छत्तीसगढ़

मैं हूं प्रेम रोगी मेरी दवा तो कराओ, मैं हूं चुनाव रोगी मुझे टिकट तो दिलवाओ

Nilmani Pal
24 Jan 2025 5:48 AM GMT
मैं हूं प्रेम रोगी मेरी दवा तो कराओ, मैं हूं चुनाव रोगी मुझे टिकट तो दिलवाओ
x

ज़ाकिर घुरसेना /कैलाश यादव

जब से नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा हुई है तब से शहर की तासीर में कुछ अजीब सी हरारत देखने में नजर आ रही है। दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता मतदाता सूची का लिस्ट का आला लेकर जहां तहां अपना बुखार नाप रहे है। वहीं जो टिकट देने वाले है उनके घर सुबह से ही टिकट मंगों की भीड़ लग रही है। नेता परेशान औऱ हलाकान नजर आ रहे हैं। जो-जो नेता डाक्टर की भूमिका निभा रहे वो भी चुनावी बुखार के प्रकोप से पीडि़त दिखाई दे रहे हैं। उनकी पीड़ा महापौर और पार्षद टिकट को लेकर जुदा है। क्योंकि वो सभी को टिकट देने की तो सिफारिश कर रहे है पर अपने परिवार को लेकर भी थोड़ा मोह है उसे भंग नहीं कर पा रहे है । जब सबको टिकट बांट देंगे तो उनके परिवार के लिए क्या बचेगा । बस इसी उधेड़बुन में किसी नेता का खुलकर अनुशंसा करने में कोताही बरत रहे है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि भैया ये चुनावी बुखार है जो जीतने से पहले और जीतने के बाद तक पांच साल तक नहीं उतरता है। उसका इलाज सर्जरी के लिए दौड़ -दौड़ कर हाईकमान के सुपरस्पेसशिलिटी में जा रहे है। ताकि लोगों का मर्ज ठीक करने से पहले अपना इलाज पूरी तरह करा सके। टिकट के आकांक्षी नेता फिल्म प्रेमरोग का एक गाना गुनगुनाते फिर रहे है - मैं हूं प्रेम रोगी मेरा दवा तो कराओ, मैं हूं चुनाव रोगी मुझे टिकट तो दिलवाओ।

खदान का रखवाला कौन प्रशासन या रेत माफिया...

आदिवासी जल, जंगल, जमीन को लेकर लगातार उसे बचाने के लिए आंदोलन करते रहे है। लेकिन जब से गांवों का शहरी करण हुआ है तब से एक नया तबका आ गया है जो रेत से तेल निकाल कर रातों रात करोड़पति बनने के फेर में तमाम कानून कायदे को ताक में रखकर नदीं का संरक्षण करने के नाम पर दोहन कर रहे है। प्रशासन के लाख प्रतिबंध के बाद भी रेत माफिया पर्यावरण संरक्षण के नाम पर नदीं के किनारे रेतों की खुदाई कर नदी के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। ऊपर से इनका तकिया कलाम है कि हम प्रकृति के संरक्षण के लिए नदीं के किनारे -किनारे रेत निकाल कर जल संग्रहण का नया एनिकेट तैयार कर रहे है। जनता में खुसुर फुसुर है कि जब रेत माफिया नदी का संरक्षण कर रहे है तो सरकार के अधिकारी जो मोटी -मोटी तनख्वाह में सरकार को जल, जंगल जमीन के संरक्षण की सलाह देते है उनका इसमें क्या रोल है। सरकारी अधिकारी को रोल सिर्फ इतना होता है कि रेत माफिया डाल-डाल तो अधिकारी पांत-पांत होते है। रेत की खदान में खुदाई सरकारी आदेश से होती है औऱ सरकार के कहने पर प्रतिबंध लगता है। जब रेत माफियाओ्ं का पेट भर जाता है तो अधिकारी से बोलकर उस खदान में प्रतिबंध लगवा देते है। इस कारण किसी भी सरकार आदेश का पालन रेत माफिया नहीं करते है, रेत माफिया का कहना है कि हम नदी को जो नदी पर प्रतिबंध लगाते है उनको संरक्षण देते है। ताकि हमारी नेतागिरी की दुकान चलती रहे ।

अधिकारी है कि सुनने के नाम नहीं ले रहे है पिछले दिनों पीडब्ल्यूडी के पांच अधिकारी सस्पेंड हो गए. उसी दिन हाउसिंग बोर्ड के दो इंजानियर भी नप गए । एसा ही सिर्फ दो ही केस नहीं है हर विभाग में भ्रषटाचारी नप रहे उसके बावजूद भ्रष्टाचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है जबकि उन्हें मालूम है कि भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने वाले उन्हों बचा नहीं सकते फिर भी पैसे की भूख में सब अंधे हो गए है। जीआऱपी के आरक्षकों ने गांजा बेचकर महंगी -महंगी कार बाइक औऱ जमीन ले लिए अंत में धरे गए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि एसे लोगों का हश्र क्या हुआ दुिनया देख रही है पैसे भी गए और इज्जत भी गई उसके बावजूद इस काम से लोगों का मोह भंग क्यों नहीं हो रहा है।

सोच-सोच की बात पर सियासत

सरकार के नक्सल उन्मूलन अभियान अब नेताओ्ं की नई बहस शुरू हो गई है कि नक्सलवाद पर कौन कितना राजनीति कर सकता। नेता तो नेता होते है मुद्दा कोई भी तुरंत लपक लेते है। कांग्रेस ने पुलिस और सुरक्षाबलों की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए हैं। डॉ. महंत ने अपने बयान में कहा था कि यदि नक्सलवाद समाप्त होता है, तो बस्तर को उद्योगपतियों के हाथों में नहीं सौंपा जाना चाहिए। उनके इस बयान पर उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा बर्दाश्त नहीं कर पाए औऱ फटाफटा प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस वही बातें कर रही है जो नक्सली कहते हैं। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, देश के अन्य हिस्सों में भी उद्योगपति हैं, लेकिन वहां क्या समस्या हुई? फिर बस्तर में ही क्यों उद्योगपतियों को लेकर लगाय़ा कि नक्सलवाद के खात्मे के नाम पर बस्तर के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया जा रहा है। नक्सली संगठन अपने प्रेस नोट में यह दावा भी करते हैं कि पुलिस और सुरक्षाबल निर्दोष आदिवासियों को माओवादी बताकर उनकी हत्याएं कर रहे हैं और उनके साथ अत्याचार कर रही हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि लोग गरीबी, महंगाई बेरोजगारी पर नेता क्यों बात नहीं करते है । फोर्स तो अपना काम कर रही है वहां नेताओ्ं को टांग फंसाने का क्या मतलब है। काश ये नेता निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर आम आदमी की पीड़ा को लेकर बहस करते तो ज्यादा सार्थक होता जनता को कुछ लाभ होता।

मार्गदर्शक मंडल के सुझाव को कौन मानेगा ...

नगरीय निकाय चुनाव के संयोजक औऱ वरिष्ट नेता अमर अग्रवाल का कहना है कि निस्संदेह अटल निर्माण वर्ष के अधोसंरचना के क्षेत्र के अधिकाधिक कार्य करने का सबसे बड़ा लाभ हमारे नगरीय निकायों को मिलेगा। हमने बीते एक साल में जो वादे किए, उन्हें पूरा कर यह साबित कर दिया है कि भाजपा केवल बोलती नहीं, बल्कि करती भी है। अब हम इस मंत्र को लेकर नगर पालिका, नगर निगम और जिला परिषद स्तर तक पहुंच रहे हैं, ताकि हर शहर, हर वार्ड, और हर गली, यहा तक कि हर घर में विकास की गूंज सुनाई दे। हमारा उद्देश्य छत्तीसगढ़ के हर नागरिक को स्वच्छ, सुंदर, और समृद्ध जीवन प्रदान करना है। साथ ही जनता से उनकी त्वरित मांगों को लेकर सुझाव भी लेंगे। जनता में खुसुर-फुसुर है कि देश के सबसे बड़ी संख्या वाली राजनीतिक पार्टी में मार्ग दर्शक मंडल की कमी हो गई है। इसलिए भाजपा नगरीय निकाय की वैतरणी पार करने जनता से सुझाव लेगी.। चर्चा है कि जो पार्टी अपने नेताओ्ं का सुझाव नहीं मानती भला वो जनता के सुझाव को कैसे मानेगी।

सरकारी प्रशिक्षण को आखिर कौन समझेगा

चुनाव अधिकारिय़ों औऱ कर्मचारियों को प्रशिक्षण सत्र को संबोधित करते हुए कलेक्टर ने कहा कि प्रशिक्षण चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। जितना अच्छे से आप प्रशिक्षित होंगे उतने अच्छे से आप मतदान कार्य संपन्न कराएंगे। आपको पंचायत के साथ नगरीय निकाय का चुनाव संपन्न कराना है। कलेक्टर ने विश्वास जताते हुए कहा कि इस बार आपको दोहरी जिम्मेदारी है, मगर सभी अधिकारी-कर्मचारी इसे पूरी अच्छे तरीके से समझने की कोशिश कर रहे ताकि सनद रहे कि जो लोग इंदिरा-नेहरू के कांग्रेस के कानून को नहीं मानते वो प्रशिक्षण को कैसे मानेंगे। यही चुनाव का असल रूप है।

Next Story