रायपुर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में रविवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि मनुष्य का जन्म जीवन के हर क्षण को सार्थक करने के लिए हुआ है। परन्तु वह ऐसा करता नहीं है। मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं होता। इस जन्म को पाने में हमारी आत्मा ने कितना पुरुषार्थ किया, कितना परिश्रम किया है। वर्तमान में शायद कोई कर नहीं सकता। आज यह हमें मिला है तो इसके हर क्षण का उपयोग करना है। लोग मोक्ष में तो जाना चाहते है पर उस मार्ग पर चलना नहीं चाहते है।
आप के अनुसार जाे ऐशोआराम मनुष्य जीवन में मिला है वह फिर नहीं मिलेगा। जो खाने पीने का स्वाद इस जीवन में मिला है वह कहीं नहीं मिलेगा। होटल में खाना खाना, एसी-कूलर की हवा लेना और गद्देदार बिस्तर में सोना और कौन से जीवन में मिलेगा। यह सिर्फ मनुष्य जीवन में मिलेगा। किसी जन्म में बैल-गाय, कुत्ते बन गए तो चाट-गुपचुप का स्वाद कहां मिलेगा। थोड़ा सा दुख हमारे जीवन में आ जाए तो हम किसे भूलते है। हमें अगर थोड़ा सा भी सिरदर्द होता है, तो हम भगवान को भूल जाते है। पूजा-पाठ करने मंदिर नहीं जाते है। जबकि उस दिन हम नहाने गए, खाना खाए, काम पर चले गए पर मंदिर नहीं गए। संसार जगत का कोई भी काम नहीं छोड़े और छोड़े तो कौन सा काम, पूजा-अर्चना का, धर्म का काम। थोड़ा सा सिर दर्द हुआ तो धर्म का काम छोड़ दिया तो सोचो जो नरक गति में रहते है वो कैसे करते होंगे, क्या उन्हें धर्म याद आएगा।
साध्वीजी कहती है कि व्यक्ति को जब सुख के साधन भी ज्यादा मिल जाए तो वह धर्म-कर्म नहीं करता। अगर करना भी चाहे तो वह नियमानुसार नहीं कर सकते है। एक मनुष्य गति ही ऐसा जीवन में जहां हम तप कर सकते है, साधना कर सकते है, आराधना कर सकते है। चातुर्मास जप-तप और पूजा-आराधना करने का समय है। आलस्य में अगर जीवन बिता दिया तो यह चार महीने भी निकल जाएंगे और पता भी नहीं चलेगा।