छत्तीसगढ़

हुड़दंग का पर्व नहीं है होली

Nilmani Pal
6 March 2023 5:31 AM GMT
हुड़दंग का पर्व नहीं है होली
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होली पर्व विशेष आलेख

हमारे देश के किसी भी धर्म के पर्व-त्यौहार हमको हमारी रीति-रिवाज, परम्परा, संस्कार और संस्कृति का ज्ञान कराते हैं। जन-मन के हदृय में उमंग, उल्लास और खुशियों की नई ऊर्जा का संचार करते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है, होली, जो कि फागुन माह का सिरमौर पर्व है। फागुन माह के इस पर्व का नाम आते ही मन मस्तिष्क में राग, रंग, मौज-मस्ती, हंसी-ठिठोली की मनमोहक तस्वीर उभर आती है।वर्ष के पूरे ग्यारह माह की भागम-भाग और दौड़-धूप भरी जिंदगी के बाद माह फागुन का पर्व आनंद सागर में हिलोरे लेने का सुख देता है।

सच्चे अर्थों में देखा जाए तो यह पर्व कम खर्चों में ज्यादा सुख देने वाला त्यौहार है। इस दिन लाल, हरा, पीला, गुलाल का एक छोटा सा टीका हर गरीब-अमीर, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच के भेदभाव को भूला देने की ताकत से लबरेज होता है। मन में पड़ी गांठें को खोलकर आपसी मनमुटाव को भूला देने वाला यह त्यौहार है।

होली की ऐसी सुंदर परम्परा को बनाकर रखना चाहिये।इस पर्व पर हरे पेड़-पौधों को काटने के बजाय इनकी सुरक्षा होनी चाहिये। इसके विपरीत अब होली त्यौहार की आड़ में जो सामाजिक एवं पर्यावरण प्रदूषण का खेल चल रहा है वह इस सुंदर त्यौहार को कलंकित करता है। अतः इस पर्व पर आगे आकर बहके हुये दिषाहीन लोगों को संदेश देना चाहिये कि ‘‘हरे पेड़ कटने न दे, जलस्तर घटने न दे, भाईचारे को जात-धरम में बंटने न दे, होली पर यहीं पैगाम है, हिन्दू को राम राम, मुस्लिम भाईयों को सलाम है।‘‘

होली की सुंदर पकृति को विकृति में बदलते लोग आजकल रंग गुलाल को छोड़ कर लोग डामर, कीचड़ को एक-दूसरे के ऊपर उछालते, फूहड़ नाच गाना करते दिखाई देते है। यही वजह है कि होली पर्व पर गांव-षहर में होली खेलने वालों से कहीं ज्यादा पुलिस की टुकड़ी डंडे और राइफल, अश्रु गोलें से लैस गश्त करती हुई दिखाई देती है।

होली त्योैहार में मांस-मदिरा का सेवन करके मार-धाड़, चोरी-चकारी और असभ्य हरकतों को प्रदर्शित करने वालों लोगों को सक्ती राज के राजपुरोहित स्वर्गीय शिवकुमार चौबे जी राक्षस कुल के तथा सौम्यता पूर्वक फाग गाते रंग-गुलाल खेलते लोगों को देव कुल के इंसान कहते थे। होली पर हुड़दंग करने वालों को सुधर जाने का संदेश देते हुये वे एक पौराणिक कथा बताते थे कि - हिरण्यकश्यप नाम का एक भारी बलशाली असुर राजा था।उसके राज में देवी-देवताओं का नाम लेने की कल्पना मात्र से प्रजा थर थर कांपती थी, इसके विपरीत हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद हमेशा प्रभु स्मरण में लीन रहता था।प्रहलाद के भक्ति भाव को खतम करने के प्रयास में जुटा रहता था।

एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहिन होलिका की गोद में प्रहलाद को बैठा कर बड़ी-बड़ी लकड़ियों से उसे घेरकर आग लगाने का आदेश दिया। दरअसल होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था। यही वजह से हिरण्यकश्यप के मन में विचार आया कि प्रहलाद जल के खाक हो जायेगा, इस घटना को प्रत्यक्ष देखने बड़े-बड़े राक्षसों के साथ ही बड़ी संख्या में आम प्रजा की भीड़ वहां जुट गई। इन सबके सामने लकड़ियों में आग लगा दी गई। धू-धू करती लकड़ियों के संग होलिका भी जल कर राख हो गई पर प्रहलाद प्रभु लीला में लीन भजन गाते, हंसते जीवित मिला ।

इसे देख कर हिरण्यकश्यप के साथ ही साथ वहां उपस्थित राक्षस नशापान करके प्रजाजन को मारने-पीटने लगे, जबकि उनके विपरीत आम प्रजा भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी मनाते रंग-गुलाल में लीन प्रभु भजन करते नाचने, गाने में मस्त थे।

इस पौराणिक कथा से यह बात स्पष्ट उजागर हो जाती है कि होली के दिन हुड़दंग करने वाले लोग राक्षस कुल के होते हैं तथा नशापान से दूर फाग गाते आपस में गले मिलते लोग भगवान कुल के होते हैं।यह पर्व इस बात को भी व्यक्त करता है कि परहित और प्रभु सेवा मे रहने वाले लोग प्रहलाद की तरह अजर-अमर होते हैं तथा बैर भाव रखने वाले अत्याचारियो का विनाश होलिका की तरह हो जाता है।

*विजय मिश्रा 'अमित'*

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