छत्तीसगढ़

आदिवासी लोक कला अकादमी की घड़वा कला कार्यशाला शुरू

Nilmani Pal
11 Sep 2023 12:26 PM GMT
आदिवासी लोक कला अकादमी की घड़वा कला कार्यशाला शुरू
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रायपुर। आदिवासी लोक कला अकादमी की ओर से दस दिवसीय घड़वा कला कार्यशाला की शुरुआत यहां महंत घासीदास संग्रहालय परिसर रायपुर में सोमवार से हुई। बस्तर अंचल के विभिन्न जिलों से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला के माध्यम से नाम कमा रहे कई जाने-माने शिल्पकार यहां घड़वा कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। लोग जहां अपनी आंखों के सामने घड़वा शिल्प (बेल मेटल) को ढलते हुए देख रहे हैं वहीं इन शिल्प को खरीदने में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आदिवासी लोक कला अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने बताया कि 21 सितंबर तक रोजाना सुबह 10:30 से शाम 5:30 बजे तक कार्यशाला जारी रहेगी। लॉस्ट-वैक्स पद्धति से धातु ढलाई द्वारा खोखली एवं ठोस मूर्तियां बनाने की कला की इस कार्यशाला में शामिल होने आए शिल्पकारों ने अपनी कला के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

सब्सिडी मिले सरकार से-बनूराम

बरकई निवासी बनूराम बैद छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्य सरकारों से अपनी कला के लिए सम्मानित हो चुके हैं। वहीं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान मिल चुका है। बचपन से घड़वा कला के लिए समर्पित बनूराम बताते हैं कि उन्होंने पिता से यह कला सीखी और अब तक छत्तीसगढ़ के साथ-साथ मध्यप्रदेश , केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी शिल्पकला से लोगों को रूबरू करा चुके हैं। बनूराम बताते हैं कि घड़वा शिल्प के लिए पीतल, मोम, कोयला व दूसरी अन्य सामग्रियां दिनों दिन महंगी होते जा रही है। इसका असर कला पर भी पड़ा है। बनूराम का कहना है कि शासन को घड़वा शिल्प के संरक्षण के लिए कच्चा माल खरीदने में सब्सिडी देनी चाहिए।

देव मूर्तियों से अब शो पीस तक फैली है कला-बिसराम

बरकई के बिसराम नाग बताते हैं कि प्रख्यात शिल्पी स्व. जयदेव बघेल के प्रोत्साहन के चलते घड़वा शिल्प को नया आयाम दे पाए। बिसराम ने बताया कि उनके पिता और दादा के दौर में आम तौर पर देवी-देवताओं की मूर्तियां ही बनाई जाती थी। तब इस कला की पहुंच स्थानीय बाजार और मंड़ई तक ही थी। लेकिन बाद के दौर में यह कला बस्तर से बाहर निकली और अब तो घड़वा कला के शिल्पी जरूरत के तमाम साजो-सामान और शो पीस बना रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी शिल्पकला का प्रदर्शन कर चुके बिसराम ने बताया कि आगे उनके परिवार में नई पीढ़ी भी घड़वा शिल्प को अपना रही है।

दुनिया करती है घड़वा शिल्प की कद्र-फूल सिंह

कोंडागांव के फूलसिंह बेसरा ने अपनी घड़वा शिल्पकला से दुनिया को रूबरू कराया है। फूलसिंह बताते हैं कि विभिन्न राज्यों में वह अपनी शिल्पकला का प्रदर्शन कर चुके हैं और साल 2002 में एक माह तक इटली के विभिन्न शहरों में घड़वा शिल्पकला से वहां के लोगों को परिचित कराने का अवसर मिला। देश-विदेश में घड़वा शिल्पकला को लेकर रुझान पर फूलसिंह कहते हैं-इटली में लोग गंभीरता से इस कला के बारे में जानना चाहते थे वहीं वहां के लोगों की दिलचस्पी घड़वा में ढले घरेलू इस्तेमाल के सामान खरीदने में थी। वहीं देश के भीतर अलग-अलग राज्यों में लोगों की पसंद अलग-अलग होती है। फूल सिंह का कहना है कि घड़वा शिल्प का बाजार सीमित है। इसे और आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है।

कच्चा माल महंगा होता जा रहा-टेडूराम

करनपुर के टेडूराम बघेल भी बचपन से घड़वा शिल्पकला के प्रति समर्पित हैं। वह बताते हैं कि उनके दादा मिठुराम बघेल और पिता मंधुराम बघेल भी अच्छे शिल्पकार थे और इन दोनों से उन्होंने यह कला सीखी। वह बताते हैं-पहले हाथी-घोड़ा, बूढ़ादेव और माता आदि ही बनाते थे लेकिन अब बदलते दौर में लोगों की पसंद भी बदली है और कलाकारों का काम भी बढ़ा है। इसलिए अब जैसी मांग रहती है, वैसा बना कर देते हैं। इसमें ज्यादातर साज-सज्जा के सामान और महिलाओं के इस्तेमाल के आभूषण होते हैं। टेडूराम ने बताया कि उनके परिवार में तीन बेटे सुरेश, गोकुल और अशोक भी घड़वा शिल्पकला से जुड़े हैं।

अब सजावट का सामान लेना ज्यादा पसंद करते हैं लोग- पीलूराम

कोंडागांव के पीलूराम बघेल बताते हैं कि बस्तर की यह कला अब देश और दुनिया देख रही है तो अच्छा लगता है लेकिन कलाकारों के लिए कई चुनौतियां हैं। पीलूराम के मुताबिक कच्चा माल महंगा होते जा रहा है। इसका सीधा असर कमाई पर पड़ता है। इस पर कुछ राहत सरकार की ओर से मिलनी चाहिए। पीलूराम ने बताया कि वह भी बचपन से घड़वा शिल्प पर काम कर रहे हैं। बदलाव पर वह कहते हैं समय के हिसाब से यह तो होता है, लोगों की पसंद बदलती है। अब लोग सजावट का सामान लेना ज्यादा पसंद करते हैं। पीलूराम ने बताया कि घड़वा शिल्पकला की देश और विदेश में अच्छी मांग है और उनका पूरा परिवार इसमें संलग्न है।

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