छत्तीसगढ़

वन विभाग और प्रशासन जंगल उजडऩे से रोकने में नाकाम

Admin2
18 March 2021 5:28 AM GMT
वन विभाग और प्रशासन जंगल उजडऩे से रोकने में नाकाम
x

विभागीय संरक्षण में लकड़ी माफिया की घुसपैठ मंत्री से लेकर संत्री तक

जंगल में माफिया राज

अवैध लकड़ी काटने वालों को कड़ी सजा देने की बात कहकर अधिकारी कर रहे इतिश्री

यूपी,बिहार ,आंध्र के लकड़ी तस्करों का सबसे सुरक्षित ठिकाना बना छत्तीसगढ

कैम्पा फंड का सही उपयोग नहीं

वृक्षारोपण के नाम पर हर साल लाखों खर्च

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। प्रदेश के जंगलों में अवैध कटाई रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जंगल में माफिया राज चल रहा है। जलाऊ लकड़ी के नाम पर बेशकीमती लकड़ी की तस्करी भी हो रही है। वन विभाग या स्थानीय प्रशासन रोकने में नाकाम नजऱ आ रहा है। आसपास के जंगलों में रोजाना तेजी के साथ जंगलों की कटाई की जा रही है। जिससे जंगल में हरे-भरे पौधों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। पेड़ों की कटाई के कारण वन परिक्षेत्र कम होता जा रहा है। 15 साल पहले जंगल काफी हरा -भरा हुआ करता था , लेकिन इसमें आज कुछ कमी जरूर आ चुकी है। राजस्व की जमीन पर अतिक्रमणकारियों द्वारा पेड़ काटने का मामला यदाकदा देखने सुनने को मिल ही जाती है जिसे स्थानीय प्रशासन रोकने में रूचि नहीं दिखाता फलस्वरूप जंगल की कटाई पर वन विभाग भी रोक लगाने में असमर्थ दिखाई देता है।और जंगल माफिया अवैध रूप से लकड़ी कटाई करते रहता है। देखा गया है कि आसपास इमारती लकड़ी सहित अन्य पेड़ों की कटाई लगातार की जा रही है। बेरोक-टोक कटाई के चलते लकड़ी माफिया जंगलों में लगातार सक्रिय बने हुए हैं। वन अधिकारी अवैध लकड़ी काटने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात कहकर इतिश्री कर लेते हैं। रोजाना अवैध लकड़ी परिवहन करते वन अमला तस्करों को पकड़ रहे हैं लेकिन अधिकारी कहते हैं यदि अवैध कटाई हो रही है तो जरूर दोषियों को सजा मिलेगी यानि उन्हें अभी भी यकींन नहीं है कि अवैध लकड़ी कटाई हो रही है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में इमारती लकड़ी के पेड़ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इन बेशकीमती लकड़ी की फर्नीचर के लिए मांग के चलते लकड़ी माफिया कटाई की ताक में रहता है। स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो वन विभाग के संरक्षण में लकड़ी माफिया पनप रहा है। पिछले काफी दिनों से जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई चल रही है।

जंगल में माफियाओं का राज

स्थानीय लोग अवैध कटाई की शिकायत वन अधिकारियों से जरूर करते हैं ,लेकिन करवाई नहीं होने से माफियाओं के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं, साथ ही वे ग्रामीणों को डराते धमकाते भी हैं. अधिकारीयों से शिकायत पर उनका कहना होता है की अवैध लकड़ी काटने वालो पर सख्त करवाई की जाएगी लेकिन कोई सख्त करवाई नहीं होती जिससे उनके हौसले बुलंद हो रहे हैं। सरकार एक ओर पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देती है दूसरी ओर पेड़ों की अवैध कटाई पर अंकुश लगाने में पीछे रह जाती है।

वृक्षारोपण के लिए हर साल लाखों रु. खर्च

पर्यावरण संतुलन का हवाला देकर जंगलों में पौधरोपण के लिए वन विभाग के अधिकारियों को टारगेट दिया जाता है। वहीं अधिकारियों द्वारा पौधरोपण में लाखों रुपए खर्च कर पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन उनकी देखरेख और सुरक्षा को लेकर ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके अलावा जंगलों में खड़े पेड़ों की देखरेख वन विभाग द्वारा की जाए तो जंगल को काफी हद तक बचाया जा सकता है।अधिकारी वाताकुलुनित कमरे से बाहर निकलकर यदि काम करे तो निश्चित रूप से अवैध कटाई रोकी जा सकती है। अधिकतर कटाई गर्मी के दिनों में ही होती है और इसी समय का इन्तेजार इन माफियाओं को रहता है।

मिली भगत की आशंका से इंकार नहीं

प्रदेश के जंगलों में धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं। जंगलों में कटे हुए पेड़ों की ठूंठ इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। वन अधिकारियों का रवैया अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब जंगल मैदान में तब्दील हो जायेंगे।छत्तीसगढ़ में जंगल लाखो हेक्यटेयर में फैला हुआ है लेकिन अधिकारियों के उदासीन रवैये से कुछ दिन में सिमट जाय तो आश्चर्य नहीं होगा । अधिकांश वन परिक्षेत्रों में पेड़ों के ठूंठ ही नजऱ आते हैं। स्थानीय निवासियों ने बताया कि पेड़ कटने की शिकायतें जिम्मेदार अधिकारियों से की जाती है लेकिन अधिकारी तवज्जो नहीं देते। उनके शिकायत के बाद भी अधिकारी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते हैं। जिससे वन माफिया के साथ रेंज के अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत की आशंका स्थानीय लोगों ने जताई है।

कैम्पा फंड का दुरूपयोग

देखा गया है की कैम्पा फंड का भी जमकर दुरूपयोग किया जा रहा है। इस फंड से अधिकारी अपने लिए नई चमचमाती गाडिय़ां जरूर खरीदेंगे लेकिन वाहन का उपयोग सिर्फ अपने सुख सुविधा के लिए करते हैं। जबकि इन्हे जंगलों की सतत निगरानी करनी चाहिए। लगातार लकड़ी कटाई से वन्य प्राणियों का अस्तित्व संकट में आते जा रहा है।भारत सरकार की ओर से लगभग छह हजार करोड़ कैम्पा निधि के तहत मिला है भारीभरकम राशि मिलाने के बावजूद भी विभाग उस दिशा में कार्य नहीं कर पा रहा है। देखा जाये तो प्रदेश में कई ऐसे विभाग हैं जिनका सालाना बजट जितना नहीं रहता उतना केवल वन विभाग में हर साल बचा रहता है। कैम्पा फंड के तहत एलिफेंट कॉरिडोर का काम अभी एक प्रकार से माना जाय कि अटका पड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। और हाथी महाशय पुरे छत्तीसगढ़ में उधम मचाये हुए हैं। छत्तीसगढ़ के अधिकतर भूभाग जंगलों से आच्छादित हैं लेकिन अधिकारीयों की उदासीनता से जंगल साफ होते जा रहे है जिससे पर्यावरण संतुलन बिगडऩे का खतरा बना हुआ है।

पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए जंगल का होना जरुरी है, अधिकारियों को विशेष ध्यान देने की जरुरत है। शासन को संज्ञान लेकर इस समस्या का हल निकालना चाहिए। जो कि मनुष्य और वन्यप्राणी दोनो के हित में है ।

- मो. फिरोज ,वन्यप्रेमी एवं समाजसेवी

मिड-डे अखबार जनता से रिश्ता में किसी खबर को छपवाने अथवा खबर को छपने से रूकवाने का अगर कोई व्यक्ति दावा करता है और इसके एवज में रकम वसूलता है तो इसकी तत्काल जानकारी अखबार प्रवंधन और पुलिस को देवें और प्रलोभन में आने से बचें। जनता से रिश्ता खबरों को लेकर कोई समझोता नहीं करता, हमारा टैग ही है-

जो दिखेगा, वो छपेगा...

Next Story