छत्तीसगढ़

जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़, लेकिन हालात कह रहे हैं हालात के मुताबिक़

Nilmani Pal
8 April 2022 5:44 AM GMT
जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़, लेकिन हालात कह रहे हैं हालात के मुताबिक़
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ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

भारत में एक बार फिर हलाल मीट को लेकर बहस शुरू हो गई है। बहस की शुरुआत कर्नाटक में हुई। जबकि हकीकत ये है कि हलाल मीट निर्यात में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है और लगभग 30 हजार करोड़ सालाना विदेशी मुद्रा भारत को हलाल मीट के निर्यात से प्राप्त होता है। लेकिन ध्रुवीकरण की राजनीति ने हर धंधे में पेंच फंसा रखा है। बहरहाल केंद्र सरकार को ही निर्णय लेना है कि हलाल मीट केंद्र बंद कर घाटा उठाना है या नहीं। अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले कर्नाटक में पिछले एक हफ्ते से हलाल मीट को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। विपक्षी लोग इसे ध्रुवीकरण की राजनीती कह रहे हैं। बीजेपी के महासचिव सीटी रवि ने हलाल फूड को आर्थिक जेहाद तक बता रहे हंै। उन्होंने कहा कि हलाल आर्थिक जेहाद है। जब वो सोचते हैं कि हलाल मीट खाना चाहिए तो ये कहने में क्या गलत है कि हलाल मीट नहीं खाना चाहिए इस प्रकार के बेतुका सवाल कर्नाटक के अलावा पूरे देश में उठ रहा है जहां चुनाव होने हैं भारत में ये पहली बार नहीं है जब हलाल मीट को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बहरहाल भारत ने 2020-21 में दुनियाभर में 10.86 लाख मीट्रिक टन मांस निर्यात किया. इसकी कुल कीमत लगभग 30 हजार करोड़ रुपये थी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि जिसे जो पसंद है वो खाये लेकिन इसमें राजनीति न हो तो बेहतर है। आजकल किसी भी तरह से लोग चर्चा में बने रहना पसंद करते हैं। खाने पीने में आम आदमी को हलाल या अन्य से कोई सरोकार नहीं है लेकिन कुर्सी के मोह ने नेताओं को जरूर इन सब से जोड़ दिया है। इसी बात पर किसी ने ठीक ही कहा है कि जी चाहता है जीना जज्बात के मुताबिक, लेकिन हालात कह रहे हैं हालात के मुताबिक।

पांच राज्यों में हार शाकिंग

कांग्रेस हाईकमान ने पांच राज्यों की समीक्षा कर परिणाम को लेकर दु:ख जताते हुए कहा कि यह हमारे लिए शाकिंग है। इतने बुरी तरह हार का सामना करने की कल्पना नहीं की थी, लेकिन इस चुनौती का हमें डटकर मुकाबला करना है, तभी केंद्र में कांग्रेस की सरकार आ सकती है। ये हमारी परीक्षा की घड़ी हैै। सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में कहा कि आगे और रास्ता चुनौतीपूर्ण होगा। विभाजन और धु्रवीकरण को लेकर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि बंटवारे के समय तथ्य और इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश करना सत्तारूढ़ पार्टी के लिए नियमित बात हो चुकी है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि कांग्रेस को अपने नेताओं को एकजुट करने के लिए जी 23 के साथ एक और 28 राज्यों के लिए 56 युवाओं की टीम बनाना चाहिए और उन्हें फ्री हैंड कर काम करने की स्वतंत्रता दे देना चाहिए और उसकी मानिटरिंग जी 23 के नेताओं को सौंप कर उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर लेना चाहिए। भारत में बिन कांग्रेस राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती है। पार्टियां तो सत्ता में आती जाती रहती है। कभी भाजपा भी शून्य से शुरूआत की थी,कांग्रेस तो हमेशा से लाखों सहयोगियों के साथ काम करते आ रही है। ऐसी चुनौती का सामना करना कांग्रेसियों को खूब आता है। सब संगठन को मजबूत करने की जरूरत है, लोग खुद-ब-खुद कांग्रेसी कारवां में शामिल होकर पार्टी को मजबूत करते जाएंगे।

चुनावी चंदे की तथा कथा

हर उद्योगपति किसी ने किसी राजनीतिक पार्टी से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा रहता है। चुनावी चंदे की तथाकथा के मुख्य सूत्रधार राजनीतिक दल होते है। जो सरमय-समय पर राजनीतिक दलों को पैसा यानी चुनावी चंदा देकर अपना वर्चस्व बनाए रखती है। लेकिन इस चंदे पर भी किसी सिरफिरे ने याचिका लगा दी है। पाटियों को चुनावी बांड के जरिए चंदा जुटाने की इजाजत देने वाले कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने तैयार हो गई है। खबर है कि कोलकोता की एक कंपनी ने चुनावी बांड के जरिए 40 करोड़ का भुगतान किया ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि उस पर कोई आबकारी छापा न पड़े। जनता में खुसुर-फुसुर है कि उद्योगपति तो राजनीतिक पार्टियों से सेटिंग कर लेते है। लेकिन डिपार्टमेंटल अधिकारियों को उनका चंदा नहीं मिलने से कंपनियों में छापामार कार्रवाई होती है। यह तो दस्तूर है एक को साधा तो दूसरे को भी साधना पड़ेगा। क्योंकि राजनीतिक पार्टियां तो आती-जाती रहती है,जबकि अधिकारी वर्षो तक जमे रहकर काम करते है। उनका आने जाने वाले सरकार के प्रभाव का असर बेअसर होता है। काम तो अधिकारी ही करते है। एक को तो राजनीतिक दल बचा लेंगे, लेकिन 99 को कैसे बचाएंगे। इसलिए दान दक्षिणा पर अधिकारियों की भूमिका को भी शामिल करना चाहिए जिससे छापामार कार्रवाई से पूंजीपति बचे रहे।

भूपेश चले अटल के राह पर

खैरागढ़ के राजनीतिक अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवान दंड पेल रहे है। चुनाव के शुरूआत में भाजपा ने सीएम भूूपेश पर आरोप लगाया कि खैरागढ़ को जिला बनाने का झूठा आश्वासन भूपेश ने चुनाव जीतने के लिए दिया था, यह बात भूपेश को बर्दाश्त नहीं हुई और भाजपा के आरोपों को सिरे से नकारते हुए बाउंसर करते हुए घोषणा कर दी कि खैरागढ़ चुनाव जीतने के 24 घंटे के अंदर खैरागढ़ को जिला बना दिया जाएगा।

इस घोषणा ने भाजपा को चारों खाने चित कर दिया है। उन्हें उठने के लिए केंद्रीय मंत्रियों की बैशाखी की जरूरत पड़ रही है। भाजपा ने भूपेश पर आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के लिए सौदा कर रहे है। इसके जबाव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहाकि अटल बिहारी बाजपेयी ने भी सौदा किया था, कि दो सांसद दे दो मैं मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग कर राज्य बना दूंगा। हुआ वही भाजपा की बंपर जीत हुई और 2000 में मध्यप्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा दिया गया। यदि मैंने भाजपा शासनकाल में उपेक्षित और शोषित खैरागढ़ को 24 घंटे के अंदर जिला बनाने की घोषणा की तो भाजपाइयों के पेट में क्यों दर्द हो रहा है।

अटल जी ने जो घोषणा की वो क्या था, भाजपाई बताए। 15 साल तक तो भाजपाई सिर्फ सौदा ही करते रहे किसानों का हक मारते रहे। जनता में खुसुर-फुसुर है कि भैया ये राजनीति है जिसकी लाठी उसी की भैंस होती है। भैंस के आगे बिन बजाने वालों की भैंस भी नहीं सुनती है। राजनीति में सब कुछ जायज होता है, यह इसी का प्रमाण है, वोट को लिए कुछ भी हो सकता है। भाजपाई खैरागढ़ में दिनभर भरी गर्मी में पानी पी-पीकर कांग्रेस सरकार को कोस रहे है, और रात को सीएम के पास उपस्थित होकर अपने काम कराने के लिए अनुनय विनय करते है। ये तो राजनीति का हिस्सा है दोस्तों यहां कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन होता ही नहीं। वक्त के साथ दोस्त और दुश्मन तय होते है।

Nilmani Pal

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