छत्तीसगढ़ की जीवनदायी महानदीऔर जोंक नदी संगम के निकट स्थित ग्राम गिरौदपुरी से कुछ ही दूरी पर स्थित पहाड़ी पर उगे औंरा धौंरा बृक्ष के नीचे उन्होंने तप किया था।इस पवित्र स्थल को गुरु की तपोभूमि के नाम से प्रसिद्धि मिली। यहां वर्ष भर भक्तजनों पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक तपोभूमि में विशाल मेला भरता है।सत्य,अहिंसा का प्रतीक श्वेत वस्त्र धारण करके लाखों की संख्या में गुरूभक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
गुरु घासीदास बाबा की गद्दी के निकट स्थित पहाड़ी से सटा हुआ जल से भरा 'चरण कुण्ड' हैं। जनश्रुति है कि सतनाम ज्ञान प्राप्ति उपरांत घासीदास जी ने इस कुण्ड में चरण धोए थे।इसी के करीब'अमृतकुण्ड' है। जंगली जीवों की प्यास बुझाने, जीवनरक्षा हेतु इस कुण्ड को अपनी चमत्कारी शक्ति से बाबा ने प्रकट किया था। आगन्तुक भक्तजन विविध व्याधियों-कष्टों से छुटकारा पाने इन कुण्डों का जल ग्रहण करते हैं।
तपोभूमि से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर एक विशाल चट्टान है।जिसे छाता पहाड़ के नाम से जाना जाता है।इस चट्टान पर भी बाबा ने समाधि लगाई थी।इसके निकट पांच कुण्ड बने हुए हैं।
गुरु घासीदास जी की जीवन संगिनी का नाम सफुरा था।उन्ही के नाम से गिरौदपुरी में सफुरा मठ निर्मित है।ऐसी किंवदंती है कि बड़े बेटे अमरदास के जंगल में खो जाने से आहत माता सफुरा ने मौन समाधि ले ली थी।तब अज्ञानतावश ग्रामीणजनों ने उन्हें मृत समझकर बाबा की अनुपस्थिति में दफना दिया था। माता सफूरा की समाधि की पूर्णता उपरांत बाबा ने उन्हें जीवित कर दिया था।इसी घटना की स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने सफुरा मठ बना हुआ है।सफुरा माता को जीवित करने के पूर्व घासीदास बाबा ने गाय की एक मृत बछिया को जीवित किया था।उस स्थान पर आज भी बछिया जीवनदान स्मारक बना हुआ है,जो कि भक्तजनों की श्रद्धा का केंद्र है।
सतनाम धर्म स्थली गिरौदपुरी में कुतुब मीनार से सात मीटर अधिक ऊंचे जैतखम्भ
(77मीटर ऊंचा)का निर्माण किया गया है।जिसकी लागत 52 करोड़ रुपए से अधिक है। इंजीनियरिंग विधा का करिश्मा जैतखंभ को 2015 में लोकार्पित किया गया था। प्राकृतिक आपदाओं से बचाने अत्याधुनिक तकनीकी का उपयोग इसमें किया गया है।दुनिया के सबसे ऊंचे जैत खम्भ का वास्तुशिल्प इतना मनमोहक है कि दर्शनार्थियों की आंखें वहां ठहर सी जाती है।सुरक्षा की दृष्टि से कोरोना काल से इसके भीतर-ऊपर जाना फिलहाल जनसमुदाय के लिए स्थगित है।
जैतखंभ की छत पर जाने के लिए जयपुर के जंतर मंतर भवन की तरह दो छोर से सीढ़ियां बनाई गई हैं।दोनों ओर बनी चार -चार सौ से ज्यादा सीढियों की चढ़ाई चढ़ते वक्त भक्तजनों को रोमांचक अनुभूति होती है। उल्लेखनीय है कि पूर्णिमा की रात जैतखंभ की खूबसूरती और भी अधिक बढ़ जाती है। जैतखंभ को सतनाम पंथ के लोग सत्य के प्रति अटूट आस्था और सतनाम सम्रदाय की विजय कीर्ति का द्योतक मानते हैं।
गिरौदपुरी की तरह ही छत्तीसगढ़ के सतनाम सम्रदाय के लोगों का प्रमुख तीर्थ स्थल मुंगेली जिले काअमर टापू है।यह मुंगेली -पंडरिया मार्ग पर मोतिमपुर ग्राम में स्थित है। यहां पर भुरकुंड पहाड़ से उद्गमित आगर नामक नदी बहती है।इसी नदी पर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण अमर टापू निर्मित है।संत शिरोमणि गुरु घासीदास के बड़े पुत्र बाबा अमरदास ने इसी टापु में रहते हुए सतनाम धर्म का संदेश जनमन तक प्रचारित किया था।उनके नाम पर ही इस टापू को अमर टापू के नाम से प्रसिद्ध मिली।घासीदास बाबा की जयंती पर यहां बड़ा गुरू पर्व मेला लगता है।
छत्तीसगढ़ के ऐसे अनेक स्थल धर्म और पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पृथक राज्य बनने के उपरांत यहां के धार्मिक और पर्यटक स्थलों को देश दुनिया में अभूतपूर्व पहचान मिली है।बाहरी सैलानियों की आवाजाही में उत्साह जनक बृद्धि दर्ज की गई है। बाहरी पर्यटकों की बढ़ती संख्या के बीच यहां के रहवासियों को भीअपने राज्य भ्रमण को प्राथमिकता देना चाहिए।तो चलिए गिरौदपुरी-अमरटापू के साथ छत्तीसगढ़ दर्शन का शुभारंभ करते हुए प्रसारित करें यह संदेश -----पहले घर के आंगन में लगे तुलसी की पूजा हो बाद में दूरदराज़ के बरगद की पूजा हो।
विजय मिश्रा 'अमित'