इस लोकप्रिय त्यौहार का नाम हरेली, हिंदी के शब्द हरियाली से आया है श्रावण माह में भारत में मॉनसून रहता है जिसके कारण बारिश होने से चारों तरफ हरियाली होती है इस समय किसान अपनी अच्छी फसल की कामना करते हुए कुल देवता एवं ग्राम देवता की पूजा करते हैं।
हरेली त्यौहार के दौरान लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा के पेड़ की डाली लगाते हैं इसी के साथ घरों के प्रवेश द्वार पर नीम के पेड़ की शाखाएं भी लगाई जाती हैं। नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों से भी बचाते हैं। लोहार जाति के लोग इस दिन घरो को अनिष्ट शक्तियों से बचाने के लिए घर के हर दरवाजे पर पाती ठोंकते ह,ैं जोे लोहे का एक नोकीला कील होता है। हरेली तिहार के बाद अनेक त्यौहारांे का सिलसिला शुरू हो जाता हैं।
बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर अमूस त्यौहार मनाया जाता है। बस्तर क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर दिन निर्धारित कर मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें हरेली तिहार भी शामिल है। इसके पीछे राज्य सरकार की मंशा छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी परंपरा और संस्कृति से जोड़ना है, ताकि लोग छत्तीसगढ़ की समृद्ध कला-संस्कृति, तीज-त्योहार और परंपराओं पर गर्व महसूस कर सकें।
छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान होने के कारण हरेली का त्यौहार का और भी महत्व बढ़ जाता है। राज्य सरकार द्वारा कृषि के विकास, पशुधन और इनसे संबंधित अनेक योजनाआंें को लागू किये हैं जिसमें से नरवा-गरवा-घुरवा और बारी प्रमुख हैं। जिसके तहत ग्राम पंचायतों में गौठानों का निमार्ण, गोबर क्रय, जैविक खाद का निमार्ण, पारंपरिक घरेलू बाड़ियों में सब्जियों में फल-फूल उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।
राज्य शासन द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए दो वर्ष पूर्व हरेली के दिन ही गोधन न्याय योजना की शुरुआत की गई थी जिसका प्रतिफल अब देखने को मिल रहा है इस योजना का उद्देश्य लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना भूमि की उर्वरता में सुधार और सुपोषण को बढ़ावा देना है इस योजना से पशुपालको को आमदनी का अतिरिक्त जरिया मिला है। गोबर से वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और उपयोग से राज्य में एक नई क्रांति शुरू हुई हैे महिला स्व सहायता समूह में स्वावलंबन के प्रति एक नया आत्मविश्वास जगा है गोबर से विद्युत उत्पादन और प्राकृतिक पेंट बनाए जा रहे हैं।
इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार इस साल हरेली तिहार से गौठानो में 4 रुपये प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदी की शुरुआत करने जा रही है गोमूत्र से महिला स्व सहायता समूह द्वारा जीवामृत और कीट नियंत्रण उत्पाद तैयार यह जाएंगे जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी गोमूत्र से बने कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे।
राज्य सरकार द्वारा प्रकृति से जुड़कर पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वृक्षारोपण प्रोत्साहन जैसी योजनाएं भी राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही है जिसके माध्यम से हरियाली बनाए रखने के लिए निजी भूमि पर नागरिकों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए प्रयोगों से आत्मनिर्भर गांवों के रूप में राज्य शासन अपने आदर्श वाक्य गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ को साकार रूप दे रही है।