छत्तीसगढ़

युवा महोत्सव में राजनांदगांव के लोक नर्तक देंगे सरहुल की प्रस्तुति

Shantanu Roy
27 Jan 2023 3:45 PM GMT
युवा महोत्सव में राजनांदगांव के लोक नर्तक देंगे सरहुल की प्रस्तुति
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छग
राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ की धरा में अमूल्य आदिवासी संस्कृति अपने बहुरंगी स्वरूपों में प्रगट होती है। मिट्टी से जुड़ी लोक संस्कृति एवं जीवन की सशक्त अभिव्यक्ति लोक नृत्य के माध्यम से होती है। सरहुल नृत्य प्रकृति की अराधना के लिए किया जाता है। प्रकृति है तो, हम है। प्रकृति की पूजा जनजातीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस बार राजनांदगांव जिले की टोली लोक संस्कृति की महक लिए हुए 28 से 30 जनवरी तक आयोजित होने वाले वाले तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव में अपनी प्रस्तुति देंगे। स्वामी विवेकानंद की स्मृति में रायपुर में आयोजित होने वाले छत्तीसगढ़ युवा महोत्सव में सरहुल लोक नृत्य दल के कलाकार अपनी प्रस्तुति देने वाले हैं। सरहुल टीम की सभी नर्तक कुशल गृहिणी हैं। संस्कृति व परम्परा को संरक्षित करने का जज्बा व हौसला दिल में लिए 40 वर्ष एवं अधिकतम 62 वर्ष के नर्तक इस नृत्य में शामिल हो रहे हैं।
राज्य स्तर पर सरहुल नृत्य का प्रतिनिधित्व करने का आत्मविश्वास लेकर भाग लेने के लिए वे उत्साहित हैं। अधिकांश महिलाएं घरेलू हैं। ज्यादातर महिलाओं के पति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं तथा उनमें से कुछ महिलाएं शहीद परिवार से भी हैं। शासन की इस पहल से उन्हें यह अवसर मिला है। खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजित युवा महोत्सव में शिरकत कर उन्हें अपनी कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा। सरहुल लोक नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी बहुल क्षेत्र सरगुजा, रायगढ़, जशपुर जिले में बसने वाली उरांव, मुण्डा जनजाति द्वारा की जाती है। प्रकृति की अराधना के त्यौहार के रूप में साल वृक्ष की पूजा के साथ यह पर्व मनाया जाता है और इस दौरान मोहक लोक नृत्य सरहुल किया जाता है। उरांव जनजाति के लोग चैत्रमास की पूर्णिमा पर साल वृक्ष की पूजा और नये वर्ष की शुरूआत करते हैं। तब पेड़ों की शाखाओं पर नये फूल खिलते हैं। गीतों के बोल, लय, ताल एवं राग में वादन के साथ एवं गायन के साथ सामूहिक नृत्य करते हैं। इस लोक नृत्य-गीत में सखियों के बीच का वार्तालाप है। जिसमें अपने आस-पास प्रकृति के सुंदर दृश्य को देखकर वे आपस में बातें करती हैं। तो कहीं एक-दूसरे को सलाह, मनुहार, खुशियों की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। उरांव बोली एवं कहीं-कहीं सादरी बोली का पुट लिए हुए इन गीतों में माधुर्य है।
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