छत्तीसगढ़

हाउसिंग बोर्ड का तालपुरी घोटाला लोकायुक्त मेें बयान दर्ज होना शुरु

Admin2
29 Jan 2021 6:35 AM GMT
हाउसिंग बोर्ड का तालपुरी घोटाला लोकायुक्त मेें बयान दर्ज होना शुरु
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शिकायतकर्ता पप्पू फरिस्ता ने पहले दिन 3 पेज का बयान दर्ज कराया

हाउसिंग बोर्ड के तालपुरी प्रोजेक्ट में 100 करोड़ से ज्यादा की अनियमितता हुई

भ्रष्ट अफ सरों ने ठेकेदार को फ ायदा पहुंचाने टेंडर अनुबंध में क्लास 3 सी के प्रावधान को ही हटा दिया

अधिकारियों ने बिना हृढ्ढञ्ज स्वीकृति के प्रोजेक्ट का टेंडर जारी किया

सर्विस टैक्स और खऱाब गुणवत्ता की शिकायत की जांच के बजाय की गई लीपापोती

उपायुक्त आरके राठौर तक पहुंचने के बाद हाउसिंग बोर्ड दफ्तर से फाइल गायब हो गई

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। हाउसिंग बोर्ड की बहुचर्चित ताल पुरी घोटाले में मामले में लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करना शुरू कर दिया है। पहले दिन शिकायतकर्ता पप्पू फरिश्ता ने लगभग 3 पन्ने का बयान दर्ज कराया आगे बयान दर्ज करने के लिए 2 दिन का समय और तय किया गया है शिकायतकर्ता के अनुसार बयान लगभग 14 पन्ने का है बयान दर्ज होने के बाद लोकायुक्त आगे की जांच करेंगे उल्लेखनीय है कि हाउसिंग बोर्ड में दुर्ग के ताल पुरी में इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के तहत आवासी कॉलोनी का निर्माण किया है जिसमें लगभग 100 करोड़ से ज्यादा की अनियमितता पाई गई है. इस मामले की कई बार जांच हुई कई अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई लेकिन सांठगांठ और रसूख के चलते विभागीय जांच पर कभी भी कोई कार्यवाही नहीं हुई ठेकेदारों को भुगतान के मामले में सीएजी ने भी सवाल उठाया था जिस पर सरकार ने कोई भी संज्ञान नहीं लिया और ना ही किसी स्वतंत्र एजेंसी से घोटाले की जांच कराने की जरूरत समझी नतीजा प्रोजेक्ट में करोड़ों के घोटाले करने वाले अधिकारी प्रमोशन पाकर हाउसिंग बोर्ड को चूना लगाते रहे अब दस्तावेजों के साथ शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त में घोटाले की जांच और कार्रवाई की मांग को लेकर शिकायत दर्ज कराई है जिस पर लोकायुक्त ने शिकायतकर्ता को बयान दर्ज करने के लिए निर्देशित किया है।

आरटीआई से संबधित याचिका में हाईकोर्ट का नोटिस : शिकायतकर्ता ने राज्य सूचना आयोग से हाउसिंग बोर्ड के उपायुक्त हर्ष कुमार जोशी के बारे में लोक सेवा अधिनियम के अंतर्गत सूचना मांगी थी। जिसकी सूचना देने से सूचना आयोग ने स्पष्ट इनकार कर दिया था। तद उपरांत उसी प्रकरण में शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। जिसके संदर्भ में गुरुवार को हाईकोर्ट ने संबधित पक्षों को और राज्य सूचना आयोग को नोटिस जारी किया है।

तालपुरी घोटाला ऐसे शुरू हुआ

छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के तालपुरी प्रोजेक्ट में हुए घोटाले पर लोक आयोग ने संज्ञान लिया है। लोकायुक्त ने घोटाले को लेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा है। तालपुरी प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आई थी। कैग रिपोर्ट में भी 115 करोड़ के खर्च को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। अनियमितताओं पर कई जांच हुई लेकिन लीपा पोती कर सारे घोटालों पर पर्दा डाल दिया गया। अनियमितता करने वाले अधिकारी पदोन्नत होते रहे लेकिन कार्रवाई शिफर रही।

भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल कॉलोनी के नाम से प्रचारित कर 2008 से जमकर बुकिंग करवाई गई. प्रस्तावित कॉलोनी में करीब 1800 आवासों का निर्माण किया गया. जिसमें करीब 1800 मकान ईडब्लूएस के और शेष 1800 सामान्य एलआईजी, एमआईसी व एचआईजी टाइप के। ईडब्लूएस के आवासों को परिजात, व अन्य सामान्य में गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आरर्किड, जूही, मोंगरा टाइप के आवास बनाए गए। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन इसमें सर्विस टैक्स और खऱाब गुणवत्ता की शिकायत मिलने पर सीएजी ने 2012 में जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की जो मार्च 2013 में सार्वजनिक हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार करीब 115 करोड़ रुपए का घोटाले पर प्रश्न खड़ा किया गया था । लेकिन जानकारों के अनुसार ये घोटाला इससे कहीं ज्यादा का है । सीएजी की रिपोर्ट में निर्माण का काम एजेंसी मेग्नॉटोस कोलकाता को जिस दिन दिया गया, उसी दिन मेग्नॉटोस ने एसएस निर्माण नामक एजेंसी को काम दे दिया। इन दोनों एजेंसियों ने अधुरा निर्माण कर गड़बडिय़ां की । जिसमें ए और बी टाइप के जनसामान्य के आवासों के निर्माण में अलग-अलग रेट कोट किया गया। लेकिन बाद में जब मोंगरा व जूही आवासों का निर्माण हुआ, उसमें भी ए टाइप को छोड़ बी टाइप का रेट कोट किया गया। जबकि पहले ए टाइप के निर्माण में 19 प्रतिशत तक का डीस्काउंड था, जो बाद में बिना किसी कारण के नहीं दिया गया। इस डिस्काउंट की आड़ में इससे ही करीब 90 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया. प्रोजेक्ट के टेंडर जारी होने के पहले ना तो उसकी प्रशासकीय स्वीकृति ली गयी और ना ही टेक्निकल और लेआउट अनुमति ली गई।

नियमों को ताक में रखकर भ्रष्टाचार करने के लिए हाऊसिंग बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों ने बिना हृढ्ढञ्ज स्वीकृति के इस प्रोजेक्ट का टेंडर जारी किया था. हाऊसिंग बोर्ड के भ्रष्ट अफ सरों ने ठेकेदार को फ ायदा पहुंचाने के लिए टेंडर अनुबंध में क्लास 3 सी के प्रावधान पूरी तरह से हटा लिए थे. तालपुरी प्रोजेक्ट में गोलमाल यही तक सीमित नहीं था बल्कि ठेकेदार को सिक्युरिटी एडवांस और मोबलाइजेशन एडवांस भी बगैर किसी वैधानिक प्रक्रिया को पूर्ण किये जारी किया गया. आमतौर पर इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने से पहले प्रोजेक्ट का फि जिकल वेरिफि केशन के साथ साथ मटेरिटयल वेरिफि केशन की प्रक्रिया पूर्ण कराई जाती है. लेकिन अफ सरों ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया. समय पर काम नहीं करने से टाइम एक्सटेंशन बढ़ाने के बहाने ठेकेदार को अधिक भुगतान कर सीधा फ ायदा पहुंचाया गया ।

डबल वसूली में कार्यपालन अभियंता की भूमिका

जब पांच साल बाद भी तालपुरी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो बैंक लोन लेने वाले हितग्राहियों ने हाऊसिंग बोर्ड के विरुद्ध दबाव बनाना शुरू किया. ऐसे में हाउसिंग बोर्ड ने यथास्थिति मकान देने की योजना निकाली. इस दौरान तत्कालिन कार्यपालन अभियंता ने सामान परिस्थिति के मकानों का अलग-अलग मूल्य निर्धारण करवाकर भारी घोटाला किया।इसके अलावा कार्यपालन अभियंता ने हितग्राहियों से जानबूझकर नियम विरुद्ध सर्विस टैक्स डबल वसूली की। उनके विरुद्ध विभागीय जांच भी हुई। लेकिन विजलेंस अधिकारी केडी दीवान जो खुद भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त होने के साथ जेल गए। उन्होंने सांठगांठ कर जांच दबवा दी।

फाइलें कर दी गईं गायब

जब तालपुरी घोटाले की आंच बढऩे लगी तो बाद में तत्कालीन मुख्य संपदा अधिकारी सीएस बाजवा की अध्यक्षता में भी एक जांच कमेटी गठित की गई। जिसकी रिपोर्ट भी बनी. लेकिन यही रिपोर्ट वाली फ ाइलें उपायुक्त आरके राठौर तक पहुंचने के बाद हाउसिंग बोर्ड दफ्तर से गायब हो गई. हेराफेरी के लिए फर्जी बिल और फ र्जी स्टॉक को हथियार बनाया गया था. काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा राजनीतिक चंदे और दो रसूखदार लोगों ने हड़प लिया. घोटाले की शेष रकम हाऊसिंग बोर्ड के अधिकारियों के पास चली गई. इस घोटाले के संदिग्ध आरोपी प्रमोशन पाकर एडिशनल कमिश्नर बन गए है. इस मामले में हैरान करने वाली बात यह है कि आरोपी अधिकारी अपने ही काले कारनामों की जांच कमेटी में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से शामिल रहते थे. जिसके कारण ना केवल जांच प्रभावित होती रही बल्कि मामला ही दबा दिया गया।

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