पुलिस ने पकड़ी नकली रेमडेसिविर बनाने वाली फैक्टरी
देहरादून। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नकली रेमडेसिविर बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए गिरोह के सरगना समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। यह गिरोह उत्तराखंड के हरिद्वार, रुड़की और कोटद्वार में अवैध फैक्टरियों में नकली रेमडेसिविर का उत्पादन करता है। पुलिस ने बताया कि यह लोग एक इंजेक्शन को 25 हजार रुपये में बेचते थे। पुलिस ने आरोपियों के पास से रेमडेसिविर के 196 नकली इंजेक्शन बरामद किए हैं। वहीं तीन हजार खाली वायल्स भी पुलिस को मिली है। आरोपियों ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वे अब तक कोरोना मरीजों को दो हजार से अधिक रेमडेसिविर के नकली इंजेक्शन बेच चुके हैं। पुलिस आरोपियों से पूछताछ में जुटी है।
अस्पतालों से कालाबाजारियों तक पहुंच रही रेमडेसिविर
राज्य में संचालित अधिकांश प्राइवेट हॉस्पिटल आईएएस, आईपीएस अफसरों के रिश्तेदारों के
रायपुर (जसेरि)। कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में इस्तेमाल की जा रही रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के लिए अस्पतालों की भूमिका की जांच की जानी चाहिए। चूंकि सरकार सीधे अस्पतालों को इंजेक्शन मुहैया करा रही है और दवा दुकानों में इसकी बिक्री पर रोक लगा दी गई है बावजूद अगर इसकी कालाबाजारी हो रही है और लोग बाहरी लोगों से 25-30 हजार में इंजेक्शन खरीदने मजबूर हैं, ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि आखिर अस्पताल और दवा दुकानों से बाहर महंगी कीमत पर इंजेक्शन बेचने वालों को यह उपलब्ध कहां से हो रही है। साफ है कि अस्पताल प्रबंधन या उसके कर्मचारियों के माध्यम से ही रेमडेसिविर की कालाबाजारी हो रही है। ऐसे में सरकार को एक स्पेशल सेल बनाकर इसकी जांच कराई जानी चाहिए ताकि इसके पीछे का सच लोगों के सामने आ सके।
बिक्री पर रोक से पहले नहीं थी शार्टेज : रेमडेसिविर की बिक्री पर रोक लगाने से पहले दवा दुकानों में इंजेक्शन की कमी नहीं थी और न ही लोगों को महंगे दामों पर खरीदने की मजबूरी थी। दवा कारोबारी जरूरत के अनुसार बाहर से मंगा कर भी 6-9 हजार तक में लोगों को इंजेक्शन उपलब्ध करा रहे थे। निजी अस्पताल वाले भी वितरकों से इंजेक्शन खरीद कर स्टाक कर रहे थे। लेकिन जैसे ही मरीजों की तादाद बढने के साथ इंजेक्शन की मांग बढ़ी अस्पताल वाले इससे मुनाफा कमाने लगे। मांग बढऩे और कालाबाजारी के बीच सरकार ने अस्पतालों को सीधे इंजेक्शन उपलब्ध कराने और बाजार में इसकी बिक्री पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया। इससे अस्पतालों को सीधे सरकार से इंजेक्शन मिलने लगे।
जो इंजेक्शन मरीज को नहीं लगे उसका क्या? : सरकार रेमडेसिविर अस्पतालों को सीधे उपलब्ध करा रही है। जरूरत मंद प्रत्येक मरीज के लिए 6 डोज के हिसाब से इंजेक्शन अस्पतालों को दी जा रही है। लेकिन अस्पताल में कितने मरीज को कितने डोज लगाए गए और कितने नहीं लगाए गए इसका रिकार्ड नहीं देखा जा रहा है। इससे बचे हुए डोज अस्पताल प्रवंधन या उसके कर्मचारी अपने लोगों के माध्यम से बाहर में लोगों को ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं। वहीं अस्पतालों और दुकानों में इंजेक्शन नहीं मिलने के चलते ही लोग बाहर भटक रहे हैं और कालाबाजारियों के संपर्क में आ रहे हैं और मजबूरी में ऊंची कीमत पर इंजेक्शन खरीद रहे हैं।
बार कोड भी नहीं कर रहे स्कैन : अस्पतालों को इंजेक्शन उपलब्ध कराने से पहले उसका बार कोड भी स्कैन नहीं किया जा रहा है जिससे इसकी कालाबाजारी में और आसानी हो रही है। अस्पतालों को उपलब्ध कराने से पहले बार कोड स्कैन कराने से अगर उस इंजेक्शन की काला बाजारी होती तो कम-से कम यह तो पता चलता कि उक्त इंजेक्शन किस अस्पताल को उपलब्ध कराया गया था. इससे यह भी साफ हो जाता कि जिस अस्पताल को यह उपलब्ध कराया वहां यह इंजेक्शन बाहर लाकर जरुरतमंद को महंगी कीमत पर बेची गई। इसके बाद संबंधित अस्पताल के खिलाफ जांच कर कार्रवाई की जा सकती है। अस्पताल में लगे सीसीटीवी के माध्यम से भी यह देखा जा सकता है कि किस मरीज को कितने रेमडेसिविर या अन्य इंजेक्शन लगाए गए।
मेडिकल दुकानों से विक्स गायब : राजधानी के हर मेडिकल स्टोर्स से विक्स वेपोरब के लिए अचानक होड़ मची हुई है। अचानक विक्स मार्केट से ही ईद का चाँद हो गया है। किसी भी बड़े मेडिकल स्टोर्स में विक्स वेपोरब नहीं मिल रहा है। और अगर कुछ जगहों में मिल भी रहा है तो 2 से 3 गुना ज्यादा दाम में मिल रहा है, एक विक्स 50 रूरु का 135 रुपए और 25 रूरु का 80 रूपये वही विक्स का सबसे छोटा डिब्बा जो 10 रुपए का हुआ करता था अब वो 30 रुपए हो गया है। अब मेडिकल सेंटरों में इस तरह के छोटे-मोटे दवाइयों से मुनाफाखोरी की जा रही है। जिस पर स्वास्थ्य अमला ध्यान भी नहीं दे रहा है। सर्दी-जुकाम या फिर सिरदर्द में विक्स वेपोरब का इस्तेमाल किया जाता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, चेहरे की झुर्रियों और दाग-धब्बों में भी यह उतना ही फायदेमंद होता है। अचानक इस तरह से छोटे-मोटे दवाइयों का गायब होना एक राजनीतिक साजिश भी हो सकती है जो छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही है।
सुप्राडीन मल्टी विटामिन भी बाजार से हुआ गायब
अब सुप्राडीन मल्टी विटामिन गोली जो कोरोना वायरस से लडऩे के लिए शरीर में ताकत बनाए रखता है ये मल्टी विटामिन भी मेडिकल बाजार से गायब हो गया है। एक तरह से देखा जाए तो साल 2020 में जब से कोरोना वायरस आया था तब से इस वायरस का कोई इलाज भी नहीं था उस वक़्त लोग इसी गोली को खाकर अपने शरीर में विटामिन की मात्रा को बढ़ाए रखते थे। लेकिन जैसे ही कोरोना की वैक्सीन आई वैसे ही इस सुप्राडीन मल्टी विटामिन की मांग भी बढने लगी। अब ये मल्टी विटामिन गोली मेडिकल मार्किट से पूरी तरह अंडरग्रॉउंड हो चुका है। अब तो कुछ बड़े मेडिकल स्टोर्स वाले भी ग्राहक को शॉर्टेज का बहाना बताकर महंगे दामों में इस दवाई का सौदाकर उसे बेच रहे है।
बड़ी साजिश: अस्पतालों, अधिकारियों, राजनीतिज्ञों की सांठगांठ? मसल्स पावर का कर रहे इस्तेमाल
रेमडेसिविर की कालाबाजारी के पीछे बड़ी साजिश का अंदेशा है। इसमें अस्पतालों के साथ विभागीय अधिकारी और राजनीतिज्ञों की भी भागीदारी हो सकती है। जो आपदा को अवसर बनाकर मुनाफा कमाने में लगे हैं और तकलीफजदा लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं। चर्चा है कि सरकार को बदनाम करने की नियत से एक लाबी पूर्ववर्ती सरकार में शामिल रहे एक बड़े रूतबे वाले से मिलकर यह खेल कर रही है जिसे एक बड़े अस्पताल के जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। ताकि सरकार की छबि खराब हो।
कारोबारी पैदा कर रहे दवाओं का कृत्रिम अभाव
रेमडेसिविर इंजेक्शन के बाद कोरोना मरीज़ों के लिए जरुरी कई दवाइयों का शॉर्टेज भी अब बाजार में होने लगी है। दवा कारोबारी इसका कृत्रिम अभाव पैदा कर रहे है। जिससे दवा दुकानों में आम लोगों को ये दवाइयां नहीं मिल रही है जिनमे विटामिन सी के तौर पर सुप्राडीन मल्टी विटामिन एक सस्ती दवा है जो मिल रही थी अब वो बाजार से गायब हो गई है। इसी तरह विक्स वेपोरब भी दुकानों में नहीं मिल रहा है। आपदा को अवसर बनाकर मुनाफा कमाने के लिए कुछ लोग इस तरह की साजिश रच रहे है और सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।