छत्तीसगढ़
बस्तर में नक्सलगढ़ को नदियों पर पुल और जंगल में सड़क बनाकर भेद रही फोर्स
Apurva Srivastav
27 March 2021 5:33 PM GMT
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सड़कों के जरिए जंगल में बसे गांवों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचने लगी हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में अब तक अछूते रहे इलाकों में नदियों पर पुल और जंगल में सड़क बनाकर फोर्स नक्सलगढ़ को भेद रही है। बीते तीन साल में ऐसे इलाकों में फोर्स की मदद से सड़कों का जाल बिछ चुका है, जहां पहले जवानों के लिए गश्त पर भी जाना मुहाल था। बीजापुर से तेलंगाना को जोड़ने वाले तारलागुड़ा-भद्रकालीमार्ग पर तीन पुल बनाकर रास्ता खोल दिया गया है। बीजापुर से उसूर व पामेड़ तक सड़क बनाने की तैयारी की जा रही है। अबूझमाड़ तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा व बीजापुर जिले में इंद्रावती पर तीन पुल बनाए जा रहे हैं। इन सारी कवायदों के जरिए फोर्स नक्सलगढ़ को भेदने में लगी है।
नक्सल इलाकों में सड़कों के निर्माण के लिए केंद्र सरकार की योजना के तहत रोड रिक्वायरमेंट प्लान (आरआरपी)-1 में बस्तर संभाग में 19 सौ किमी सड़कें स्वीकृत की गई थीं। इनमें से 16 सौ किमी सड़कों का काम पूरा हो चुका है। आरआरपी-2 में भी करीब 400 किमी सड़कों का निर्माण किया जाना है। आरआरपी-1 में ऐसे इलाकों में सड़कों का जाल बिछाया गया है, जो अब तक नक्सलियों के स्वतंत्र इलाके कहे जाते थे। दशकों से बंद पड़ी एक दर्जन से ज्यादा सड़कों को खोला गया है। सड़कों के जरिए जंगल में बसे गांवों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचने लगी हैं। यह सारा कुछ फोर्स की मदद से ही संभव हो पा रहा है। इसके चलते नक्सलियों का इलाका लगातार सिमट रहा है।
सड़क बनने के बाद पांच घंटे का यह रास्ता 15 मिनट का हो गया
बीजापुर से 22 किमी दूर गंगालूर तक जब सीसी सड़क बनाने की योजना बनी तो नक्सलियों ने बहुत विरोध किया। हालांकि सड़क बनने के बाद पांच घंटे का यह रास्ता 15 मिनट का रह गया है। बीजापुर से आवापल्ली होते हुए बासागुड़ा तक 55 किमी सड़क नक्सलियों ने उखाड़ दी थी। अब यह सड़क चमक रही है। दंतेवाड़ा को नारायणपुर से जोड़ने वाले बारसूर-पल्ली 60 किमी सड़क में से 45 किमी सड़क का काम पूरा हो चुका है। पहली बार इस इलाके में फोर्स के कैंप बने हैं। गांवों में राशन की दुकान खुलने से आदिवासियों को मामूली जरूरतों के लिए 30-40 किमी पैदल चलने से निजात मिल गई है।
नक्सलियों की बढ़ी मुसीबत
लगातार बन रही सड़कों की वजह से नक्सलियों की मुसीबत बढ़ गई है। सड़क बनते ही प्राइवेट टैक्सियां, बसें चलने लगी हैं। फोर्स की दखल भी बढ़ती है। ऐसे में उनके लिए छिपना कठिन होता जा रहा है। नक्सली ग्रामीणों को आगे कर सड़कों व पुलों का विरोध कर रहे हैं। हालांकि सड़क बनते ही इलाके की तस्वीर बदल जाती है।
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