सैकड़ों प्रोजेक्ट अटके, ऑफर के बाद भी नहीं बिक रहे फ्लैट
- कोरोना ने बिल्डरों की ऐसी कमर तोड़ी कि दो साल बाद भी नहीं उठ पा रहे...
- आधे दाम में बेचने को तैयार फिर भी नहीं बिक रहे फ्लेट
- खरीदारों लुभावने स्कीम का लालच देकर फंसाने कर रहे हैं प्रोपोगंडा
- राजधानी के नामी बिल्डरों के साथ आरडीए और हाउसिंग बोर्ड की हालत पतली
- राजधानी में बिल्डरों के प्लेट में निवेश करने वालों में भारी निराशा
- फ्लेट-जमीन की कीमत दुगने होने के बजाय हो गए आधे
- बिल्डरों ने झांसा देकर लोगों को जो प्रापर्टी बेची उसमें नहीं दे रहे ब्रोशर के हिसाब से सुविधाएं
- कुछ मीडिया घराने वाले भी बिल्डरों के गिरोह में शामिल होकर लोगों को लगा रहे चूना
- हाउसिंग बोर्ड का कचना प्रोजेक्ट तो एक चौथाई रेट में भी खरीदार नहीं मिल रहे है
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर । बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए कुछ मीडिया घराने के लोगों के बिल्डरों ने साथ में मिला लिया है। लोगों को प्रापर्टी करीजदी के लिए एसेएमएस,वाट्सएप, पार्टी, मेला का आयोजन कर लोगों को लड़कियों से फोन करवा कर आमंत्रित करते है। जिसके चक्कर में फंस कर निवेशक और निम्न मध्यमवर्गीय परिवार बिल्डरों की जाल में फंस रहा है। जिसके कारण बिल्डरों ने अपना विश्वास खो दिया है। बिल्डरों के सारे प्रोजेक्ट पिछले दो साल में एक कौड़ी की नहीं बिक पाई है। पिछले दो साल 2019 मार्च से 2020 और 2021 में बिल्डरों ने जो प्रापर्टी बेचने के लिए बनाई थी,कोरोना महामारी के भयावह आतंक और उद्योग, व्यपार-कारोबार ठप होने से निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार जो बेघर थे, उन्हें औद्योगिक और सरकारी क्षेत्र से नौकरी से निकाल दिए गए जिससे बेरोजगार होकर रोजमर्रा के जरूरतों को सामान के लिए तरसते रहे। राजमर्रा की झंझावत से जूझते नागरिकों को किराए देने तक के लाले पड़ गए ऐसे में बिल्डरों की प्रापर्टी कौन खरीदता। कोरोना की चपेट से छत्तीसगढ़ के बिल्डर आज तक उबर नहीं पाए है। बिल्डरों के करीबी सूत्रों की मानें तो राजधानी में प्रापर्टी की कीमत दोगुनी हो जाती थी, जिस पर उद्योगपति से लेकर सरकारी अधिकारी और कर्मचारी निवेश कर अपनी पूंजी बढ़ाते थे, कोरोना काल में प्रापर्टी मौत के भय से निवेश करने वालों ने भी हाथ खींच लिए जिसके चलते पिछले दो साल में बिल्डरों को करोड़ों अरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। अब कोरोना काल की समाप्ति के बाद कुछ आसा की किरण दिखाई दे रही है लेकिन प्रापर्टी में निवेशकों की रूचि अभी तक सामने नहीं आने से बिल्डर कर्ज की बोझ में दबकर कर्ज चुकाने के लिए प्रापर्टी आधे कीमत में बेचने के लिए तैयार होने के बाद भी उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे है।
बिल्डरों की खराब छबि ने बिगाड़ा धंधा
प्रदेश में बिल्डरों की छवि हद से ज्यादा खराबर है, लोगों के सस्ते में प्रापर्टी बेचने के लिए झांसा दिया और पैसे लेकर भी फ्लेट और इंडीज्यूअल मकान और प्लाट भी हैंडओव्हर नहीं किया जिसके कारण इनकी छवि कापी खराब हुई और रेरा में भी सिखायत हुई। लोगों से मकान-दुकान जमीन की कीमत दो साल दोगुनी होने के झांसा देकर निवेश कराकर उनको करोड़ों रुपए का चूना लगाया। जानकार सूत्रों ने बताया कि जमीन की दलाली करने वाले जब बिल्डर बन गए तो उस प्रापर्टी की क्या दशा होगी आप सोच सकते है। बड़े-बड़े ब्रोशरों में अपनी प्रापर्टी बेचने के लिए हथकंड अपनाए, लोक लुभावने सुविधा देने के वादे किए, लेकिन सुविधा नहीं दी, जमीन में भी हेराफेरी की और खरीदरों ने बिल्डरों के खिलाफ रेरा में शिकायत कर बिल्डर का पंजीयन ही रद्द करवा दिया।
बड़े और छोटे बिल्डरों ने जमीन पर किया कब्जा
प्रदेश के बड़े और छोटे बिल्डरों ने कोरोनाकाल में सिर्फ किसानों की जमीनों पर कब्जा किया और प्रोजेक्ट पर प्रोजेक्ट तानते रहे किसानों को कोरोड़ों की जमीन के बदले में दो-चार लाख देकर पावर आफ अटर्नी लेकर उनके खेतों को बिना डायवर्सन किए रिहायशी बनाने के राजनेताओं के साथ पोटो खिंचवा कर राजनीतिक लाभ और अपनी जिद में डटे रहे। किसानों को इसका दोहरा नुकासान हुआ खेत का पूरा पैसा भी नहीं मिला और फसल भी नहीं बो सके। आधे अधूरे सौदे के चलते किसान दोनों तरफ से लूट गया और बिल्डरों ने कुछ लाख निवेश कर अरबों की जमीन पर कब्जा कर छोटे और बड़े किसानों को सिर्फ नुकसान की पहुंचाया।
सरकारी अधिकारियों को भी दिया झांसा
बिल्डरों ने सस्ते में खेत को खरीद कर सरकारी अधिकारियों से सांठगांठ कर बिना नक्शा, लेआउट पास, बिना डायर्वटेड जमीन पर धड़ाधड़ दस मंजिल फ्लेट तान दिया। अधिकारियों ने तो पैसा लेकर बिल्डरों को बिना नक्शे के एनओसी दे दी और बिल्डरों ने किसान से जमीन हथिया ली। किसानों की जमीन-खरीदी-बिक्री की गाइड लाइन तक की परवाह नहीं की। किसान पैसों के लिए बिल्डरों के आज तक चक्कर काट रहे है। किसानों का कहना ता कि पावर आफ अटर्नी देकर हम फंस चुके है अब यहां से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। यदि पैसों के लिए तगादा करते है तो मसल पावर की धमकी देते है।
बिल्डरों के पास धनबल और बाहुबल
प्रदेश के साथ राजधानी के बिल्डरों ने अपने प्रोजेक्ट को सेलआउट करने धनबल और बाहुबल से मार्केटिंग करवा रहे है। ताकि निवेशकों को फंसाकर पूंजी निकलवा सके।
धनबल और बाहुबल के दम पर बिल्डरों अपना कारोबार बढ़ाना चाहते है। जिसके चलते प्रोजेक्टों की बिक्री में रोड़ा आने से सभी फेल प्रोजेक्टों को बेचने के लिए लोगों को लालच दे रहे उसके बाद भी बिल्डरों के प्रोजेक्ट आधे कीमत में भी खरीदार नहीं मिल रहे है।
सरकारी बिल्डरों की भी हालत पतली
सरकारी जमीन-मकान दुकान बेचने वाली सरकारी संस्था हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण के सभी प्रोजेक्ट तीन साल से ठप बड़े है जिसने भी मकान-दुकान बेचने के लिए बनाए गए थे, उनकी कीमत बिल्डरों से भी दस गुना अधिक होने के कारण आरडीए और हाउसिंग बोर्ड की प्रापर्टी के खरीदार नहीं मिलने से आरडीए और हाउसिंग बोर्ड की प्रापर्टी जर्जर होकर खरीदी से बाहर हो गई है। जिसके कारण हाउसिंग बोर्ड और आरडीए अरबों रुपए के कर्जदार हो गए है।
जनता को सस्ता मकान-दुकान आज तक नहीं मिला
आरटडीए और हाउसिंग बोर्ड का गठन ही गरीबों और शोषित वर्ग के उत्तान के लिए किया गया था, लेकिन इसके विपरीत इस संस्था का फायदा गरीब और मध्यम वर्गीय निम्नआय वर्गीय लोगों को नहीं मिला। यह संस्था सत्ता धारी दल के छुटभैया नेताओं की राजनीति की भेंट चढ़ गई। दोनों संस्थाओं की कीमती और बहुमूल्य जमीन बिल्डरों और उद्योगपतियों के कब्जे में जा चुकी है। अब टूटा-फूटा बहुमंजिला वन-बीएचके खदीदार नहीं मिलने से बिना रखरखाव के टूट-फूट चुके है। जिसको बेचने के लिए एक साल से लगातार विज्ञापन निकालने के बाद भी खरीदी में लोगों ने रूचि नहीं दिखाई।
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