांग्रेसी कार्यकर्ता मात्र बंगले के आसपास चक्कर लगाने वाले हो गए। जिसका परिणाम कांग्रेस को सत्ता से बाहर होकर भुगतना पड़ा। साइकिल में घूमने वाले भूपेश के संगी साथी अचानक बीएमडब्ल्यू में घूमने लगे तो असली कांग्रेेसियों को सिर घूम गया और सबक लगाने की ठान ली। जिसका परिणाम विधानसभा चुनाव में करारी हार का मिला।

पैराशूट प्रत्याशियों की भरमार :

देखा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में लोकसभा के टिकट वितरण में फिर से भूपेश बघेल की चली। जिससे पिछले पांच साल तक उपेक्षा का दंश झेल रहे कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी जा रही है। पार्टी से जुड़े लोगों ने बताया है कि पिछले पांच सालों में कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई थी। उनका काम तो दूर मिलते तक नहीं थे। उन्ही लोगों को लोकसभा में टिकट देकर पैराशूट प्रत्याशी बनाया गया। जो अधिकतर भूपेश बघेल के करीबी और मंत्री रहे हैं। उन पर सट्टा, जुआ, और नशा और अवैध शराब कारोबारियों को संरक्षण देने के आरोप भी पांच सालों में लगते रहे हैं। जो पांच सालों में आर्थिक रूप से मजबूत ही बने हैं जिससे जमीनी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। इन मंत्रियों से पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ लोगों में भी नाराजगी थी। जैसा कि विधानसभा चुनाव के दौरान हुए सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी लहर नहीं थी, बल्कि मंत्रियों के खिलाफ थी। उस समय भी कांग्रेस आलाकमान फूंक-फूंक कर कदम रखती यानी टिकट वितरण में ध्यान देती तो नतीजे कुछ और ही होता। भूपेश बघेल पर आँख मूंदकर भरोसा करना भी कांग्रेस को भारी पड़ गया। वही गलती कांग्रेस आलाकमान फिर से लोकसभा के प्रत्याशी चयन में कर दी है। क्या बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर, राजनांदगांव और अन्य जगहों में लोकल पार्टी नेताओं या कार्यकर्ताओं की कमी थी, जो बाहरी लोगो को वहां थोपा गया। मजे की बात तो ये है की साफ सुथरी छवि के नेताओं को टिकट दी गई होती तो भी स्थानीय कार्यकर्ता उनके जीत के लिए जी तोड़ मेहनत करते लेकिन दागी नेताओं को टिकट देने से पार्टी कार्यकर्ता आक्रोशित हैं कुछ तो पार्टी छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर लिए और जिन्होंने कांग्रेस नहीं छोड़े हैं वे घर बैठ गए हैं।

कर्मठ और पुराने और असली कार्यकर्ता नाराज : पार्टी कार्यकर्ताओं ने बताया कि पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ लोगों में भी नाराजगी थी, किसी का कोई काम नहीं हो रहा था, बल्कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं का भी काम नहीं हो रहा था। कांग्रेस के एक प्रवक्ता जो पिछले 35 वर्षों से कांग्रेस से जुड़े थे और पिछले पांच साल से प्रवक्ता का दायित्व भी संभाल रहे थे उनका तक काम नहीं हुआ तो आम जनता और कार्यकर्ताओं की क्या बिसात रही होगी अंदाज लगाया जा सकता है?

बिलासपुर जांजगीर महासमुंद राजनांदगांव में बाहरी प्रत्याशी का हो रहा विरोध :

भूपेश बघेल के करीबी होने के कारण दुर्ग क्षेत्र के तीन नेताओं को तव्वजो देते हुए अन्य लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया जा रहा है, जबकि उनके साथ आम आदमी जुड़े ही नहीं थे। यही वजह है कि लोगो में उनके प्रति उत्साह नहीं दिख रहा है। बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर, राजनांदगांव के कार्यकर्ताओं का कहना है कि क्या इन जगहों में लोकल पार्टी कार्यकर्ता चुनाव लडऩे के योग्य नहीं थे जो बाहर के नेताओं को यहां से टिकट दिया गया। बिलासपुर में तो एक कार्यकर्ता आमरण अनशन में बैठ गया था। कार्यकर्ताओं ने आला कमान से यह भी पूछा कि क्या वे जिंदगी भर दरी, झंडा उठाते रहेंगे, जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगते रहेंगे और सरकार बनने के बाद काम तो दूर मिलने के लिए भी तरसना पड़ जाये।

कांग्रेस को नकली कांग्रेसी खा गए :

भूपेश बघेल के वजह से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वही स्थिति होने वाली है जो उत्तरप्रदेश में हो गया है। आलाकमान अभी से इस पर नजर नहीं रखेगी तो वो दिन दूर नहीं जब पार्टी को कोई कार्यकर्ता भी न मिले। कांग्रेस के कार्यकर्ता भरे मजमे में इनके ही खिलाफ बोल रहे हैं। और लगातार आलाकमान को शिकायतें भेजी जा रही है। जिसमें से दो -चार मामले वरिष्ठजनों के मीडिया में सुर्खिया भी बटोरे है। जैसे कि रामकुमार शुक्ला, अरूण सिसोदिया, सुरेंद्र दाऊ, विजय साहू। पांच साल तक ये सत्ता में बैठकर राजनीतिक और आर्थिक लाभ उठाये अब उन्हीं नेताओं को फिर से टिकट दे दिया गया। वर्तमान में टिकट वितरण को देखकर ऐसा लग रहा है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कहीं सूपड़ा साफ न हो जाये और इसका श्रेय भूपेश बघेल को ही जायेगा। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कार्यकर्ताओं की तो छोडि़ए मंत्री भी मुखर होकर आला कमान को भूपेश के कथनी और करनी को उजागर कर हमलावर हो गए थे, सत्ता रहते में जिन्होंने लाभ और पैसा भारी मात्रा में कमाया अधिकांश उन्ही लोगों को दाऊ ने टिकट देकर ताऊ वाली भूमिका निभाई।

टिकट वितरण को लेकर बड़े नेता भी असहमत : कांग्रेस के लिए शायद 2024 का साल गृहदशा के हिसाब से ठीक नहीं है। लोकसभा चुनाव में बनाए गए प्रत्यशियों को लेकर बाहरी और स्थानीय को लेकर तनातनी अब पर्दे से बाहर आकर खुले मैदान में नजर आ रही है। नेता प्रतिपक्ष डा.चरणदास महंत ने स्थानीय और बाहरी प्रत्याशी को लेकर कहना है कि बिलासपुर लोकसभा सीट पर लोकल प्रत्याशी देने पर मेरी सहमति थी, देवेंद्र यादव को ऊपर से टिकट दिया गया है। पार्टी ने जिसको टिकट दिया है, वो ही हमारा कैंडिडेट है। बहरहाल महंत के बयान से ऐसा लग रहा है कि महंत सहित कई बड़े भी टिकट वितरण से नाखुश है। स्वभाविक है लोकल कार्यकर्ता नाराज तो रहेंगे ही।

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