छत्तीसगढ़

लीज पर मिली शासकीय भूमि को करोड़ों में बेचा

Nilmani Pal
1 July 2022 6:57 AM GMT
लीज पर मिली शासकीय भूमि को करोड़ों में बेचा
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DKS हॉस्पिटल शास्त्री चौक के सामने की बेशकीमती जमीन का।

एडवोकेट आशीष देव सोनी की याचिका पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर संबंधित पक्ष को नोटिस दी

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी में मुख्य मार्गों की जमीनों की खरीदी को लेकर कोई प्लानिंग करें या न करें बिल्डरों ने इस पर बहुत पहले ही प्लानिंग कर मुख्य मार्गो की ऐसी जमीन और उससे लगे जमीन तथा उसके पीछे की जमीन को खरीदने में एड़ी चोटी एक कर दी थी। इसके पीछे बिल्डरों का एक ही स्वार्थ था कि फ्रंट की जमीन कैसे भी करके खरीद लो बैक वाली जमीन तो मालिक खुद-ब-खुद बेच देगा और वही हो रहा है। नथ्थानी बिल्डर द्वारा राजधानी के डीकेएस अस्पताल के सामने शास्त्री चौक पर शासन द्वारा लीज़ पर मिले भूमि को खुद की बताकर करोडो में बेचने के मामले में एडवोकेट आशीष देव सोनी की जनहित याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा संज्ञान में लेकर सम्बंधित पक्ष को नोटिस जारी किया है। गौरतलब है कि राजधानी के ह्रदय स्थल शास्त्री चौक की बेशकीमती खली पड़ी जमीन पर बिल्डरों की नजऱ तो लगी हुई थी और जैसे तैसे लोगों को गुमराह कर लीज़ की जमींन को खुद की बताकर गुपचुप तरीके से बेच भी दी। मजे की बात ये भी कही कि उक्त चौक पर रोजाना बड़े से बड़े नेताओ और कलेक्टर सहित नगर निगम के अधिकारियो का आनाजाना लगा रहता है उसके बावजूद किसी का ध्यान उस ओर नहीं गया। वहीँ किसी गरीब आदमी जो अपने गाढ़े पसीने की कमाई से अगर छोटा मोटा निर्माण कार्य शुरू कर दे तो तुरंत निगम का अमला सक्रीय होकर उसे तोड़ देता है। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हो रहे निर्माण कार्यो की ओर किसी का ध्यान नहीं जाना संदेह को जन्म देता है। ऐसा लगता है कि शहर में अघोषित रूप से तथाकथित बिल्डर माफियाओं की सरकार है। कोई भी उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। बिल्डरों ने राजधानी के नामचीन बिल्डर शास्त्री चौक की बेशकीमती जमीन को बहुत पहले खरीदने के लिए जोड़-तोड़ कर लिया था। लीज पर शासन से कौडिय़ों के दाम मिली जमीन को करोड़ो रुपए का सौदा कर बेचने के संदर्भ में प्रकरण रायपुर शहर के मुख्य स्थान शस्त्री चौंक डी.के.एस. अस्पताल के सामने का है । शासन ने वर्ष 1996 में 11 हजार 700वर्ग फिट भूमि 169 रुपए सालाना लीज पर कृष्ण कुमार नत्थानी नामक व्यक्ति को प्रदन की थी जिसे लीजधारी कृष्ण कुमार नत्थानी द्वारा वर्ष 2018 में उक्त भूमि के टुकड़े-टुकड़े में बिक्री करना शुरू कर दिया। इस बेशकीमती भूमि की रजिस्ट्री जादवानी परिवार के 5 लोगों को (खसरा रायपुर निगम के अंतर्गत वार्ड क्र.36 हवलदार अब्दुल हमीद वार्ड मुख्य मार्ग पर स्थित नजूल ब्लाक नंबर10(दस) प्लाट नंबर 2/5,17/5 दो बटे पांच, सत्रह बटे पांच) की जा चुकी है। पंजीयन कार्यालय द्वारा मिली भगत करके नजूल भूमि की रजिस्ट्री कर दी गई है। लीज धारक ने व्यावसायिक उपयोग के लिए मिली जमीन को कुछ लोगों को नामिनल किराए में भी दी थी। ज्ञात हो की उक्त भूमि की लीज को 5 फरवरी 1996 को फिर नवीनीकरण किया गया। वार्षिक किराया 169 रुपए मात्र में मिली थी, इसका भू भाटक भी हर साल जमा करना था। पूर्व कलेक्टर ओ.पी चौधरी ने भू-भाटक का पूर्ननिर्धारण कर राशी को 500 गुना तक बढा दिया था। पिछले 20 साल से लीजधारी ने किराया ही जमा नहीं किया था। यह राशि ब्याज सहित करीब लाखों रुपए पहुंच गई। लेकिन प्रशासन ने न तो भू-भाटक के लिए नोटिस जारी किया है और ना ही आबंटन निरस्त किया रजिस्ट्रार ने बिना निरीक्षण के वार्ड क्रमांक 36 मुख्य मांर्ग पर स्थित भूमि का ब्लाक नंबर 10 प्लाट नंबर 2/3 का भाग का रजिस्ट्री कर दी है। इसके समेत अन्य 05 लागों को जमीन की बिक्री की गई. यहाँ बने व्यावसायिक कांप्लेक्स के पीछे खाली पड़ी जमीन की भी रजिस्ट्री कर दी गई है। जिसमें रजिस्ट्री 10 हजार रुपए वर्गफिट में की गई। जबकि कलेक्टर रेट निजीभूमि के लिए 16 हजार रुपए तय किया गया है। रजिस्ट्री में गड़बड़ी करते हुए नजूल नक्शा लगाया है। नजूल नक्शा में व्यवसायिक कांप्लेक्स और विक्री की गई भूमि को निजी हक की बताई गई है। वर्तमान में युद्धस्तर पर भूमि पर बड़ा निर्माण कार्य किया जा रहा है। इस संबंध में एडवोकेट आशीष देव सोनी के द्वारा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी जिस जिस की सुनवाई दिनांक 29/06/2022 को माननीय मुख्य न्यायाधीश के द्वारा की गई थी इस संबंध में संज्ञान लेते हुवे छत्तीसगढ़ शासन , जिलाधीश , नगर निगम , नजूल अधिकारी, राजस्व अधिकारी, पंजीयन अधिकारी, कृष्ण कुमार नत्थानी, सुन्दर दास जादवानी , किशोर जादवानी, विजय जादवानी, संजय जादवानी, नरेश जादवानी को नोटिश जारी किया है।

बिल्डरों ने की सांठगाठ

आबादी बढऩे और शहर का विकास होने के साथ यह उनका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बन जाएगा। यह भी देखा गया है कि जमीन सरकारी हो या निजी बिल्डरों ने राज्य बनते ही धड़ाधड़ जमीनों की खरीदी में निवेश किया। आज राजधानी विकास मोड पर है, चारों तरफ मल्टी स्टोरी कामर्शियल काम्प्लेक्स के साथ बड़े बड़े मॉल तैयार हो रहे है। बिल्डरों ने सांठगांठ और कूटरचित दस्तावेजों से सरकारी जमीनों को लीज़ पर ले लिया था। बिल्डरों ने सारे वैध-अवैध दस्तावेजों को अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर एनओसी तक ले ली है। ऐसे कई मामले भी सामने आये हैं जिसमे रजिस्ट्री भी रिहायशी मकान बनाने के लिए की है, और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स खड़ा कर दिया है। राजधानी में धड़ाधड़ कामर्शियल काम्प्लेक्स बनते जा रहे है।

मसल पावर का भी इस्तेमाल कर रहे बिल्डर

बिल्डरों ने जमीं हथियाने मसल्स पावर का भी उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया है। सीधी ऊँगली से घी नहीं निकले पर ऊँगली टेढ़ी वाली कहावत को चरितार्थ करने लगे हैं। बिल्डरों ने सोची समझी साजिश के तहत आत से 20 साल पहले मुख्य मार्गो की जमीनों को खरीदी कर उसे अपने एम्पायर में जोड़ लिया। जो जमीन बेचने में आनाकानी करते थे उनके पीछे दलालों को लगा दिया और सौदा कर लिया। इस खरादी में बिल्डरों ने एक खेल यह खेला कि मार्के की जमीन दलालों के माध्यम से फ्रंट की जितनी भी जमीन थी और उससे लगी जमीन का भाव दबाव बनाकर गिराकर खरीदी की। एक तरफ जिसकी जमीन थी, उस पर दो जमीनों के बीच फंसी जमीन का वास्ता देकर औने-पौने में सौदा किया। फिर उस जमीन को फ्री छोड़ दिया। मुख्य मार्ग से लगे जमीन को छोड़कर अंदर की जमीन का लेआउट पास कराया और दोनों जगह कंस्ट्रक्शन काम शुरु करवा दिया।

निगम और राजस्व अधिकारियो की मिली भगत

निगम और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की मिली भगत कुछ दिनों बाद फिर बिल्डर निगम और टाउनएंड कंट्री प्लानिंग की मिली लेआउट पास कराया और उसमें कामर्शियल बिल्डिंग तान कर सरकार का करोड़ों का राजस्व नुकसान किया। बिना इनके मिलीभगत के काम शरू कैसे हो सकता है। इससे जाहिर होता है कि इनकी मिली भगत अवश्य है।

लेंड यूज़ का दुरूपयोग

राजधानी सहित प्रदेश में अधिकतर उद्योग मालिकों में कुछ लोगों का कंस्ट्रक्शन का काम भी साइड बिजनेस के रूप में कर रहे है। जो अपने उद्योग के लिए रियायती दर पर जमीन खरीदी उस पर बहुमंजिला बिल्डिंग बना कर बेच रहे है। इस तरह सरकार ने जिस मद में जमीन दी उसका खुलेआम उल्लंघन कर रहे है। उद्योगपतियों ने सरकार को दोहरा चूना लगाने के खेल चल रहा है। 10 साल पहले छूट में जमीन ली, न उद्योग लगाया न स्टांप फीस अदा की उद्योग खुलने से रोजगार बढ़ेंगे इसलिए 90 कंपनियों को स्टांप शुल्क बाद में चुकाने की दी गई थी छूट लेकिन 22 ने केवल घेरे बंदी कर जमीन को खाली छोड़ दिया। उद्योग खुलने से रोजगार बढ़ेंगे इसलिए 90 कंपनियों को स्टांप शुल्क बाद में चुकाने की दी गई थी छूट लेकिन 22 ने केवल घेरे बंदी कर जमीन को खाली छोड़ दिया। रायपुर में 10 साल पहले सरकारी राहत लेकर नए उद्योग के लिए जमीन लेने वाले 22 कंपनियों की रजिस्ट्री रद्द करने की तैयारी है। इन कंपनियों ने स्टांप शुल्क तुरंत अदा न करने की राहत लेकर जमीन ली थी। कंपनियों को पांच साल के भीतर उद्योग स्थापित करने के साथ स्टांप शुल्क अदा करना था। मियाद की अवधि गुजरे भी पांच साल हो गए लेकिन कंपनी प्रबंधकों ने न तो उद्योग स्थापित किया और न ही स्टांप ड्यूटी अदा की है। ऐसे कंपनियों की लिस्ट बनाकर उन्हें नोटिस जारी कर दिया गया है। जांच में ये भी खुलासा हुआ है कि 50 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने उद्योग तो लगाया लेकिन स्टांप शुल्क की अदायगी नहीं की। अब इन सभी कंपनियों पर सख्ती की तैयारी है। जिला रजिस्ट्री विभाग ने इन सभी उद्योगों की पहचान कर उद्योगपतियों को दो टूक कहा जा रहा है कि वे जल्द से जल्द स्टांप शुल्क की अदायगी करें नहीं तो उनकी रजिस्ट्री शून्य कर दी जाएगी।


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