छत्तीसगढ़

हुस्न यूँ इश्क से नाराज़ है अब, फूल खुशबू से खफ़ा हो जैसे

Nilmani Pal
22 July 2022 5:44 AM GMT
हुस्न यूँ इश्क से नाराज़ है अब, फूल खुशबू से खफ़ा हो जैसे
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ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

भाजपा के अनुुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया है कि दलितों पर अत्याचार हो रहा है उनके हित में काम नहीं हो रहे हैं कांग्रेस केवल राजनीति कर रही है। दलितों के साथ हर जगह अन्याय हो रहा है छुआ-छूत,जातीय अत्याचार,और भेदभाव चरम पर है आदि। इसी बीच उत्तरप्रदेश के योगी सरकार में जल शक्ति राज्य मंत्री ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा इस बिना पर दे दिया कि वे अनुसूचित जाति दलित वर्ग से आते हैं उनकी बात कोई नहीं सुनता, मीटिंग में भी नहीं बुलाया जाता, अधिकारी बीच में ही फोन काट देते हैं, विभाग में चलने वाली योजनाओं पर क्या कार्रवाई की जा रही इसकी भी जानकारी नहीं दी जाती, मेरे द्वारा लिखे पत्रों का जवाब भी नहीं दिया जाता क्योंकि मंै दलित समुदाय से आता हूं। और इन सब बातों से आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस पर यूपी भाजपा के अध्यक्ष ने बयान जारी कर कहा कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए इसे मुद्दा बना रहे हैं कोई नाराजगी वाली बात नहीं है। विपक्षी तिल का ताड बना रहे हैं। जनता में खुसर-फुसुर है कि क्या छत्तीसगढ़ में भी विपक्ष मुद्दाविहीन है जो छोटी-छोटी बात को तिल का ताड बना रही है ? किसी ने ठीक ही कहा है कि हम करें तो खफा तुम करो तो अदा। वैसे भी राजनीतिक पार्टियां दलितों और पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में ही रखना चाहती ही है। लेकिन राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता ही रहता है। इसी बात पर शायर इफ़्तेख़ार आज़मी साहब का शेर याद आया-हुस्न यूँ इश्क से नाराज़ है अब, फूल खुशबू से खफ़ा हो जैसे।

न्यायमूर्ति एनवी रमना का छलका दर्द

पिछले सप्ताह जयपुर में भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना ने कहा कि राजनीतिक विरोध का जिस तरह शत्रुता में बदल रहा है वह स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि कभी सरकार और विपक्ष के बीच जो आपसी सम्मान हुआ करता था वह अब कम हो रहा है। न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'राजनीतिक विरोध, बैर में नहीं बदलना चाहिए, जैसा हम इन दिनों दुखद रूप से देख रहे हैं। ये स्वस्थ लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं। उन्होंने कहा सरकार और विपक्ष के बीच आपसी आदर-भाव हुआ करता था। दुर्भाग्य से विपक्ष के लिए जगह कम होती जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि विधायी प्रदर्शन की गुणवत्ता में गिरावट भी चिंताजनक है। खुद सीजेआई ने इस बात को कुबूल किया कि कानूनों को व्यापक विचार-विमर्श और जांच के बिना पारित किया जा रहा है। देखा ये जा रहा है की सरकार के खिलाफ बोलना जुर्म हो जाता है। सरकार के खिलाफ लिखने बोलने वाले पत्रकारों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। इन सब बातों को उन्होंने आम जनता को बताना ही अपना दायित्व समझा। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाय कि सुको के फैसले पर भी ऊँगली उठायी जा रही है।

खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग

शासकीय कर्मचारी मंहगाई भत्ता वृद्धि को लेकर आंदोलन करने वाले हैं। उनकी मांग है कि राज्य सरकार भी केंद्र सरकार के बराबर मंहगाई भत्ता दे। मजे की बात ये है कि हाल में ही मंत्री और विधायकों के वेतन और भत्ते बढ़ाये जाने पर विपक्षी विधायक भी खामोश रहे जबकि उनको इसका विरोध करना चाहिए था की जब तक कर्मचारियों का वेतन भत्ता नहीं बढ़ जाता तब तक विपक्षी सदस्य बढ़ी हुई वेतन भत्ता नहीं लेंगे। शासकीय कर्मचारी मंहगाई भत्ता को लेकर आंदोलन करने की तैयारी कर रहे हैं और विपक्षी और भाजपा नेता उस आंदोलन को समर्थन देंगे लेकिन सवाल ये उठता है कि सरकार ने उनके वेतन भत्ते में बढ़ोतरी कर दिया है लेकिन कर्मचारियों की नहीं तो उस समय उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया। सरकार को हर मुद्दों पर घेरने वाले विपक्षी सदस्य अपने वेतन भत्ता वृद्धि के समय सत्ताधारी दल के साथ खड़े नजऱ आये यानी हाथी के खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग होते हैं विपक्षियों ने साबित कर दिया।

एग्जाम सेंटर में चेकिंग के नाम पर फिर वही दुस्साहस

पिछले सप्ताह देशभर में आयोजित हुई नीट परीक्षा फिर चर्चा में है। केरल के एग्जाम सेंटर पर चेकिंग के नाम पर कुछ लड़कियों के अंडर गार्मेंट्स उतरवाने का मामला सामने आया है। गौरतलब है कि 2017 में भी केरल के ही एक कॉलेज में सख्त चेकिंग के नाम पर लड़कियों के इनरवियर उतरवाने की घटना सामने आई थी। उस समय भी और इस समय भी आरोपियों को गिरफ्तार किया गया । उससे कोई फक्र नहीं पड़ा गिरफ्तारी से किसी को डर नहीं है। ऐसे में परीक्षार्थियों और पालकों के सामने यह सवाल है कि क्या परीक्षक के पास इस हद तक चेकिंग करने का अधिकार है? हालांकि परीक्षा में शामिल होने के लिए उम्मीदवारों के लिए एक ड्रेस कोड तय है। जिसके तहत उम्मीदवारों को फुल स्लीव्स के कपड़े पहनकर परीक्षा देने की अनुमति नहीं है। चप्पल या हल्के हील की सैंडल पहन सकते हैं मगर जूते पहनने की मनाही है। उम्मीदवारों को कोई माला, ताबीज़ आदि पहनने से भी मना किया जाता है। नीट एडवाइजऱी के मुताबिक कोई भी जेवर या मेटल पहनकर आने की मनाही है। इसके अलावा मोबाइल फोन, वॉलेट, घड़ी, ब्रेसलेट आदि भी एग्जाम हॉल में नहीं पहन सकते। जनता में खुसुर-फुसुर है कि इतनी सघन तलाशी के बाद भी लाखो रूपये लेकर मुन्ना भाई लोग नीट की परीक्षा दिलाने में सफल कैसे हो जाते हैं। इन पर कड़ाई करने के बजाय परीक्षार्थियों पर कड़ाई किया जाता है।

माफियाओं की चांदी

हरियाणा में डीएसपी को खनन माफियाओं द्वारा कुचल कर मारे जाने का मामला शांत हुआ नहीं था कि झारखण्ड और महिला दरोगा को पशु तस्करों ने कुचल कर मार डाला और अब गुजरात में वाहनों की जाँच कर रहे पुलिस कर्मी को ट्रक से कुचल दिया। जनता में खुसुर-फुसुर है कि इन लोगों के हौसले बुलंद क्यों है क्या ये सब चंदजीवी लोग तो नहीं हैं जो सरकार के लोगों को अपना नज़दीकी समझते है।

विपक्ष को नहीं पक्ष को बोलना होगा

छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र प्रारम्भ हो गया। ऐसा लगता है कि विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है तभी तो अविश्वास प्रस्ताव लेकर सरकार गिराने के काम में लग गए हैं। लेकिन 71 और19 के बीच अविश्वास प्रस्ताव गले नहीं उतर रहा है सिर्फ समय व्यतीत करना मालूम होता है। ठीक ऐसे ही दिल्ली में भी मानसून सत्र चार दिन से चल रहा है। वहां भी संसद परिसर में गाँधी जी की प्रतिमा के सामने विपक्षी सदस्य प्रदर्शन कर बढ़ती हुई मंहगाई के खिलाफ विपक्ष एक होकर विरोध कर रहे हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि एक होने से आम जनता को क्या फायदा मिलेगा। क्या मंहगाई कम हो जायेगी। महंगाई तो सब के लिए है इसके लिए सत्ताधारी दल के सांसदों को बोलना चाहिए तब जाकर सरकार मंहगाई कम करने की कोशिश करेगी वर्ना विपक्ष की आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज़ साबित होगी।

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