छत्तीसगढ़

पति ने पत्नी पर लगाया आरोप: बेटा उसका नहीं, किसी और का है, डीएनए टेस्ट से हुई असली पहचान

Nilmani Pal
28 Jun 2022 12:11 PM GMT
पति ने पत्नी पर लगाया आरोप: बेटा उसका नहीं, किसी और का है, डीएनए टेस्ट से हुई असली पहचान
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जगदलपुर। परिवार न्यायालय में चल रहे एक प्रकरण में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की मदद से 16 वर्षीय बेटे को उसका हक मिल पाया। दरअसल, पति पत्नी के चरित्र पर संदेह करता था। इसके चलते उसने पत्नी को घर से बेटे समेत यह कहकर निकाल दिया था कि बेटा उसका नहीं, किसी और का है। बेटा जब किशोरावस्था में पहुंचा तो पिता से अपना हक मांगने के लिए परिवार न्यायालय में आवेदन लगाया। न्यायालय ने डीएनए टेस्ट का आदेश दिया, लेकिन महिला व बेटा गरीबी के चलते उसका खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे। ऐसे में जिला विधिक प्राधिकरण से मदद की और बेटे और पति दोनों के डीएनए टेस्ट का खर्च उठाया। दोनों के रक्त के सैंपल सेंट्रल लैब भेजे गए। दो माह बाद रिपोर्ट पाजिटिव आई।

इस पर न्यायालय ने पिता को बेटे के बालिग होने तक भरण-पोषण का खर्च देने और संपत्ति में अधिकार देने का आदेश दिया है। वहीं महिला के लगाए भरण्-पोषण के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह वर्तमान में अन्य पुरुष के साथ लिव इन में रह रही है। वहीं पहले पति के साथ भी उसका कानूनन विवाह नहीं हुआ था। बकावंड जनपद के ग्राम मरेठा निवासी अनावेदक शोभाराम का उसी गांव की युवती से 20 वर्ष पूर्व विवाह हुआ था। शोभाराम के पास आठ एकड़ खेत है। साथ ही गांव में एक बड़ा किराने का दुकान भी है। दांपत्य जीवन में उनका एक पुत्र भी हुआ। वर्ष 2015 में शोभाराम ने पत्नी को छोड़ दिया। वहीं पुत्र को भी जायज होने से इंकार किया। उसने किसी दूसरी महिला से शादी कर लिया।

इसके बाद युवती अपने नाबालिग पुत्र को लेकर अपने नानी के यहां रहने लगी। आजीविका चलाने व पुत्र की शिक्षा-दीक्षा के लिए उसने लोगों का मवेशी चराने का काम किया। 14 फरवरी 2017 को महिला ने परिवार न्यायालय में अधिवक्ता के माध्यम से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण खर्च हेतु आवेदन दाखिल किया। वहीं उसके 16 वर्षीय पुत्र खेमराज की ओर से पिता से खर्चा प्राप्त करने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गयाह। मामले के ट्रायल के दौरान अनावेदक शोभाराम ने महिला से कोई संंबंध नहीं होना तथा पुत्र भी उसका नहीं, वरन किसी और का होना बताया। कोर्ट ने पितृत्व निर्धारण के लिए डीएनए परीक्षण करवाने की सलाह दी। इस पर महिला ने आर्थिक रूप से अक्षम होने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से मदद की गुहार लगाई। प्राधिकरण की सचिव गीता गीता बृज ने डीएनए परीक्षण में लगने वाली सारी राशि प्राधिकरण की ओर से व्यय करने का निर्णय लिया।

इसके बाद पिता-पुत्र का रक्त सैंपल राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर भेजा गया। दो माह के बाद रिपोर्ट आने पर खेमराज का जैविक पिता शोभाराम को होना पाया गया। बीते 23 जून को प्रकरण की सुनवाई करते हुए परिवार न्यायालय के पीठासीन अधिकारी मनीष कुमार ठाकुर ने विचारण में डीएनए रिपोर्ट के आधार पर शोभाराम को प्रार्थी पुत्र का जैविक पिता माना।


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