छत्तीसगढ़

राजधानी में फ्लैटस के दाम औंधे मुंह गिरे

Nilmani Pal
13 April 2022 5:46 AM GMT
राजधानी में फ्लैटस के दाम औंधे मुंह गिरे
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  1. बिल्डरों के प्रलोभन भी नहीं आ रहे काम, आधी कीमत पर भी नहीं मिल रहे खरीदार
  2. बिल्डरों की धंधाधुध कमाई और फर्जीवाड़ा पर रेरा ने लगाया अंकुश
  3. बिल्डरों का नया फंडा, प्रापर्टी बेचने मीडिया घरानों को बनाया पार्टनर
  4. जमीन-प्लाट और फ्लेट खरादने वालों के साथ कर रहे थे मनमानी
  5. रेरा में बिल्डरों के खिलाफ आवेदनों की भरमार
  6. रेरा में हाई कोर्ट के मुकाबले कम समय में मिल रहा लोगों को न्याय

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर । राजधानी में ऐसे बहुत से बिल्डर है जो कोरोनकाल के पहले प्रापर्टी लोगों को बेची थी, उसका पजेशन आज तक नहीं दिया है। ऐसे विवादित मामले को सुलझाने के लिए बड़े और नामी गिरा बिल्डर के साथ कंडम बिल्डर में सुलह करने के लिए आगे आते दिखाई दे रहे है। कोरोना में दो साल आइसोलशन में पड़े बिल्डरों ने प्रापर्टी बेचने के लिए कई मीडिया घरानों को पार्टनर बनाकर अपनी प्रापर्टी औने-पौने दाम पर बेचने के लिए आग बढ़ गए है। उसलके बाद भी जनता का विश्वास बिल्डरों पर नहीं हो रहा है। जनता न तो उनके लाचिंग में जा रही है और न ही उनसे पुरानी प्रापर्टी के पजेशन के लिए बात कर रही है। उपभोक्ताओं सीधे रेरा में आवेदन लगा कर बिल्डरों का जाना मुहाल कर दिया है। बिल्डर भागते फिर रहे समझौता के लिए । पिछले कई सालों तक बिल्डरों ने जमीन-प्लाट, बंगला, फ्लेट बेचने के नाम पर लुभावने ब्रोशर से लोगों को अपनी प्रापर्टी में निवेश कराने वाले बिल्डरों ने अंधाधुंध कमाई कर मालामाल हो गए और निवेशकों को न जमीन मिला न फ्लेट, जब बिल्डरों से निवेशकों ने निवेश के बदले अब तक जमीन, प्लाट, बंगलो, फ्लेेट नहीं मिलने पर गुहार लगाई तो बिल्डरों ने मसल पावर का उपयोग करना शुरू कर दिया। हार कर निवेशकों ने रेरा में बिल्डरों के खिलाफ आवेदन लगाए और देखते ही देखते 2-3 तीन में ही उनके पक्ष में फैसला आ गया। रेरा ने आए आवेदनों की समीक्षा कर उस पर सुनवाई की और बिल्डरों के अन्याय से निवेशकों को न्याय दिलाने में महति भूमिका अदा कर रही है। रेरा के डर से बाकी बिल्डरों ने फर्जीवाड़ा बंद करने के साथ अपनी लाखों की प्रापर्टी को औने-पौैने दाम में बेचने के लिए तैयार दिखाई दे रहे है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग और राज्य उपभोक्ता आयोग में ज्यादातर ऐसे मामले दायर हो रहे है जिसमें बिल्डर ने समय पर फ्लेट, प्लाट, बंगला का पजेशन नहीं दिया। या पिछले कई सालों से निवेशकों को घुमाते रहे है। पिछले एक साल में उपभोक्ता अदालतों में 2 हजार से ज्यादा केस आए है। इनंमें से 1012 मामलों में फैसला भी हो चुका है। पहले यह चलन नहीं था, लोग हाई कोर्ट का रूख करते थे, उपभोक्ता अदालतों में कुछ ही मामले इस तरह के आते थे। उपभोक्ता अदालतों में दायर होने वाले कुल मामलों में अब 20 प्रतिशत मामले बिल्डर -खरीदार विवादों से संबंधित है, जो पहले 5 प्रतिशत भी नहीं थे,बिलडखरों के खिलाफ खरीदारों व्दारा कई मंचों पर शिकायत की जाती है, पहला रेरा, दूसरा कोर्ट और तीसरा उपभोक्ता आयोग है। सरकार ने गाइट लाइन जारी कर निवेशकों को राहत पहुंचे बताया कि उपभोक्ता अपनी शिकायत एक सादे कागज पर दायर कर सकते है। सभी बिल और दस्तावेज संलग्न करने के साथ मुआवजे की मांग हो तो मामूली कोर्ट फीस लगती है। उदाहरण के लिए अगर 20 लाख का मुआवजा मांगते है तो 400 रुपए फीस लगती है। वकील की भी जरूरत नहीं पड़ती है। आप चाहे तो अपना केस खुद लड़ सकते है।

जमीन संबंधी जानकार विशेषज्ञों ने निवेशकों से कहा है कि वो रेरा में अपनी शिकायतों को दर्ज करा सकते है। जहां उपभोक्ता अदालतों में ज्यादतर मालों में सिर्फ 3 महीने में पैशले आ रहा है, एक भी मामला अभी तक ऐसा सामने नहीं आया जिसमें फैसला आने में 2 साल से ज्यादा समय लगा हो। उपभोक्ता आयोग में शिकायत करना आसान है, अगर दिल्ली का रहने वाला व्यक्ति रायपुर में फ्लेट खरीदता है तो उपभोक्ता संरक्षण कानून पीडि़त व्यक्ति को यह हक देता है कि वह दिल्ली में ही शिकायत दर्ज करा सकता है। फ्लेट खरीदारों को जब समय पर पजेशन नहीं मिलता तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या होम लोन की ईएमआई चुकाने की आती है। इसमे ंकही से भी राहत नहीं मिल पाता। जबकि उपभोक्ता अदालतों के प्रावधानों के मुताबिक जब तक केस चलता है, ईएमआई से छूट म्मिल जाती है। रेरा में अक्सर बिल्डर को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है। ऐसे मे ंपीडि़त का न्याय पाने का लक्ष््य अधूरा रह जाता है। इसलिए उपभोक्ता फोरम का रूख कर रहे है। कोर्ट में वकील की भारी खर्च होता है। वहीं फैसला आने में ही 5-5 साल लग जाते है। उपभोक्ता आयोग में वकील की जरूरत नहीं पीडि़त खुद अपना केस लड़ सकता है। उपभोक्ता आयोग के समक्ष केस दायर करन ेपर मध्यस्थता की प्रक्रिया से भी मामला जल्द सुलझने में मदद मिल रही है। उसके बाद समय सीमा के भीतर फैसले पर अमल जरूरी होता है।

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