छत्तीसगढ़
बिलासपुर : इतने कम खर्च में पाये किचन गार्डन तैयार मशरूम, आप भी करें खेती
Apurva Srivastav
11 May 2021 2:17 PM GMT
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छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर के संकरी निवासी मनोहर लाल आजकल लोगों के किचन गार्डन में मशरूम उत्पादन शुरू कराने में व्यस्त हैं।
छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर के संकरी निवासी मनोहर लाल आजकल लोगों के किचन गार्डन में मशरूम उत्पादन शुरू कराने में व्यस्त हैं। उन्होंने आयरन राड का ऐसा माडल तैयार किया है, जिस पर टंगे तीन बैग में 21 दिन में दो किलो आयस्टर मशरूम तैयार हो जाता है। कोरोना काल में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाने के लिए लोग ताजे मशरूम को प्राथमिकता दे रहे हैं।
मनोहर लाल ने वर्ष 1996 में इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर से एमएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई पूरी की थी। अगस्त, 2020 में निजी क्षेत्र की उनकी नौकरी चली गई तो उन्होंने अपने पूर्व अनुभव और ज्ञान का समावेश करते हुए यह माडल तैयार किया, जिसे मात्र एक हजार रूपये में वह लोगों के घरों में स्थापित कर रहे हैं।
रायपुर, राजनांदगांव, धमतरी, महासमुंद और बिलासपुर में सैकड़ों लोगों के घरों में स्थापित इस माडल की कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने भी सराहना की है तथा किचन गार्डन में पौष्टिकता के समावेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं। मशरूम में भरपूर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिंस, रेशेदार तत्व, खनिज लवण, विटामिन डी समेत अनेक चिकित्सीय तत्व हैं। ताजी मशरूम का इस्तेमाल सलाद, सब्जी, सूप अन्य व्यंजनों में होता है। यह बाजार में 120 रूपये से 200 रूपये प्रति किलो तक मिलता है।
ऐसे बनाया माडल, आप भी कर सकते हैं खेती
मनोहर लाल बताते हैं कि आयरन राड से पाली बैग रखने के लिए पहले संरचना बनाते हैं। फिर बैग को भरने के लिए या मशरूम की खेती के लिए सबसे पहले मशरूम के फल के टुकड़े किए जाते हैं। इसके बाद केमिकल से रसायनिक प्रक्रिया करके इसे एक प्लेट में डाला जाता है। इसके बाद इस केमिकल में मशरूम के टुकड़े को डालते हैं। फिर प्लास्टिक की थैलियों में तीन किलो पैरा कुट्टी डालते हैं। इसे रातभर पानी में डुबो देते हैं। फिर केमिकलयुक्त पानी व मशरूम के स्पान को इसमें डालते हैं। इसमें गोबर खाद, मिट्टी भी डालते हैं। इसे बैग में डालकर इसे पालीथिन से ढंक देते हैं और रोज पानी डालते हैं। धीरे-धीरे इसमें मशरूम उगने लगता है। इस प्रक्रिया को आगे भी करते जाते हैं। पालीथिन के कवर के कारण इसे पर्याप्त नमीं मिलती है। मशरूम व अन्य अवशेष की खाद बनाकर घर के दूसरे पौधों में डाल सकते हैं।
केस-1: बुधवारी बिलासपुर के रहने वाले आलोक कुमार मौर्या ने अपने घर में मशरूम उगाने के लिए यह माडल लगवाया है। उनके यहां मशरूम उगना शुरू हो गया है।
केस-2: रायपुर के मोवा स्थित ठाकुर परिवार और इंदिरा गांधी कृषि विवि के मशरूम विभाग में भी माडल के रूप में लगाया है ताकि दूसरे लोग भी समझ सकें।
इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर के मशरूम विशेषज्ञ एवं प्रोफेसर डा. एमपी ठाकुर ने बताया कि मशरूम उगाने के लिए किसी भी जगह पर नमी बहुत जरूरी है। मनोहर लाल राजपूत ने आयस्टर और दुधिया मशरूम उगाने का अच्छा प्रयोग किया। उन्होंने जो ढांचा बनाया है उसको आसानी से ढंका जा सकता है। इससे नमी बनने लगती है। लोहे के फ्रेम में पालीथीन ढंक देने से यह माडल गर्मी के दिनों में भी मशरूम उगाने के लिए सफल हो सकता है। यह प्रयोग काबिलेतारीफ है।
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