रायपुर। आचार्यश्री नानेश स्मृति समता मुकीम भवन में विराजे आचार्यश्री रामलाल म.सा. के आज्ञानुवर्ती शासनदीपक संत हेमंतमुनि और सौरभमुनि ने छोटापारा के सुराना भवन में धर्मसभा को संबोधित किया। इस दौरान हेमंतमुनि ने भगवान और संतों के उपदेश पर चर्चा की। मुनिश्री ने कहा, भगवान से पूछा गया, केवल ज्ञान के बाद उपदेश की जरूरत क्यों पड़ी। क्योंकि संत कर्मों की निर्जरा के लिए उपदेश देते हैं। केवल ज्ञान के बाद भगवान जीवों की रक्षा के लिए उपदेश देते हैं। मुनिश्री ने कहा, आज रक्षा बंधन का पर्व है। यह लौकिक और लोकोत्तर दोनों है। इस पर्व को यदि मनोरंजन के लिए मनाया जा रहा है तो लौकिक और यदि आत्मरंजन के लिए मनाया जा रहा है तो लोकोत्तर। रक्षा सूत्र बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं और साधु 6 प्रकार के जीवों की रक्षा का सूत्र बांधते हैं।
मुनिश्री ने बताया, भारत में हर पर्व के पीछे भावनाएं जुड़ी हुई है, लेकिन 12 महिने पर्व मनाने वाला भारत आज तनाव में है। भारत में जनमानस को मुख्यत: चार वर्णों में बांटा गया है। क्षत्रिय, ब्राम्हण, वैश्य और शुद्र। क्षत्रिय रक्षाबंधन पर अपने तलवार पर रक्षासूत्र बांधते हैं और समाज की रक्षा का संकल्प लेते हैं। ब्राम्हण अपने यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हैं और उन्हें सही धर्म देने का संकल्प लेते हैं। वैश्य अपने कलम सहित उपकरणों को रक्षासूत्र बांधते हैं। वैश्य किसी से बेईमानी नहीं करने का संकल्प लेते हैं। शुद्र निष्काम भाव से लोगों की सेवा करने का संकल्प लेता है। रक्षाबंधन पर्व का मूल संकल्प रक्षा करने का है। आज लोगों के मन से पवित्र भावनाएं खत्म होने लगी है। राखी के भीतर की सद्भावनाएं जन्मों के लिए माला-माल कर देगी, लेकिन लोगों की भावना सिर्फ राखी की कीमत तक सीमित हो गई है।
मुनिश्री ने बताया, ज्ञानी की परिभाषा ज्ञान से नहीं आचरण से होती है। तुम किसी का सम्मान नहीं कर सकते तो अपमान भी मत करो। द्वेषी व्यक्ति को उपदेश देने क जरूरत नहीं है। जिन मुनि की सबसे बड़ी विशेषता यही है वह देखता सब कुछ है, लेकिन बोलता कुछ नहीं। वचन की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। संघ के नवीन बरलोटा ने बताया, रविवार को बबीता सेठिया ने 18, रेखा आछा ने 15, आशीष चोपड़ा ने 9, दुर्गेश नाहटा ने 6 और संघ के महामंत्री संतोष खटोर ने छठवें तेले के व्रत का संकल्प ग्रहण किया।