छत्तीसगढ़

धार्मिक स्थलों के आसपास झुंड बनाकर खुले आम बेचते हैं गांजा

Admin2
17 Jan 2021 6:12 AM GMT
धार्मिक स्थलों के आसपास झुंड बनाकर खुले आम बेचते हैं गांजा
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चोरी, पॉकेटमारी करने वालों के निशाने पर दर्शनार्थी

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी के शराब दुकानों और मंदिरों के आसपास गांजा, चरस, अफीम, कोकीन बेचने के लिए अपराधियों ने नया ठिकाना ढूंढ लिया है। भिखारियों की तरह फटेहाल, तंगहाल वेशभूषा बनाकर अब पॉकेटमार और ड्रग सप्लार बैठने लगे है। बेरोजगारी की दंश झेल रहे लोगों के पास एक ही रास्ता है लोगों के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगना। असहाय, मजबूर, जो चलने फिरने के लिए मोहताज हो, जिसके घर का ठिकाना न हो ऐसे जरुरतमंद लोग भीख मांगे तो वो समझ आता है मगर भिखारियों की आड़ में जेबकटी और उठाईगिरी तो अब मामूली बात हो गई है, धार्मिक स्थलों को सुरक्षित ठिकाना बनाकर ड्रग सप्लायर और पैडलरों ने अड्डा बना लिया है। यहां बड़ी आसानी से माल सप्लाई कर नसे के सौदागर मालामाल हो रहे है। पॉकेटमार तो वैसे भी सार्वजनिक स्थलों के साथ शराब दुकान और धार्मिक स्थलों में अपने कारनामे को अंजाम देने से नहीं चूकते है। भिखारी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बनते है। चूंकि भिखारियों के पास खाने को रोटी नहीं होती सिर छुपाने के लिए छत नहीं होती तो ही कोई इंसान दूसरे लोगों से मांगकर खाता है लेकिन उसी बात का एक गलत फायदा चोर, पॉकेटमार जैसे लोग उठाते है। मदिरों के बाहर बैठे भिखारियों में चोर भी शामिल रहते है। किसी भी दशनार्थी का मोबाइल, पर्स, या जेब काटना जैसी वरदातों को अंजाम देते है और मौके से फरार हो जाते है।

भिखारी की भेष में चोर और पॉकेटमार

रायपुर शहर में काफी पहले ये बात सामने आई थी कि भिखारी के भेष बनाकर चोर भी मंदिरों के बाहर बैठे रहते है। इनका आतंक इतना ज्यादा फैल चुका है कि आम आदमी परेशान हो गया। भीख मांगकर लोगों से ठगी करने में झूठे भिखारियों ने महारत हासिल की है। झूठे भिखारी और चोर लोग सड़क पर ज्यादातर पुरुषों को रोकते है और उनसे 50 रुपये या और ज्यादा मांगते है। लोगों को यह कहते है कि वह इसलिए भीख मांगते है क्योंकि वे बहुत मुसीबत में हैं और अपने राज्य में भूखे मरने के कगार पर हैं।

यह कोई एक जगह की घटना नहीं बल्कि पूरे शहर की बात है। शहर में भी पुरुषों की जगह ऐसी खतरनाक लड़कियां बकायदा गैंग बनाकर अपने पॉकेटमारी व्यवसाय को अंजाम देती हैं। बड़े शातिराना अंदाज में खुद को दीन-हीन साबित कर पुरुषों की जेबों से सैकड़ों निकालकर रफूचक्कर हो जाती हैं।

भीख मांगने के लिए ढोंग

शहर में जहां देखो वहां एक चीज बड़ी ही कॉमन और चर्चित नजर आती है वो है हर गली, नुक्कड़, चौक-चौराहों, रेड लाइट्स पर भिखारियों की अच्छी खासी तादाद। मंगलवार का दिन हो तो हनुमान मन्दिर, गुरुवार हो तो साईं मन्दिर, शुक्रवार हो तो मस्जिद और शनिवार को शनि मन्दिर के आस-पास भीख मांगने वालों से मुलाकात हो ही जाती है। कहीं शारीरिक विकलांगता भीख मांगने पर मजबूर करती है तो कहीं अच्छा भला आदमी भीख के लिए खुद के विकलांग होने का भी ढोंग रचता है। यह बात साबित करने की जरूरत नहीं, बल्कि अक्सर आते-जाते कोई ऐसा भिखारी दिख जाएगा जो शरीर से हस्ट-पुष्ट होगा फिर भी शारीरिक विकलांगता का ऐसा ढोंग रचता है जैसे वह अकाल दुर्घटना का शिकार हुआ हो। ऐसे ही लोग आम जनता की जेब काट लेते है।

भीख मांगने का काला कारोबार चल रहा शहर में

लोगों ने अक्सर भिखारियों को सड़कों पर, धार्मिक स्थलों के आसपास व अन्य स्थानों पर भीख मांगते देखा होगा। हो सकता है कि इसमें से कुछ ने उन्हें झिड़क देते है। और कुछ ने उन पर दया दिखाते हुए भीख देते है। लेकिन, क्या लोगों को ये पता है कि इन भिखारियों के पीछे किस तरह का संगठित गिरोह काम कर रहा है। ये लोग न सिर्फ इसे कारोबार की तरह चला रहे है, बल्कि कई बड़े लोग भी इसमें शामिल हैं। जिसकी वजह से चोरी पॉकेटमारी जैसी वारदातें बढ़ती जा रही है।

रेलवे स्टेशन में भी चोर भिखारियों का अड्डा

रायपुर के रेल्वे स्टेशन की सुंदरता निखारने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं। इन सबके बीच स्टेशन पर भिखारियों की उपस्थिति सारी कोशिशों पर बदनुमा दाग से कम नहीं। हालांकि रेल प्रबंधन ने भिखारियों एवं मानसिक दिव्यांगों के स्टेशन में प्रवेश पर रोक लगाया गया है। लेकिन आए दिन ऐसे लोगों को स्टेशन परिसर, आरक्षित टिकट काउंटर, जनरल टिकट काउंटर, प्लेटफार्म पर देखा जा सकता है। कभी-कभार तो इनके कारण यात्रियों को काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ जाता है। भिखारी के वेश में चोर पलक झपकते ही यात्रियों का कीमती सामान चुरा लेते हैं। वहीं यात्रा के दौरान नाश्ता पानी या खाना खाते समय भिखारियों के अचानक सामने आ जाने से भी लोगों को काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। कभी कभार तो ये भिखारी खाना या नाश्ता के बजाय पैसों की मांग को लेकर जिद ठान लेते हैं। भगाने पर भी नहीं जाते। नहीं देने पर बद्दुआ देते आगे बढ़ जाते है। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि हड़बड़ी में ट्रेन पकडऩे जा रहे या ट्रेन से उतर कर बाहर आ रहे यात्री का ये भिखारी एक छोर से अंतिम छोर तक पीछा करते रहते हैं। फटकार लगाने पर भी पीछा नहीं छोड़ते। कई बार तो स्टेशन के बाहर और प्लेटफार्म में भिखारी के वेश में चोर भी यात्रियों को अपना शिकार बनाने से नहीं चूकते। इसी को ध्यान में रखते हुए अक्सर ही स्टेशन परिसर व प्लेटफार्म से भिखारियों हटाने की मांग होती आयी है। स्टेशन पर बच्चे, जवान तथा वृद्ध भिखारी के वेश में भीख मांग कर अपना गुजर बसर करते हैं।

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